प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद् (अनु.74-78 तक) - भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अर्थात् इस शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री को शासन की धुरी कहा जाता है।
ध्यातव्य रहे विश्व में सर्वप्रथम प्रधानमंत्री पद की शुरूआत ब्रिटेन में 18वीं सदी में हुई थी, जिसके साथ ही ब्रिटेन का प्रथम प्रधानमंत्री सर राबर्ट वालपोल को बनाया गया था।
भारत के प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद् (अनु.74-78 तक)
प्रधानमंत्री विधायिका तथा कार्यपालिका दोनों का वास्तविक प्रधान (अध्यक्ष) होता है (CGTET-2011] तथा मंत्रिपरिषद् व राष्ट्रपति के बीच संवाद के लिए मध्य की कड़ी का कार्य करता है।
ध्यातव्य रहे - संसद व राष्ट्रपति के बीच में संवाद का कार्य लोकसभा अध्यक्ष करता है तो लोकसभा का नेता प्रधानमंत्री होता है ।
भारत के प्रधानमंत्री व मंत्रिपरिषद् (अनु.74-78 तक) |
अम्बेड़कर ने प्रधानमंत्री के बारे में कहा कि, “प्रधानमंत्री सूर्य के समान है जिसके चारों ओर ग्रह परिक्रमा करते हैं तथा संविधान के सारे मार्ग प्रधानमंत्री की ओर उन्मुख होते हैं। "
एच.जे. लॉस्की ने प्रधानमंत्री के बारे में कहा कि, “प्रधानमंत्री मंत्रिमण्डल का निर्माता एवं संहारकर्ता होता है। "
अनु. 74. राष्ट्रपति के कार्यों में सलाह एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा [REET-2018 ] ।
अनु. 75.- लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है तथा प्रधानमंत्री की सिफारिश पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
प्रधानमंत्री की योग्यताएँ-
नियुक्ति
राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जाता है [CTET-2018] तथा राष्ट्रपति के द्वारा ही प्रधानमंत्री को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है।
यदि लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो,तो राष्ट्रपति अपने विवेक से लोकसभा में सबसे बड़े दल या गठबंधन । इस के नेता को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है। लेकिन प्रधानमंत्री को लोकसभा की पहली बैठक में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करना पड़ता है, यदि प्रधानमंत्री ऐसा नहीं कर पाता है तो उसे त्यागपत्र देना होता है। शक्ति का प्रयोग करते हुए सर्वप्रथम राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।
ऐसे व्यक्ति को भी प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है जो किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो लेकिन छः माह के अंदर उसे संसद का सदस्य बनना आवश्यक है।
ध्यातव्य रहे - 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, इसलिए इनको 13 दिन में त्यागपत्र देना पड़ा।
प्रधानमंत्री किसी भी सदन (राज्यसभा या लोकसभा) का सदस्य हो सकता है और यदि नहीं हो, तो छः माह में उसे किसी भी सदन की सदस्यता प्राप्त करनी होती है।
प्रधानमन्त्री का कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष होता है, लेकिन वास्तव में उनका कार्यकाल अनिश्चित होता है क्योंकि वह लोकसभा के विश्वास पर्यन्त तक प्रधानमन्त्री पद पर रह सकता है। लेकिन इससे पूर्व भी वह पद्मुक्त हो सकता है।
ध्यातव्य रहे प्रधानमंत्री के त्यागपत्र देने पर या पदरिक्त हो जाने पर मंत्रिपरिषद भंग होती है न कि लोकसभा।प्रधानमंत्री को 1,60,000रु. मासिक वेतन (संसद सदस्य के बराबर) एवं भत्ते मिलते हैं।
प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियाँ
भारतीय संविधान के अनु. 78 में प्रधानमंत्री की शक्तियों व कार्यों का वर्णन किया गया है
1. प्रधानमंत्री नीति आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद्, राष्ट्रीय एकता परिषद्, अंतर्राज्यीय परिषद् का पदेन अध्यक्ष तथा मंत्रिपरिषद व मंत्रिमण्डल का मुखिया होता है।
ध्यान रहे - पदेन अर्थात् एक पद धारण करने के साथ दूसरे पद पर स्वतः स्थापित हो जाना।
