जल संरक्षण एवं संवर्धन

जल संरक्षण एवं संवर्धन - मानव को प्रकृति से विरासत में मिला वह संसाधन है, जिसके बिना जीव जगत की संकल्पना ही व्यर्थ है, वह जल है। पीने के लिए सुरक्षित जल को पीने योग्य जल कहते हैं। जल संरक्षण से तात्पर्य जल का उचित उपयोग कर उसको भविष्य के लिए सुरक्षित रखना, जिससे कि हमारी भावी पीढ़ी को इसकी कमी की समस्या से जूझना ना पड़े, जल संरक्षण कहलाता है। 

ध्यान रहे - विश्व जल दिवस-22 मार्च को मनाया जाता है। तरुण भारत संघ के संस्थापक राजेन्द्र सिंह को जल संरक्षण के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्षा जल संग्रहण है- वर्षा जल का जमाव और भण्डारण । भूमिगत जल स्तर को प्राकृतिक स्तर पर पुन: लाने के लिए 'पातालतोड़ कुओं का अधिक निर्माण किया जाना उपाय सर्वथा उचित हैं।

जल संरक्षण एवं संवर्धन

जल एक नवीकरणीय संसाधन है, जिस पर मानव व समस्त जीव जगत का आधार अस्तित्व निर्भर है। हमारी पृथ्वी का 3/4 भाग जलमग्न होने के कारण इसे जल ग्रह (नीला ग्रह) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर महासागरीय जल की मात्रा अधिक होने के कारण 2.7% जल ही मानव उपयोगी है। क्योंकि महासागरीय जल लवणीय होता है, जो पीने के काम नहीं लिया जा सकता है।

शहरी क्षेत्रों के लिए तो 'जल ही जीवन है एवं जल है, तो कल है।' वाली उक्ति सही प्रतीत होती नजर आती है क्योंकि इन क्षेत्रों में जलापूर्ति बाहरी क्षेत्रों से की जा रही है और यहाँ जल बर्बादी सर्वाधिक होती है।

भूमिगत जल के अत्यधिक उपभोग के कारण वर्तमान समय में जल स्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है, इस समस्या को रोकने के लिए मानव को वन एवं वनस्पति को बढ़ावा देकर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाकर भौम जल स्तर की वृद्धि हेतु उचित कार्य करना चाहिए।

जल संरक्षण एवं संवर्धन
जल संरक्षण एवं संवर्धन

ध्यातव्य रहे
- वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (वर्षा जल का संरक्षण) का उपयोग आंध्रप्रदेश में अधिक होता है।

नदियों व तालाबों के द्वारा जल को सुरक्षित रखा जाता है लेकिन इन नदियों से निकाली गयी नहरों के द्वारा जल रिसाव व फसलों में सिंचाई में व्यर्थ पानी व वाष्पीकरण से पानी नष्ट हो जाता है। इस प्रकार की समस्या के समाधन के लिए स्प्रिंग कलर व ड्रिप सिंचाई सिस्टम का उपयोग कर बहुमूल्य जल संसाधन को संरक्षित करना चाहिए। राजस्थान की नवीनतम जल नीति 2010 में अपनाई गई।

जल संरक्षण के परम्परागत स्त्रोत

राजस्थान में जल संरक्षण के परम्परागत स्रोतों के अंतर्गत तालाब, झीलें एवं कुएँ आदि आते हैं। परम्परागत स्रोतों के प्रबंधन के लिए जल संरक्षण हेतु निम्न संसाधनों को उपयोग में लिया जाता है-

1. टांका / कुंड- 

वर्षा जल को संग्रह करने के लिए प्राचीन समय में मरूस्थलीय क्षेत्रों में टांके का निर्माण किया जाता था, जिसमें वर्षा जल को संग्रहित करके रखा जा सकता था। ऐसे ही टांके जयगढ़ किले (आमेर, जयपुर) में बने हुए हैं। ध्यान रहे-जयगढ़ किले में गढ़े हुए धन को खोदने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने यहाँ खुदाई करवाई थी।

2. कुई - 

इन्हें बेरी भी कहा जाता है। पश्चिमी राजस्थान (बीकानेर, जैसलमेर आदि) में तालाब के निकट कुई बनाने की परम्परा है, जो 10 12 मीटर गहरी होती है, जिनमें तालाब का पानी रिसकर आता है।

ध्यातव्य रहे - बाटाडू का कुआँ- रावल गुलाब सिंह द्वारा निर्मित इस कुएँ को ‘‘रेगिस्तान का जलमहल" कहते हैं। (बाड़मेर) 

