भारत की संसद (Parliament) - भारत में संघीय स्तर पर कानून निर्माण का कार्य संसद का है। संसदीय शासन व्यवस्था अपनाये जाने के कारण भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में ‘संसद' एक विशिष्ट एवं केन्द्रीय स्थान रखती है। संसद भारत की सर्वोच्च विधायिका है ।
भारत की संसद (Parliament) राज्यसभा एवं लोकसभा
संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार संसद का गठन राष्ट्रपति एवं दो सदनों - राज्यसभा (उच्च सदन) एवं लोकसभा (निम्न सदन) से मिलकर हुआ है। राज्यों की परिषद् को राज्यसभा (Council of States) तथा लोगों के सदन (House of People) को लोकसभा कहते हैं।
भारत की संसद (Parliament) राज्यसभा एवं लोकसभा |
राज्यसभा (Council of state)
राज्यसभा भारतीय संसद का 'उच्च सदन' (Upper House) है। यह राज्यों का सदन है। राज्यसभा में दो प्रकार के सदस्य होते हैं-
- निर्वाचित एवं
- मनोनीत
संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें 238 सदस्य विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों (दिल्ली एवं पाण्डिचेरी) के विधानमंडलों द्वारा निर्वाचित होते हैं एवं 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। ये 12 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, एवं समाज सेवा क्षेत्र में विशेष ज्ञान एवं व्यावहारिक अनुभव रखने वाले होते हैं।
राज्यसभा में सर्वाधिक सदस्य उत्तर प्रदेश से 31 चुने जाते हैं।
राज्यसभा एक स्थायी सदन है जिसका कभी विघटन/समापन नहीं होता। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। प्रत्येक दो वर्ष में इसके एक-तिहाई (1/3) सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं, जिनके स्थान पर नये सदस्यों का निर्वाचन होता है। कार्यकाल समाप्ति से पूर्व किसी सदस्य का पद रिक्त हो जाने पर उसके स्थान पर निर्वाचित सदस्य उसकी शेष अवधि के लिए ही सदस्य रहता है। राज्यसभा में राज्यों को जनसंख्या के प्रथम 50 लाख व्यक्तियों तक हर 10 लाख व्यक्तियों के लिए एक और उसके पश्चात् प्रत्येक 20 लाख पर एक के हिसाब से प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
संसद में राज्यसभा संविधान के संघीय स्वरूप (Federal Structure ) का प्रतिनिधित्व करती है।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है, परंतु वह राज्यसभा या लोकसभा का सदस्य नहीं होता है। राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव सदस्यों द्वारा अपने में से ही किया जाता है।
वर्तमान में राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, जिनमें 233 निर्वाचित एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं। विभिन्न राज्यों को आवंटित सीटें संविधान की (चौथी अनुसूची में दी गई हैं।
राज्यसभा सदस्य हेतु योग्यताएँ:
- भारत का नागरिक हो,
- 30 वर्ष से कम आयु का न हो।
- सरकार में किसी लाभ के पद पर न हो।
धिवेशन एवं गणपूर्ति:-
लोकसभा की भाँति राज्यसभा के भी वर्ष में कम-से-कम दो अधिवेशन अवश्य होने चाहिए अर्थात् दो अधिवेशनों के बीच का अंतराल 6 माह से अधिक नहीं होना चाहिए। इस प्रकार राज्यसभा की वर्ष में कम से कम दो बैठकें होना अनिवार्य है। राज्यसभा के अधिवेशन हेतु गणपूर्ति संख्या 1/10 है। राष्ट्रपति ही राज्यसभा के सत्र को आहूत करता (बुलाता ) है एवं वही सत्र का 'सत्रावसान' करता है। राज्यसभा की बैठक को स्थगित (Adjourn) करने का अधिकार इसके तत्कालीन सभापति को होता है।
कार्य एवं शक्तियाँ:
विधायी शक्तियाँ: साधारण विधेयकों पर राज्यसभा को लोक सभा के अनुरूप ही शक्तियाँ प्राप्त है। परन्तु यदि साधारण विधेयकों पर दोनों सदनों में मतभेद हो और 6 महीनों तक यही स्थति बनी रहे तो राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करता है। संख्या बल के कारण लोकसभा ऐसी स्थिति में अधिक प्रभावशाली होती है।
वित्तीय शक्तियाँ: राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में अत्यन्त कम वित्तीय शक्तियाँ प्राप्त है। लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक को राज्यसभा अधिक से-अधिक 14 दिनों तक अपने पास रख सकती है। उसके पश्चात् विधेयक पारित माना जाता है। राज्यसभा द्वारा लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक में कोई संशोधन किये जाने पर वह विधेयक पुनः लोकसभा में विचारार्थ जाता है जिसे लोकसभा उसी रूप में या अपने अनुसार संशोधित रूप में या मूल रूप में स्वीकार कर सकती है।