2. अनु. 75[ 1] के तहत् मंत्रिपरिषद् का गठन राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर किया जाता है। प्रधानमंत्री मंत्रियों को मंत्रालय आवंटित करता है तथा उनमें फेर-बदल कर सकता है, किसी मंत्री को त्यागपत्र देने के लिए कह सकता है यदि मंत्री त्यागपत्र नहीं देता तो राष्ट्रपति को उसे बर्खास्त करने की सलाह दे देता है या अपने पद से त्यागपत्र देकर समस्त मंत्रिपरिषद् को भंग करवा सकता है।
3. अनु. 78.-प्रधानमंत्री समय-समय पर राष्ट्रपति को शासन की गतिविधियों के बारे में अवगत करवाता है लेकिन 42वें संविधान संशोधन 1976 के तहत् राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया गया है। ।
4. प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को संघ सरकार के विधान विषयक व प्रशासन सम्बन्धी कार्य-कलापों सम्बन्धी निर्णयों की जानकारी देगा। प्रधानमंत्री निम्न आयोगों का अध्यक्ष होता है-नीति आयोग, अंतर्राज्यीय परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद्, राष्ट्रीय विकास परिषद्, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, सत्ताधारी दल का नेता।
भारत के प्रधानमंत्री
Minister of India List GK Trick in Hindi. - जलाई मोच इराविच राव अदे गु अमन
जवाहर लाल नेहरू |
1946 से 1964 |
लाल बहादुर शास्त्री |
1964 से 1966 |
इन्दिरा गाँधी |
1966 से 1977 |
मोरारजी देसाई |
1977 से 1979 |
चौ. चरण सिंह |
1979 से जन. 1980 |
इन्दिरा गाँधी |
1980 से 1984 |
राजीव रतन गाँधी |
1984 से 1989 |
वि.पी. सिंह |
1989 से 1990 |
चन्द्रशेखर |
नव, 1990 से जून 1991 |
पी.वी. नरसिंहा राव |
1991 से 1996 |
अटल बिहारी वाजपेयी |
16 मई 1996 से 31 मई 1996 |
एच.डी. देवेगौड़ा |
जून 1996 से अप्रैल 1997 |
आई. के. गुजराल |
अप्रैल 1997 से मार्च 1998 |
अटल बिहारी वाजपेयी |
मार्च 1998 से अक्टू. 1999 1999 से 22 माई, 2004 |
डॉ. मनमोहन सिंह |
2004 से 26 मई, 2014 |
नरेन्द्र मोदी |
26 मई, 2014 से अब तक |
1. पं. जवाहरलाल नेहरू [ 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964 ]-
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, जिन्हें तत्कालीन गवर्नर जनरल 'लॉर्ड माउंटबेटन' ने शपथ दिलाई। ये एकमात्र प्रधानमंत्री, जो मनोनीत व निर्वाचित थे। इनका कार्यकाल सबसे लम्बा (16 वर्ष, 9 माह, 13 दिन) था। इन्हें पंचवर्षीय योजना, गुटनिरपेक्षता, पंचशील, विदेश नीति का सूत्रधार तथा एशियाई खेलों का जन्मदाता कहा जाता है। इनके कार्यकाल में 1960 ई. में भारत व पाकिस्तान के मध्य सिन्धु नदी समझौता तथा 1961 में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की शुरूआत [संस्थापक-जवाहर लाल नेहरू जनक-नासिर, टी.टो.] हुई। पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए | UPTET-2011] । इनकी मृत्यु कार्यकाल के दौरान 27 मई 1964 को हुई तथा इनकी समाधि स्थल को शांति वन कहा जाता है। ध्यान रहे-नेहरू जी को दो देशों (भारत व इंग्लैण्ड) की नागरिकता प्राप्त थी
ध्यातव्य रहे - पहली बार अविश्वास प्रस्ताव पं. जवाहर लाल नेहरू की सरकार के विरुद्ध रखा गया जो 22 अगस्त, 1963 को जे.वी. कृपलानी द्वारा रखा गया।
2. गुलजारी लाल नंदा [ 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964 ]
भारत के प्रथम ( दो बार) कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने देश के प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया। ध्यान रहे इन्होंने कभी भी लाल किले पर तिरंगा नहीं फहराया था।
3. लाल बहादुर शास्त्री [ 9 जून, 1964 से 11 जनवरी, 1966 ] -
ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री जिनकी मृत्यु विदेश (उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद) में हुई, जिन्हें 'भारत के शांति जनक' व 'पंजाब का शेर' के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के द्वारा 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया गया था। सर्वप्रथम मरणोपरान्त 'भारत रत्न' लाल बहादुर शास्त्री को दिया गया था।