3. बावड़ी - 

बावड़ियाँ एक सीढ़ीदार बृहत् कुआँ होता है, जिसमें वर्षा एवं भूमिगत जल का संग्रहण किया जाता है। बावड़ियों के लिए क शेखावाटी एवं बूँदी की स्थापत्य कला प्रसिद्ध है। 

ध्यान रहे - बूँदी के को बावड़ियों का शहर कहते हैं। 

राजस्थान की प्रमुख बावड़ियाँ 

  1. चाँद बावड़ी, 
  2. सुगंदा की बावड़ी, 
  3. हरबोला की बावड़ी, 
  4. एंजन बावड़ी (जोधपुर), 
  5. हाड़ी रानी की बावड़ी /कुंड (टोंक) -टोडारायसिंह कस्बे (टोंक) के मध्य स्थित इस बावड़ी पर पहेली फिल्म फिल्माई गई। 
  6. बुद्ध / शुद्ध सागर (टोंक) टोडारायसिंह कस्बे (टोंक) में स्थित इस तालाब के नजदीक पहाड़ी के ऊपर संत पीपा की गुफा स्थित है। 
  7. नौलखा बावड़ी (दूँगरपुर) - इस बावड़ी का निर्माण 1856 ई. में आसकरण की चौहान वंशी रानी प्रेमल देवी ने करवाया। इस बावड़ी का शिल्पी लीलाधर था। 
  8. त्रिमुखी बावड़ी (ड्रॅगरपुर) - इस बावड़ी का निर्माण महाराणा राजसिंह की रानी रामरसदे ने करवाया। 
  9. उदय बावड़ी (डूंगरपुर) - इस बावड़ी का निर्माण महारावल उदयसिंह ने करवाया। 
  10. पन्ना मीणा की बावड़ी (जयपुर), 
  11. परचा बावड़ी - रामदेवरा (जैसलमेर), 
  12. घोसुन्डा बावड़ी (चित्तौड़गढ़), 
  13. तापी बावड़ी (जोधपुर), 
  14. कातन बावड़ी (जोधपुर)-ओसियाँ, 
  15. चाँद बावड़ी (जोधपुर) – इसका निर्माण राव जोधा की रानी चाँद कुँवरी ने करवाया था, तो वहीं चाँद कुँवरी सोनगरा चौहान वंश की थी, जिस कारण इस बावड़ी को चौहानों की बावड़ी भी कहा जाता है, 
  16. मेडतणी की बावड़ी (झुंझुनूं) इस बावड़ी का निर्माण 18वीं सदी में बख्त कँवर ने अपने पति शार्दूल सिंह की स्मृति में करवाया, 
  17. सोनगिरि बावड़ी खण्डेला (सीकर), 
  18. चैतनदास की बावड़ी (लौहार्गल, झुंझुनूं), 
  19. चाँद बावड़ी आभानेरी (दौसा) में प्रतिहार निकुम्भ राजा चांद द्वारा निर्मित यह बावड़ी 8वीं शताब्दी के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह बावड़ी राजस्थान की सबसे गहरी बावड़ी है। अंधेरी एवं उजाली दो प्रवेश द्वार हैं। इस बावड़ी को तिलिस्म बावड़ी व भूल-भुलैया बावड़ी भी कहा जाता है, क्योंकि इस बावड़ी की सीढ़ियों से नीचे उतने के बाद उन्हीं सीढ़ियों से पुनः बाहर नहीं जाया जा सकता है, तो वहीं ऊपर से देखने पर यह बावड़ी टिमटिमाते तारे की तरह दिखायी देती है तथा यह बावड़ी गुर्जर-प्रतिहार कला में बनी है, जिसके किनारे हर्ष माता का मंदिर है। 
  20. लम्बी बावड़ी (धौलपुर) सात मंजिला इस बावड़ी की बनावट एक समान है। 
  21. रानी जी की बावड़ी (बूंदी) - इस बावड़ी का निर्माण राजा अनिरुद्ध की विधवा रानी नाथावत जी ने करवाया, जिसे 'बावड़ियों का सिरमौर' कहते हैं। इस बावड़ी के किनारे शिव व पार्वती की मूर्तियाँ लगी हैं। 
  22. अनारकली की बावड़ी (बूंदी) - इस बावड़ी का निर्माण रानी नाथावत की दासी अनारकली ने छत्रपुरा क्षेत्र में करवाया। 
  23. तपसी की बावड़ी व औस्तीजी की बावड़ी (शाहबाद) कस्बे, बाराँ) में। 
  24. दूध बावडी (माउण्ट आबू, सिरोही), 
  25. नीमराणा की बावड़ी (अलवर)-टोडरमल द्वारा निर्मित नौ मंजिला बावड़ी।
  26. चमना बावड़ी (भीलवाड़ा) - शाहपुरा में स्थित तीन मंजिला इस बावड़ी का निर्माण उम्मेद सिंह प्रथम ने 1858 ई. अपनी में गणिका चमना के नाम पर करवाया। 
  27. बाई राज की बावड़ी व चौखी बावड़ी (बनेड़ा गाँव, भीलवाड़ा) में। 
  28. बड़गाँव की बावड़ी (कोटा) कोटा के शासक शत्रुसाल की पटरानी जादौणा द्वारा निर्मित। 
  29. लवाण की बावड़ी (दौसा) – इसे डाकणिया बावड़ी भी कहा जाता है, 
  30. भावल देवी बावड़ी (बूँदी ) – इसका निर्माण भावसिंह की पत्नी ने करवाया, 
  31. काकाजी की बावड़ी (बूँदी) - इसका निर्माण सरदार सिंह की पत्नी आली देवी ने करवाया, 
  32. नागर-सागर कुण्ड (बूँदी ) इसका निर्माण चन्द्रमान कंवर ने करवाया, 
  33. विरुपुरी बावड़ी (उदयपुर) - इसका निर्माण 17वीं सदी में वीरु रानी ने एक साधू के कहने पर करवाया, 
  34. एक चट्टान बावड़ी (मण्डौर, जोधपुर) - इसका निर्माण सातवीं सदी में माना जाता है, क्योंकि इसके किनारे एक शिलालेख है, जो 685 ई. का है। इसे रावण की चंवरी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है, कि यहाँ रावण का मंदोदरी से विवाह हुआ था।