कार्यपालिका शक्तियाँ: राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में कम कार्यपालिका शक्तियाँ प्राप्त है। राज्यसभा में मन्त्रियों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं रखे जा सकते। जबकि किसी मंत्री के विरुद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाने पर संपूर्ण मंत्रिपरिषद् को ही त्यागपत्र देना होता है। अतः कार्यपालिका को लोकसभा का विश्वास प्राप्त रहना जरूरी है। परन्तु राज्यसभा में मन्त्रियों से उनके कार्यों के बारे में प्रश्न किये जा सकते हैं।
राज्यसभा की विशिष्ट शक्तियाँ:
- राज्यसूची में वर्णित किसी विषय पर संसद द्वारा कानून बनाने का संकल्प पारित करना। ऐसा केवल राज्यसभा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित कर सकती है।
- अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन जैसे IAS, IPS, IFS आदि।
लोकसभा (House of people)
लोकसभा संसद का निम्न सदन है, जिसके सदस्य भारत की जनता द्वारा क्षेत्रवार प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा (वयस्क मताधिकार द्वारा) बहुमत के आधार पर चुने जाते हैं। यह जनता का सदन है।
इस हेतु प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्र को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य बहुमत के आधार पर उस क्षेत्र की जनता (मतदाता सूची में शामिल वयस्क व्यक्तियों) द्वारा चुना जाता हैं।
गठनः
संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं जिनमें निम्न होंगे-
- राज्यों के मतदाताओं द्वारा निर्वाचित 530 सदस्य।
- केन्द्र शासित क्षेत्रों के मतदाताओं द्वारा निर्वाचित 20 सदस्य ।
- उचित प्रतिनिधित्व न होने पर आंग्ल भारतीय (Anglo-Indian) समुदाय के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत दो सदस्य।
वर्तमान में लोकसभा की सदस्य संख्या 545 है, जिसमें राज्यों के 530 सदस्य, केन्द्र शासित क्षेत्रों के 13 सदस्य तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत आंग्ल समुदाय के दो सदस्य हैं।
कार्यकालः
सामान्यतया लोकसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष है। इससे पूर्व भी राष्ट्रपति द्वारा इसे भंग (विघटित) किया जा सकता है। आपातकाल में इसके कार्यकाल में वृद्धि की जा सकती है।
लोकसभा सदस्य की योग्यताएँ:-
- भारत का नागरिक हो एवं कम से कम 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- भारत के किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत मतदाता हो।
- सरकार में लाभ के पद पर न हो।
लोकसभा अध्यक्ष-
लोकसभा सदस्यों द्वारा अपने में से ही अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाता है। उसे सदस्यों द्वारा उसके पद से हटाया भी जा सकता है। लोकसभा भंग हो जाने पर भी अध्यक्ष अगली लोकसभा की प्रथम बैठक के ठीक पूर्व तक अपने पद पर बना रहता है, बशर्ते कि लोकसभा ने उसे इसके पूर्व पद से हटाया न हो। लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा का प्रमुख पीठासीन अधिकारी होता है। वह लोकसभा का सदस्य होता है।
लोकसभा उपाध्यक्षः-
उपाध्यक्ष का चुनाव भी लोकसभा सदस्य अपने में से ही बहुमत द्वारा करते हैं। उपाध्यक्ष अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अपने पद की अलग से शपथ ग्रहण नहीं करते हैं। वे केवल लोकसभा सदस्य के रूप में ही शपथ ग्रहण करते हैं।
प्रोटेम स्पीकर:-
लोकसभा के आम चुनाव के बाद गठित लोकसभा की प्रथम बैठक की अध्यक्षता करने हेतु राष्ट्रपति नवगठित लोकसभा के वरिष्ठतम सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करते हैं। इसे ही प्रोटेम -स्पीकर कहते हैं। यह लोकसभा के सभी सदस्यों को शपथ दिलाता है एवं अध्यक्ष के निर्वाचन का अध्यक्ष के रूप में संचालन करता है। सदन द्वारा अध्यक्ष का निर्वाचन हो जाने पर प्रोटेम स्पीकर का पद स्वतः समाप्त हो जाता है। लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष श्री गणेश वासुदेव मावलंकर थे, जो 15 मई, 1952 से 27 फरवरी, 1956 तक पद पर रहे।
लोकसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार:-
- कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका सत्यापन (निर्धारण) केवल लोकसभाध्यक्ष ही करता है।
- संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता हमेशा लोकसभाध्यक्ष करता है। संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान अनुच्छेद 108 में है।
- संसद की विभिन्न समितियाँ अनिवार्यत: उसके अधीन कार्य करती हैं और उन समितियों के अध्यक्षों का मनोनयन लोकसभाध्यक्ष ही करता है।
लोकसभा का विघटनः
राष्ट्रपति अपने विवेकानुसार लोकसभा का विघटन (समय से पूर्व समापन) कर सकता है। विघटन के बाद पुनः लोकसभा आम चुनाव द्वारा नई लोकसभा का गठन किया जाता है।
अधिवेशन, गणपूर्ति एवं विघटनः-
लोकसभा के वर्ष में कम से कम दो अधिवेशन अवश्य होने चाहिए अर्थात् दो अधिवेशनों के बीच अंतराल 6 माह से अधिक नहीं होना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक सदन की वर्ष में कम से कम दो बैठकें अवश्य होनी चाहिए। राष्ट्रपति सदन के अधिवेशन को आहूत करता है। राष्ट्रपति ही संसद के सत्र का सत्रावसान करता है। राष्ट्रपति समय से पूर्व लोकसभा का विघटन कर सकता है। (अनु. 85 (1)) सदन (लोकसभा) की गणपूर्ति या कोरम सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 है। लोकसभा के सत्र का स्थगन (adjournment) उसका तत्समय का अध्यक्ष (speaker) ही कर सकता है।
लोकसभा के कार्य एवं शक्तियाँ:-
विधायी शक्तियाँ: लोकसभा का प्रमुख कार्य कानूनों का निर्माण करना है। वह संघ सूची, समवर्ती सूची एवं कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून निर्माण कर सकती है। लोकसभा की विधायी शक्तियों में राज्यसभा साझेदार है। कोई भी साधारण विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।
वित्तीय शक्तियाँ:
संविधान वित्त के संदर्भ में लोक सभा को महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते है। (अनुच्छेद-109)। लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक को राज्यसभा अधिक से अधिक 14 दिनों तक अपने पास रख सकती है। इस अवधि के पश्चात् धन विधेयक राज्य सभा द्वारा पारित माना जाता है। लोकसभा अध्यक्ष ही यह निर्धारित करता है कि कोई विधेयक' धन विधेयक' है या नहीं?
कार्यपालिका शक्ति -
कार्यपालिका पर लोकसभा द्वारा पूर्ण नियन्त्रण रखा जाता है। मंत्रिपरिषद् संयुक्त रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। वह लोकसभा के विश्वास पर्यन्त ही अपने पद पर बनी रह सकती है। लोकसभा समय-समय पर मन्त्रियों से उनके विभागों के कार्यों एवं उपलब्धियों के सम्बन्ध में प्रश्न कर सकती है।
अन्य शक्तियाँ:
लोकसभा को निम्नलिखित अन्य शक्तियाँ प्राप्त हैं-
- संविधान संशोधन करना।
- राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेना।
- राष्ट्रपति द्वारा जारी आपात् उद्घोषणाओं का अनुमोदन करना।
- राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रस्ताव पर निर्णय करना।
- राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेशों का अनुमोदन करना।
- उपराष्ट्रपति, उच्चतम व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों, निर्वाचन आयुक्त, नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक आदि की पदमुक्ति हेतु महाभियोग प्रस्ताव पर निर्णय देना।
- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का निर्माण करना।
- संवैधानिक आयोगों एवं अभिकरणों के प्रतिवेदनों पर विचार करना।
- कार्यपालिका (सरकार) के कार्यों पर नियंत्रण रखना।
लोक सभा केवल दो ही परिस्थितियों में विघटित हो सकती है-
- जब उसका 5 वर्ष का निर्धारित कार्यकाल समाप्त हो गया हो।
- जब राष्ट्रपति द्वारा समय से पूर्व उसे विघटित कर दिया जाए।
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ:
ये शक्तियाँ केवल लोकसभा को ही प्राप्त है, राज्यसभा को नहीं।
धन विधेयक या वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