ध्यातव्य रहे - 10 जनवरी, 1966 को 'ताशकन्द समझौता' अयुब खाँ व लाल बहादुर शास्त्री के बीच हुआ। लालबहादुर शास्त्री की समाधि को विजयघाट के नाम से जाना जाता है।
4. गुलजारी लाल नंदा [ 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी, 1966 ]
ये दूसरी बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनकी समाधि स्थल को नारायण घाट कहा जाता है।
5. इन्दिरा गांधी [ 24 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977 ]
इंदिरा गाँधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थी। ये एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थी, जो लोकसभा का चुनाव हारकर, राज्यसभा सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री बनी। इनके कार्यकाल में दो बार (1971 व 1975 में) राष्ट्रीय आपातकाल, जुलाई, 1972 में शिमला समझौता (जुल्फकार अली भुट्टो व इंदिरा गांधी) तथा प्रथम परमाणु परीक्षण 'पोकरण' (जैसलमेर) में 18 मई, 1974 में हुआ।
ध्यातव्य रहे - 42वें संविधान संशोधन, 1976 में मूलकर्त्तव्य जोड़े गए. इस संशोधन को लघु संविधान भी कहा जाता है।
6. मोरारजी देसाई [ 24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979]
भारत के प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री [ जनता दल ] मोरारजी देसाई थे, जिनका जन्म दिवस 4 वर्ष बाद (29 फरवरी को) आता है। इनके कार्यकाल में दो उपप्रधानमंत्रियों (जगजीवनराम और चौधरी चरण सिंह) ने कार्य किया। इन्हीं के कार्यकाल में 44वाँ संविधान संशोधन के तहत् सम्पत्ति के मूल अधिकार को अनु. 31 से कानूनी अधिकार बनाकर अनु. 300 (क) में डाला गया।
ध्यातव्य रहे - पहले पूर्णतः गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा) रहे थे।
7. चौधरी चरण सिंह [ 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 ]
ऐसे प्रधानमंत्री जिन्होंने कभी संसद (लोकसभा) का सामना नहीं किया। इनके जन्म दिवस (23 दिसम्बर) को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो इनकी समाधि को किसान घाट कहा जाता है। ध्यातव्य रहे- अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाये गए प्रथम प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह थे जबकि दूसरे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।
8. इन्दिरा गांधी [ 14 जनवरी, 1980 से 31 अक्टूबर, 1984 ]
इन्दिरा गांधी की मृत्यु कार्यकाल के दौरान हुई तथा इनके समाधि स्थल को 'शक्ति स्थल' के नाम से जाना जाता है।
ध्यातव्य रहे - इंदिरा गांधी ऐसी प्रधानमंत्री थीं जिनके कार्यकाल में अनुच्छेद 356 का 17 बार प्रयोग हुआ।
9. राजीव गांधी [ 31 अक्टूबर, 1984 से 2 दिसंबर, 1989]
इनके कार्यकाल को पंचायती राज का स्वर्णकाल कहा जाता है। इन्हीं के कार्यकाल में 52वाँ संविधान संशोधन, 1985 दल-बदल विरोधी कानून पारित हुआ एवं 61वाँ संविधान संशोधन, 1989 से मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 की गई।
ध्यातव्य रहे - राजीव गांधी की समाधि स्थल को वीर भूमि के नाम से जाना जाता है तथा इन्होंने 29 जुलाई, 1987 को श्रीलंका के प्रधानमंत्री जयवर्द्धने के साथ कोलम्बो समझौता किया। स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य (अलवर) में मीटिंग ली गई थी ।
10. वी. पी. सिंह (विश्वनाथ प्रताप सिंह ) [ 2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990] -
अविश्वास प्रस्ताव पर हारने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे, जो प्रधानमंत्री बनने से पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।
11. चन्द्रशेखर [ 10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991] -
इन्हें इंदिरा गाँधी ने 'युवा तुर्क' कहा, क्योंकि कांग्रेसी नेता होते हुए भी इन्होंने कई बार कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया। ये एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री जो लाल किले पर तिरंगा नहीं फहराया तथा बिना मंत्री के प्रधानमंत्री बने।