4. नाड़ी - 

पश्चिमी राजस्थान में एक विशेष प्रकार के पोखर का निर्माण किया जाता है, जिसमें वर्षा जल को संग्रहित किया जाता है। इसमें 5-6 माह तक वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है। 

5. तालाब - 

तालाब का निर्माण वर्षा जल को संग्रहण करने के लिए खेतों के अंदर किया जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई में उसका उपयोग किया जा सके। 

हमारे राजस्थान के प्रमुख तालाब 

  1. स्वरूप सागर, 
  2. सौभाग्य सागर (जोधपुर), 
  3. पन्नालालशाह तालाब (खेतड़ी, झुंझुनूं), 
  4. गढ़सीसर तालाब (जैसलमेर), 
  5. फूलनाथ तालाब (बीकानेर), 
  6. लाखोलाव तालाब (मुंडवा, नागौर), 
  7. बुद्ध सागर तालाब (टोंक), 
  8. माधोसागर (दौसा), 
  9. हरीशचन्द्र सागर। (झालावाड़), 
  10. कालीसिल पीपलदा (सवाईमाधोपुर), 
  11. ईसरदा (सवाईमाधोपुर), 
  12. मोरासागर (सवाईमाधोपुर), 
  13. उम्मेदसागर (बारां), 
  14. सीताबाड़ी (बारां), 
  15. बनेठी (बारां), 
  16. परवन परियोजना (बारां), 
  17. संतूरमाता सिंचाई परियोजना एवं नौलखा सागर (बूंदी), 
  18. तालाबशाही (धौलपुर), 
  19. आलूदा का बुबानिया कुण्ड (दौसा) इस कुण्ड की बनावट बादलनुमा है।, 
  20. उम्मेद सागर (जोधपुर), 
  21. तख्त सागर (जोधपुर), 
  22. जसवंत सागर (जोधपुर) यह पिचियाक नदी पर बना बाँध है जो 2007 में आई तेज वर्षा से टूट गया। 
  23. महिला बाग का झालरा (जोधपुर) -यहाँ महिलाओं द्वारा 'लोटियों का मेला' लगता है। 
  24. मुंडोती तालाब (अजमेर), 
  25. डिग्गी तालाब (अजमेर व टॉक), 
  26. अनूप (बीकानेर), 
  27. प्रतापसागर (नागौर), 
  28. पीरजी का नाका (नागौर), व भाकरी (नागौर)


