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बाहरी विश्व के साथ भारत का सांस्कृतिक संबंध |
बाहरी विश्व के साथ भारत का सांस्कृतिक संबंध (Indian Cultural Expansion Abroad)
भारत का विदेशों के साथ राजनीतिक एवं संस्कृति संबंध अत्यंत प्राचीन काल से ही रहा है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने विदेशी संपर्क की स्थापना में बहुत अधिक सहायता पहुँचाई ।
भारत में विदेशी आक्रमणकारी, विजेता, व्यापारी सदैव आते रहे हैं। इस प्रकार भारतीय व्यापारियों, धर्म प्रचारकों तथा उपनिवेशकों ने विदेशों में अपने उपनिवेश स्थापित किए और वहाँ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रसार किया।
भारत का संबंध मध्य एशिया व दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों के साथ हुआ। यह सम्पूर्ण क्षेत्र वृहत्तर भारत के नाम से जाना जाता है। वृहत्तर भारत में मध्य एशिया, तिब्बत, चीन व दक्षिण पूर्वी देशों की गणना की जाती है।
मध्य एशिया में काश्गर, यारकन्द, खोतान, कूची, कारा शहर आदि देश आते हैं। कूची व दक्षिण खोतान भारतीय संस्कृति के प्रमुख केन्द्र थे।
खोतान के समस्त लेख भारतीय भाषाओं और लिपि में मिले हैं। अशोक के पुत्र कुणाल ने इस उपनिवेश का निर्माण किया था।
खोतान का गौतमी विहार मध्य एशिया का सबसे बड़ा विहार है। यहाँ महायान बौद्ध धर्म का अधिक प्रचार था 453 ई. में धर्मक्षेत्र नामक बौद्ध विद्वान चीन से महापरिनिर्वाण सूत्र की पाण्डुलिपि की खोज में खोतान आया था। मध्य एशिया के उत्तर में स्थित कूची भी बौद्ध सभ्यता का प्रमुख केन्द्र था।
बौद्ध धर्म के प्रचार से श्रीलंका, बर्मा, चीन और मध्य एशिया के साथ भारत के सम्पर्क बढ़े। अशोक के शासन काल में बौद्ध प्रचारक श्रीलंका भेजे गए। ईसा की आरम्भिक शती में बौद्ध का प्रचार भारत से बर्मा की ओर हुआ। बर्मी लोगों ने बौद्ध के थेरवाद रूप का विकास किया।
बर्मा और श्रीलंका ने बौद्ध मंदिरों व बुद्ध की मूर्तियों के अलावा समृद्ध बौद्ध साहित्य की भी रचना की। यद्यपि बौद्ध धर्म भारत से लुप्त हो गया लेकिन बर्मा व श्रीलंका में उसके अनुयायी बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
प्राचीनकाल में बौद्ध धर्म के दो महान केन्द्र अफगानिस्तान और मध्य एशिया थे। अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियाँ और बौद्ध विहार पाये गये हैं। इस देश में उत्तर में स्थित बेग्राग और बामियान ऐसे अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है
बामियान में एक विशिष्ट बुद्धमूर्ति है, जो पत्थरों से काटकर बनी बुद्ध मूर्तियों में सबसे लम्बी है। मध्य एशिया में अशोक के समय भारतीय संस्कृति का विकास हुआ। उसकी धर्म विजय की नीति ने भारतीय संस्कृति के संदेश को मध्य एशिया तक पहुँचा दिया।
मौर्यों के पश्चात् भारत पर विदेशी आक्रमण हुए, जिनमें यूनानी, शक, पहलव, यूची आदि का संबंध मध्य एशिया से भी था। जब ये भारतवर्ष के शासक बने तो इनके द्वारा भारतीय संस्कृति मध्य एशिया में पहुँची।
मध्य एशिया में स्तूप, विहार, भारतीय मूर्तियाँ, संस्कृति व पालि के ग्रंथ प्राप्त हुए हैं। यहाँ के लेखों की लिपि ब्राह्मी व खरोष्ठी थी।
चीन और भारत के प्रारंभिक संबंध पूर्णतया व्यापारिक थे, परन्तु बाद में व्यापार का स्थान धर्म प्रचार ने ले लिया तथा बौद्ध प्रचारकों के प्रयत्नों के फलस्वरूप भारतीय सभ्यता चीन में व्यापक रूप से फैली। हानवंशी शासक ने पश्चिमी में अपने राजदूत भेजे, जो अपने साथ धमर्रल व काश्यप मातंग नामक दो बौद्ध भिक्षु ले गये, जिनके रहने के लिए 'श्वेताश्व विहार' का निर्माण करवाया गया।
चीन के अनेक राजाओं ने बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित किया। 'तांग' काल को 'चीन का बौद्ध काल' कहा गया।मध्य एशिया के बौद्ध प्रचारकों में धर्मरक्ष और कुमारजीव के नाम प्रमुख हैं।