12. पी. वी. नरसिम्हा राव [ 21 जून, 1991 से 1 मई, 1996 ] -
नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बनने के समय संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, बाद में उन्होंने लोकसभा (नांदियाल) की सदस्यता ग्रहण की, जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार हुआ। इनके कार्यकाल में 73वाँ व 74वाँ संविधान संशोधन 1993 में पारित हुआ।इनके समय में भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इन्होंने पंचसूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसे दूसरा पंचशील सिद्धांत कहा जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने का श्रेय पी.वी. नरसिम्हा को दिया जाता है। [BTET 2011]
13. अटल बिहारी वाजपेयी [ 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996 ]
इनका सबसे छोटा कार्यकाल (13 दिन) था।
14. एच.डी. देवगौड़ा [ 1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997 ]
श्री देवगौड़ा प्रधानमंत्री बनने के समय कर्नाटक विधानसभा के स सदस्य एवं मुख्यमंत्री थे। बाद में इन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ग्रहण की। इन्होंने CTBT (व्यापक परमाणु प्रतिबंधित निषेध संधि) संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार किया था और अविश्वास प्रस्ताव पर वाले दूसरे प्रधानमंत्री थे।
15. आई. के. गुजराल ( इन्द्र कुमार गुजराल) [ 21 अप्रैल, 1997 से 19 मार्च, 1998 ] -
इन्होंने 'लुक ईस्ट पॉलिसी' (पूर्व की ओर देखो) व 'मेटर्स ऑफ डिस्क्रीशन' नामक पुस्तकें लिखी। इन्होंने पड़ौसी देशों के साथ 'डॉक्टूिन' संधि को बढ़ावा दिया।
16. अटल बिहारी वाजपेयी [ 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004 ]
अटल बिहारी वाजपेयी प्रथम विशुद्ध गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1978 में मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री पद रहते हुए यू.एन.ओ. में हिन्दी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनका जन्मदिन 'क्रिसमस डे' (25 दिसम्बर) को आता है। इनके कार्यकाल में 11 व 13 मई 1998 को पोकरण (जैसलमेर) में परमाणु परीक्षण, 1999 में कारगिल संकट, 2000 में लाहौर घोषणा, 2000 में संविधान समीक्षा आयोग (वैंकट चलैया) तथा 13 दिसम्बर, 2001 को संसद पर हमला हुआ।
17. डॉ. मनमोहन सिंह [ 23 मई, 2004 से 22 मई, 2009 व 22 मई, 2009 से मई, 2014 तक ]
मनमोहन सिंह भारत के प्रथम सिक्ख प्रधानमंत्री एवं प्रमुख अर्थशास्त्री (मॉर्डन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के अध्यक्ष) थे। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व रिज़र्व बैंक के गवर्नर, भारत के वित्त मंत्री (1991-96 तक) तथा यू.जी. के अध्यक्ष भी रह चुके थे। असम से राज्यसभा सदस्य चुने गये थे (वर्तमान में राजस्थान से राज्यसभा सदस्य है)। इनके कार्यकाल में 2006 में भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हुआ।
18. नरेन्द्र दामोदर दास मोदी [ 26 मई, 2014 से लगातार ]
एकमात्र प्रधानमंत्री जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ, इनका जन्म 17 सितम्बर, 1950, मेहसाणा जिले के छोटे से कस्बे 'वडनगर (गुजरात) ' में जन्म हुआ था। ये बचपन में अपने परिवार के साथ चाय की दुकान पर चाय बेचते थे। 1970 में आर०एस०एस० से जुड़कर प्रचारक के रूप में कार्य किया।
प्रधानमंत्री बनने से पहले लगातार चार बार मुख्यमंत्री की शपथ ली तथा विकास पुरुष के नाम गुजरात से विख्यात हुये। पहली बार लोकसभा की सदस्यता ग्रहण (उत्तर) प्रदेश के वाराणसी) की व इसी के साथ प्रधानमंत्री बने और पहली विदेश यात्रा भूटान में की। वडोदरा सीट से इन्होंने कांग्रेस के मधुसूधन मिस्त्री को हराया जबकि वाराणसी सीट से आप पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को हराया।