6. बाँध - 

वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए एक स्थान विशेष पर पानी के बहाव को रोकने के लिए मिट्टी एवं चूने पत्थर से दीवार बनाकर बांध का निर्माण किया जाता है, जहाँ पर पानी का संग्रहण अधिक मात्रा में किया जाता है। बाँध अधिकांशतः नदी वाले क्षेत्रों में बनाये जाते हैं। बांध टिकाऊ विकास को प्रोत्साहित करते हैं। 

राजस्थान के प्रमुख बाँध 

टोरडी सागर बाँध (टोंक) इसकी सभी मोरिया (गेट) खोलने पर बाँध में एक बूँद भी जल शेष नहीं रहता। 

  • भीम सागर बाँध (झालावाड़), 
  • पीपलाद बाँध (झालावाड़), 
  • कालीसिंध बाँध / परियोजना (झालावाड़), 
  • मोरेल बाँध (सवाईमाधोपुर) - 
  • मिट्टी का बाँध (सवाईमाधोपुर), 
  • ईसरदा बाँध (सवाईमाधोपुर), 

पांचना बाँध / सिंचाई परियोजना (करौली) 

यह गुड़ला बाँध के पास अमेरिका के सहयोग से (भद्रावती, अटा, बरखेड़ा, माची व भैंसावट के संगम पर) 'राजस्थान का सबसे बड़ा मिट्टी का बाँध' बताया गया। 

  • चूलीदेह बाँध (करौली), 
  • जग्गर बाँध (करौली), 
  • वाकल बाँध (उदयपुर), 
  • राणाप्रताप सागर (चित्तौड़गढ़) यह राज्य का सर्वाधिक भराव क्षमता वाला बाँध है। 
  • जयसागर / जयसमन्द बाँध (अलवर), 
  • देवती बाँध (अलवर), 
  • बाधोला बाँध (अलवर), 
  • सांकडा बाँध (अलवर), 
  • मंसा सागर बाँध (अलवर), 
  • सीकरी बाँध (भरतपुर), 
  • अजान बाँध (भरतपुर), 
  • सेवर बाँध (भरतपुर), 
  • शाही बाँध (भरतपुर), 

बंध बारेठा बाँध (भरतपुर) 

भरतपुर का सबसे बड़ा बाँध इसका निर्माण कुकुन्द नदी पर 1897 में रामसिंह के समय करवाया गया। इस बाँध की बनावट 'एक जहाज' जैसी है। 

रामगढ़ बाँध (जयपुर)

दो पहाड़ियों की तंग घाटी को बाँध कर बाणगंगा नदी पर बनाया गया। पहले यहाँ से जयपुर जिले को पेयजल की पूर्ति की जाती थी। 

  • कानोता बाँध (जयपुर) - राजस्थान का सर्वाधिक मछली बीज उत्पादक बाँध, 
  • छापवाड़ा बाँध, 
  • पाटन टैंक बाँध, 
  • गूलर बाँध। 

मेजा बाँध (भीलवाड़ा) 

इसका निर्माण कोठारी नदी पर माण्डलगढ़ में किया गया। इस बाँध पर बनाये गये मेजा पार्क को "ग्रीन माउण्ट" के नाम से जाना जाता है। 