धन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद राज्यसभा केवल उस पर अपनी अनुशंसा कर सकती है, जिसे लोकसभा स्वीकार कर भी सकती है और अस्वीकार भी। राज्यसभा को वह धन-विधेयक अधिकतम 14 दिन में पारित कर लोकसभा को पुनः लौटाना होता है। अन्यथा वह विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित मान लिया जाता है।
केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, राज्यसभा के प्रति नहीं। अतः मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास / विश्वास प्रस्ताव लोकसभा में ही लाया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव के बाद प्रथम सत्र के आरंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करता है तथा उसमें अपना अभिभाषण प्रस्तुत करता है। (अनु. 87)
विधेयकों के प्रकार एवं उनको पारित करना संसद देश की सर्वोच्च विधि निर्माणक संस्था है। कानून बनाने हेतु सर्वप्रथम विधेयक संसद के किसी सदन में प्रस्तुत करना होता है। विधेयक एक प्रस्तावित विधान होता है जो संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने के बाद राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने पर कानून का रूप लेता है। विधेयक अग्र प्रकार के होते हैं-
- साधारण विधेयक
- धन- विधेयक
- वित्तीय विधेयक
- संविधान संशोधन विधेयक।
वित्तीय, धन एवं संविधान संशोधन विधेयक के अलावा सभी विधेयक साधारण विधेयक होते हैं। साधारण विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से पारित किये जाते हैं। इन विधेयकों के संबंध में संसद के दोनों सदनों को समान शक्ति है। विधेयक को पारित करने हेतु प्रत्येक सदन में उस पर तीन वाचन होते हैं।
धन-विधेयकः
धन विधेयक के मामले में लोकसभा को अधिक शक्ति प्रदान की गई है। राज्यसभा को इस हेतु केवल नाममात्र की शक्तियाँ हैं । वह धन-विधेयक को न तो 14 दिन से अधिक रोक सकती है और न ही अस्वीकार कर सकती है। धन-विधेयक के मामले में संसद का संयुक्त अधिवेशन भी नहीं बुलाया जा सकता। वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुशंसा पर पहले लोकसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं राज्यसभा में नहीं। परंतु इन्हें पारित करने के मामले में शेष प्रक्रिया साधारण विधेयक की तरह ही अपनाई जाती है।
संविधान संशोधन विधेयक (अनु. 368) :
संविधान संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में वर्णित है। भारतीय संविधान एक लिखित संविधान होते हुए भी काफी परिवर्तनशील संविधान है। संसद द्वारा संविधान में संशोधन अनु. 368 के तहत् दो प्रकार से किया जा सकता है
- विशेष प्रस्ताव द्वारा: सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत एवं उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित हो ।
- विशेष प्रस्ताव एवं कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा इसका अनुमोदन ।
संविधान में केवल कुछ ही उपबंध हैं, जिनमें परिवर्तन करने के लिए इस विशेष प्रक्रिया को अपनाया जाता है। अधिकतम उपबंधों को संसद द्वारा साधारण बहुमत से ही संशोधित किया जा सकता है।
वे उपबंध जो संघात्मक ढाँचे से संबंधित हैं, उनके संशोधन के लिए संसद के प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत एवं 2/3 सदस्यों का बहुमत तथा कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों का समर्थन आवश्यक है। ऐसे उपबंध निम्न हैं
- राष्ट्रपति का निर्वाचन व निर्वाचन की रीति (अनु. 54-55)
- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार। (अनु. 73)
- राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार। (अनु. 162)
- संघ राज्य क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय। (अनु. 241, 279A)
- संघ की न्यायपालिका । संविधान के भाग V के अध्याय 4 (अनु. 124-147)
- राज्यों के उच्च न्यायालय। भाग VI का अध्याय 5 (अनु. 214-231)
- संघ व राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण। भाग XI का अध्याय 1 (अनु. 245-255)
- सातवीं अनुसूची की सूची में परिवर्तन ।
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व ।
- अनुच्छेद 368 के उपबंध में।
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