नरेन्द्र मोदी सर्वाधिक मतों के अंतर से जीतने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री हैं। इन्होंने सितम्बर, 2014 में यू.एन.ओ. में हिन्दी में भाषण दिया। 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग का गठन किया। दूसरे कार्यकाल की प्रथम विदेश यात्रा मालदीव (8 जून, 2019) व श्रीलंका की रही तथा प्रथम विदेशी समिट यात्रा किर्गिस्तान बिश्केक की रही।
ध्यातव्य रहे - नरेन्द्र मोदी व एच.डी. दैवगोड़ा मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री बने।
ये भी जानें :
- मोरारजी देसाई त्यागपत्र द्वारा प्रधानमंत्री का पद छोड़ने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं तो चुनाव हारने वाली देश की प्रथम प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी हैं।
- जवाहरलाल नेहरू भारत के ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री थे जिनके विरुद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। अविश्वास प्रस्ताव जे.बी. कृपलानी द्वारा लाया गया। यह 22 अगस्त, 1963 को लोकसभा में बहस के लिए रखा। गया जो पारित न हो सका।
- अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे प्रधानमंत्री है जिनकी सरकार लोकसभा में बहस के दौरान एक मत से गिरी थी।
- पं. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा गांधी ऐसे प्रधानमंत्री है जो पद पर रहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुये।
- मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, वी. पी. सिंह, पी. वी. नरसिम्हा राव, एच.डी. देवगौड़ा व नरेन्द्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो अपने-अपने राज्य में मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं ।
- जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह के बाद नरेन्द्र मोदी पाँचवे प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दूसरी बार इस पद पर आसीन हुए हैं।
- भारत के चार प्रधानमंत्री ऐसे हैं जो राज्यसभा के सदस्य होते हुए भी प्रधानमंत्री बने- इंदिरा गांधी, इन्द्र कुमार गुजराल, एच. डी. देवगौड़ा, डॉ. मनमोहन सिंह ।
- भारत रत्न प्राप्त करने वाले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू (1955), लाल बहादुर शास्त्री (1966), इंदिरा गाँधी (1971), राजीव गाँधी मरणोपरांत (1991), मोरारजी देसाई (1991), गुलजारी लाल नंदा (1997) एवं अटल बिहारी वाजपेयी (2014)।
- सर्वाधिक 8 प्रधानमंत्री उत्तरप्रदेश से बने हैं।
- अविश्वास प्रस्ताव से हटने वाला प्रथम प्रधानमंत्री- वी.पी. सिंह (1990 ) । प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी व डॉ. मनमोहन सिंह के पास वित्त मंत्री का पद रहा।
- देश में चार प्रधानमंत्री ऐसे हुए जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने से पूर्व वित्त मंत्री पद पर भी कार्य किया- मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह व डॉ. मनमोहन सिंह ।
- संघीय एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय वितरण का आधार-वित्त आयोग।
- वे व्यक्ति जो राज्यसभा सदस्य थे और प्रधानमंत्री बने 1. इंदिरा गाँधी, 2. एच. डी. देवगोड़ा, 3. इन्द्र कुमार गुजराल व 4. मनमोहन सिंह।
उपप्रधानमंत्री
भारतीय संविधान में उपप्रधानमंत्री पद का कोई उल्लेख नहीं है। यह पद शासन की सुविधा के लिए बनाया जाता है। उपप्रधानमंत्री को कैबिनेटमंत्री के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है। 1990 में उपप्रधानमंत्री देवीलाल की शपथ को इस आधार पर चुनौती दी गई कि यह पद असंवैधानिक है।
अब तक कुल सात ( 7 ) व्यक्ति 8 बार उपप्रधानमंत्री बने जिनमें गुजरात राज्य (3) ने सर्वाधिक उपप्रधानमंत्री दिये हैं।
अब तक नियुक्त उपप्रधानमंत्री
ट्रिक - "पद चरण में जीवन है वाह देवी लाल।"
उपप्रधानमंत्री |
कार्यकाल |
तत्कालीन प्रधानमंत्री |
1. सरदार वल्लभभाई पटेल |
1947-1950 |
जवाहरलाल नेहरू |
2. मोरारजी देसाई |
1967-1969 |
इंदिरा गांधी |
3. जगजीवन राम |
1979-1979 |
मोरारजी देसाई |
4.चरण सिंह |
1979-1979 |
मोरारजी देसाई |
5. वाई.वी.