  • खारी बाँध (भीलवाड़ा), 
  • सरेरी बाँध (भीलवाड़ा), 
  • उर्मिला सागर बाँध (भीलवाड़ा), 
  • अडवान बाँध (भीलवाड़ा), 
  • उम्मेद सागर बाँध (भीलवाड़ा), 
  • रामसागर बाँध (भीलवाड़ा), 
  • जाखम बाँध (प्रतापगढ़) - यह अनूपपुरा गाँव के पास राज्य का सबसे ऊँचा (81 मीटर) बाँध है। 
  • माही बजाजसागर बाँध (बाँसवाड़ा) - यह राज्य का सबसे लम्बा (3109 मीटर) बाँध है। 
  • भूपालसागर बाँध (चित्तौड़गढ़), 
  • ओराई बाँध (चित्तौड़गढ़), 
  • सोनियाना बाँध, 
  • जवाहर सागर बाँध (कोटा) -यह एक पिकअप बाँध है। 
  • सावन-भादो बाँध (कोटा), 
  • अलनिया बाँध (कोटा) 
  • कोटा बाँध / कोटा वैराज (कोटा) -इस बाँध का सर्वाधिक केचमेन्ट एरिया है। 
  • बिलास बाँध (बारां), 
  • गरदड़ा बाँध (बूंदी), 
  • गुढ़ा बाँध (बूंदी), 
  • पार्वती बाँध (धौलपुर), 
  • माधोसागर बाँध (दौसा), 
  • कालाखोह (दौसा), 
  • झिलमिल्ली बाँध (दौसा), 
  • रेडियो बाँध (दौसा), 
  • चिरमिरी बाँध (दौसा), 
  • बोरोदा बांध (दौसा), 
  • अजीतसागर बाँध (खेतड़ी, झुंझुनूं), 
  • नाकोड़ा बाँध, 
  • तालछापर बाँध (चुरू), 
  • लसाड़िया बाँध (अजमेर), 
  • नारायण सागर बाँध (अजमेर) -यह बाँध खारी नदी पर है इसे ‘‘अजमेर जिले का समुद्र" कहते हैं। 
  • गजनेर बाँध (बीकानेर), 
  • हरसौर बाँध (नागौर), 
  • पिचियाक बाँध (जोधपुर), 
  • हेमावास बाँध (पाली), 
  • बैथली बांध (बारां), 
  • सीताबाड़ी बांध (बारां), 
  • बाकली बांध (जालौर), 
  • सुखाल बांध (सवाई माधोपुर), 
  • जैतसागर बांध (बूंदी), 
  • बरधा बांध (बूंदी), 
  • मुंडोती बांध (अजमेर), 
  • गोपालपुरा बांध (कोटा), 
  • कमलसागर बांध (भीलवाड़ा), 
  • गोवठा बांध (भीलवाड़ा), 
  • मदान बांध (भरतपुर), 
  • जाड़ला बांध (कठूमर, अलवर), 
  • हमीरपुर बांध (अलवर), 
  • छापरवाड़ा बांध (जयपुर), 
  • पाटन टैंक बांध (जयपुर), 
  • गूलर बांध (जयपुर), 
  • बीठन बांध (पाली)।

जल संरक्षण से संबंधित कुछ तथ्य -

वर्तमान में कुल पानी का में लगभग 2.5% वाष्पीकरण की भेंट चढ़ जाता है। प्रतिदिन मनुष्य को 50 लीटर प्रतिदिन मनुष्य को मिलना चाहिए, ये आकलन संयुक्त राष्ट्र जल उपलब्धतता मानकों का है एवं भारतीय पैमाने के अनुसार 85 लीटर प्रतिदिन / प्रतिव्यक्ति जल उपलब्ध होना चाहिए। ध्यान रहे विश्व में सर्वाधिक 22 लाख ट्यूबवेल भारत में है।

जल संरक्षण के लिए हमें ऐसे उपाय करने चाहिए, जो कम खर्चे में अधिक उपयोगी हो सके, जैसे कि परम्परागत जल स्रोतों का संरक्षण में पुनरूद्धार, जल निकायों (बाँध, नहरें, तालाब) का नवीनीकरण, छोटे-छोटे एनीकट, तालाब की खुदाई, जलाशयों नदियों आदि में गंदे कपड़े नहीं धोने चाहिए, स्प्रिंग कलर एवं बूँद-बूँद सिंचाई के उपयोग को बढ़ावा, घर में नल अच्छी तरह बंद करें एवं लीकेज होने पर तुरंत ठीक करवायें आदि उपायों के द्वारा हम जल संरक्षण के लिए भविष्य में सुधार कर सकते हैं।

-: ये भी जानें

ताकिया तालाब का सबसे ऊँचा स्थान जहाँ से तैराक कूदते हैं, ताकिया कहलाता है। 

खड़ीन -

पालीवाल ब्राह्मणों (जैसलमेर) के द्वारा 15वीं शताब्दी में इसका उपयोग किया गया। खड़ीन का निर्माण वर्षा जल एकत्रित करने के लिए ढ़लान वाली भूमि के नीचे दोनों तरफ मिट्टी की पाल एवं तीसरी तरफ पत्थर की पक्की दीवार बनाई जाती है। 

सेजा -

मेवाड़ क्षेत्र में तालाबों के पास कुएँ में कम खुदाई पर जल एकत्रित करने के लिए एक बल्ली लगाई जाती है, जिसे सेजा कहते हैं। 

जोहड़ -

शेखावाटी में चूनेदार अध: स्तर अनावृत होने के कारण आसानी से बनाये गये कच्चे कुएँ स्थानीय भाषा में जोहड़ कहलाते हैं। 1617 ई. में राजकुमार शाहजहां के लिए शिकार स्थल (शूटिंग लॉज) के रूप में धौलपुर के पास तालाब-ए-शाही का निर्माण किया गया।

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