अनेक चीनी यात्रियों ने बौद्ध ग्रंथों की प्रतियाँ लेने तथा पवित्र बौद्ध स्थलों के दर्शनार्थ भारत की यात्रा की जिनमें फाह्यान, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग प्रमुख हैं।
चीनीवासियों के जीवन पर भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा। बौद्ध धर्म की अहिंसा, दया, करुणा, विनय आदि ने उनके जीवन में विलक्षण परिवर्तन किये। अजन्ता के गुहा चित्रों के समान तुल-हुआंग में गुहाचित्र बने। चीन के 'पैगोडा' भारतीय स्तूपों की नकल प्रतीत होते हैं।
दक्षिणी पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति का प्रसार-
दक्षिणी पूर्वी एशिया के देश इण्डोनेशिया, जावा, चंपा, सुमात्रा, बाली, कम्बोडिया, थाइलैण्ड, बर्मा आदि देशों में भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रसार हुआ।
सुवर्णद्वीपः मलाया -
भारतीयों का प्रमुख उपनिवेश सुवर्णद्वीप (इंडोनेशिया) में स्थापित हुआ। इस क्षेत्र के द्वीपसमूह मलाया, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बाली, मलक्का आदि में भारतीय राज्यों की स्थापना हुई। मलाया में हिन्दू राज्य की स्थापना शैलेन्द्र ने की। शैलेन्द्र साम्राज्य ने पाल एवं चोल शासकों के साथ मैत्रीसंबंध स्थापित किये।
शैलेन्द्र शासकों ने हीनयानी बौद्ध धर्म को प्रश्रय दिया। बोरोबुदर के विशाल बौद्ध मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में शलेन्द्र शासकों ने करवाया जो कि विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर है।
जावा -
जावा में हिन्दू-राज्य की स्थापना चौथी शताब्दी में ही हो चुकी थी। परन्तु 8वीं शताब्दी में जब शैलेन्द्र-साम्राज्य का उदय हुआ, तब जावा भी उसके प्रभाव में आ गया।
यहाँ का सबसे प्रसिद्ध राजा पूर्णवर्मन था। उसने 'गोमती' नहर खुदवाई। जावा में भारतीय संस्कृति, धर्म एवं कला का विकास हुआ।
सुमात्रा- सुमात्रा में चौथी शताब्दी में श्रीविजय नामक राजा ने श्रीविजय साम्राज्य की स्थापना की।
बाली और बोर्नियो -
बाली में हिन्दू-राज्य की स्थापना छठी शताब्दी में हुई। यहाँ कौण्डिय-वंश के शासकों का अधिकार था। यहाँ बौद्ध धर्म की प्रधानता रही।
मलक्का - मलक्का के हिन्दू राज्य की स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई।
सुवर्णभूमिः बर्मा और स्याम - प्राचीन काल में बर्मा सुवर्ण भूमि के नाम से जाना जाता था। यहाँ भारतीय संस्कृति का प्रसार व्यापारियों द्वारा हुआ।
फूनान कम्बुज या कम्बोडिया को चीनी लोग 'फूनान' कहते थे। 5वीं शताब्दी के आरम्भ में रचित दक्षिणताई के इतिहास में 'फूनान' हिन्दू राज्य की स्थापना का उल्लेख है।
अन्नाम -
प्राचीन चम्पा या अंगद्वीप का आधुनिक नाम अन्नाम है। यहाँ दूसरी सदी में श्रीमार ने हिन्दू वंश की स्थापना की थी। यहाँ शैव धर्म का ज्यादा प्रभाव था। मैसन तथा पोनगर के मंदिर शिव को ही समर्पित है। चम्पा में धार्मिक विकास की प्रमुख विशेषता सहिष्णुता थी।
दक्षिण-पूर्वी एशिया के प्रमुख कला के केन्द्र-
- जावा (इंडोनेशिया)
- कम्बोडिया
- बर्मा
- चम्पा
बोरोबुदुर का बौद्ध स्तूप,'बोरोबुदुर' का स्मारक शैलेनद्र | वंशी राजाओं ने 750 से 850 ई. के काल में निर्मित करवाया था।
- अंकोरवाट का विष्णु मंदिर।
- आनन्द मंदिर पगान में स्थित।
- माइसोन व पोनगर के मंदिर।
कम्बोडिया स्थित अंकोरवाट के विष्णु मंदिर की स्थापना खमेर शासक सूर्यवर्मन् द्वितीय ने 12वीं सदी में करवाई।जावा वासियों द्वारा प्राचीनकाल में भारतीय साहित्य के अनुकरण पर अपना एक विस्तृत साहित्य का निर्माण किया गया, जिसे इण्डो-जावाती साहित्य कहा गया।
हिन्द-चीन-
दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्तर्गत कम्बोडिया, वर्मा, स्याम, मंलय प्रायद्वीप सामूहिक रूप से हिन्द-चीन कहलाते थे। प्राचीन भारतवासी इस सम्पूर्ण क्षेत्र को सुवर्णभूमि तथा सुवर्णद्वीप के नाम से जानते थे।
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