चव्हाण |
1979-1980 |
चौधरी चरणसिंह |
6. चौधरी देवीलाल |
1989-1990 |
विश्वनाथ प्रताप सिंह |
7. चौधरी देवीलाल |
1990-1991 |
चन्द्रशेखर |
8.लालकृष्ण आडवाणी |
2002-2004 |
अटल बिहारी वाजपेयी |
ध्यातव्य रहे - चौधरी देवी लाल ऐसे उपप्रधानमंत्री थे जिन्होंने दो (विश्वनाथ प्रताप सिंह व चंद्रशेखर ) प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया तो भारत का प्रथम उपप्रधानमंत्री लौह पुरुष, विश्वमारका व भारत का प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल हैं जिनकी नियुक्ति 15 अगस्त, 1947 को पं. जवाहरलाल नेहरू ने की।
संघीय मंत्रिपरिषद्
अनु. 74. राष्ट्रपति को सलाह व सहायता देने (कार्यपालिका संचालन के) के लिए एक मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है। सलाह की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। बिना सलाह किया जाने वाला कार्य असंवैधानिक होता है।
ध्यातव्य रहे - यहाँ मंत्रिपरिषद् की सलाह से तात्पर्य व्यावहारिक तौर पर केवल प्रधानमंत्री से है। कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद्) की समस्त शक्तियाँ सैद्धान्तिक रूप से राष्ट्रपति में निहित होती है, जबकि व्यावहारिक तौर पर इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् (मुखिया-प्रधानमंत्री) द्वारा किया जाता है।
मंत्रिपरिषद सदस्य ( मंत्री) बनने की योग्यता -
संसद के किसी भी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि मंत्री बनते समय संसद का सदस्य नहीं है तो उसे छः माह में किसी भी सदन की सदस्यता प्राप्त करनी आवश्यक है।
सदस्य संख्या 91वाँ संविधान संशोधन, 2003 के अनुसार, मंत्रिपरिषद् में मंत्रियों की संख्या निम्न सदन (लोकसभा) के सदस्यों की संख्या के 15% से अधिक (कुल 82 ) नहीं हो सकती। इसमें प्रधानमंत्री सम्मिलित है।
मंत्रिपरिषद् में विभागों का बंटवारा प्रधानमंत्री के द्वारा किया जाता है तथा प्रधानमंत्री के निर्देशानुसार ही राष्ट्रपति इन मंत्रियों को शपथ दिलाता है। मंत्रिपरिषद में तीन प्रकार के मंत्री आते हैं, जो कि लोकसभा के विश्वास तक अपने पद पर कार्य करते हैं।
ध्यातव्य रहे - मंत्रिपरिषद् के सदस्य दोहरी शपथ ग्रहण करते हैं।
अनु. 75[3] के तहत् मंत्रिपरिषद संसद के प्रति उत्तरदायी होती है तथा मंत्रिपरिषद सामुहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी (अर्थात् एक मंत्री द्वारा लिए गए फैसले की सजा समस्त मंत्रिमण्डल को भुगतनी पड़ती है।) होती है अर्थात् "एक साथ डूबते हैं और एक साथ तैरतें हैं।" जबकि मंत्रिपरिषद् व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति (संसद) के प्रति उत्तरदायी होती है।
मंत्रिपरिषद् में किसी मंत्री के द्वारा किए गए कार्य के लिए पूरी मंत्रिपरिषद उत्तरदायी होती है इसे हटाने के लिए लोकसभा के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। अविश्वास में मत केवल लोकसभा सदस्य ही देते हैं।
मंत्रियों की श्रेणी - मंत्रिपरिषद के मंत्रियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-
15 अगस्त 1947 को केन्द्र में 18 मंत्रालय थे, वर्तमान में 55 मंत्रालय हैं। सामान्यतया राष्ट्रपति द्वारा संसद में मनोनीत सदस्यों को मंत्रिपरिषद् में शामिल नहीं किया जाता है।
संसदीय सचिव -
ये पद संवैधानिक नहीं है 1967 के बाद इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई है। संसदीय सचिव की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा नहीं वरन्, प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है तथा वही इसे शपथ दिलाता है तथा ये प्रधानमंत्री के प्रति ही उत्तरदायी होता है।
किचेन कैबिनेट -
यह लघु निकाय होती है, जिसका निर्माण महत्त्वपूर्ण कैबिनेट मंत्रियों (लगभग 15 से 20 ) से मिलकर होता है। भारत में इसे प्रधानमंत्री की आंतरिक कैबिनेट कहा जाता है। यह औपचारिक रूप से निर्णय लेने वाली उच्चतम संस्था होती है।
ये भी जाने :
- भारत के एकमात्र मंत्री जो सबसे अधिक कार्यकाल (32 वर्ष) तक मंत्रिपरिषद् के सदस्य 'जगजीवन राम' रहे थे तो भारत के एकमात्र मंत्री जिन्होंने पहली बार मंत्रिपरिषद् से त्यागपत्र दिया 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी' थे।
- सर्वाधिक समय तक एक ही विभाग (स्वास्थ्य विभाग) के मंत्री पद पर रहने वाली डॉ. राजकुमारी अमृता कौर थीं, इनको यू.एन.ओ. (U.N.O.) के 'विश्व स्वास्थ्य संगठन विभाग' की अध्यक्षा बनाया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाली यह पहली एशियाई महिला थी।
मंत्रिमंडल
44वें संविधान संशोधन से पूर्व मंत्रिमण्डल शब्द का कोई उल्लेख नहीं था। संविधान में मंत्रिमंडल शब्द का कहीं भी उपयोग नहीं किया गया है। मंत्रिमंडलीय व्यवस्था वास्तव में संसदीय परंपरा की देन है जिसका विकास ब्रिटेन में हुआ है। यह परम्परा ऑयरलैण्ड, फ्रांस तथा इटली में भी प्रचलित हैं। मंत्रिमण्डल को 'चक्रों के भीतर चक्र' के नाम से भी जाना जाता है। मंत्री परिषद के सभी कैबिनेट मंत्रियों को मंत्रिमण्डल कहा जाता है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।
मंत्रिमण्डल के सदस्य अपने-अपने विभागों के स्वतन्त्र प्रभारी होते हैं तथा राज्य मंत्री व उपमंत्री इनके अधीन रहकर ही कार्य करते हैं।
संविधान में मंत्रिमण्डल शब्द का केवल एक बार प्रयोग हुआ है। (अनु. 352 में राष्ट्रपति आपातकाल लगा सकता है। प्रधानमंत्री व मंत्रीमण्डल के लिखित सलाह पर 44वें संविधान संशोधन के अन्तर्गत ।)
प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई किसी बैठक में ये बिना आमंत्रित किये उपस्थित होते है जबकि राज्य व उपमंत्री आमंत्रित किये जाने पर ही उपस्थित होते हैं।
मंत्रिपरिषद् एक संवैधानिक संस्था है जबकि मंत्रिमण्डल अभिसमय की उत्पत्ति योजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। योजना आयोग को 1 जनवरी, 2015 नीति आयोग कहा जाता है जो एक से संवैधानिक संस्था है ।
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