प्रत्येक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास ( मानसिक, भौतिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास) के लिए कुछ अधिकार दिये जाने आवश्यक होते हैं। इनके अभाव में व्यक्ति का समग्र विकास रूक जाता है। ये अधिकार ही मौलिक अधिकार कहलाते हैं अर्थात् व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए राज्य द्वारा स्थापित की गई ऐसी स्थितियाँ जिन्हें समाज मान्यता प्रदान करता है, उसे मूल अधिकार कहते हैं ।
विश्व में मूल अधिकारों की शुरूआत 1215 ई. में ब्रिटेन सम्राट जॉन द्वितीय द्वारा सर्वप्रथम मैग्नाकार्टा नामक अधिकार पत्र जारी कर किसानों को अधिकार देने के साथ की गई। उसके बाद 1789 ई. में फ्रांसीसी क्रांति में तीन नारे लगाये गये-'स्वतंत्रता, समानता व भ्रातृत्व'। लेकिन मौलिक अधिकारों की लिखित अभिव्यक्ति पूरे विश्व में सर्वप्रथम अमेरिका ने की।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का वर्णन |
ध्यातव्य रहे मौलिक अधिकार की जननी यदि ब्रिटेन को कहा जाता है, तो भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में समान अधिकार तथा नस्ल भेद को समाप्त करने की मांग को लेकर नागरिक अधिकार आंदोलन चलाया गया था | CTET-2013, 2015]
10 दिसम्बर 1948 [UPTET-2013 ] को UNO के तत्वाधान में एलिनोर रूजवेल्ट के नेतृत्व में 30 सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा की गई। अतः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के प्रथम अध्यक्ष- एलिनोर रूजवेल्ट। अब इस संघ का नाम बदलकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् कर दिया गया।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग-इसकी स्थापना 10 अक्टूबर, 1993 में की गई। इसके प्रथम अध्यक्ष श्री रंगनाथ मिश्र थे।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का वर्णन
भारतीय संविधान के भाग-3 [UPTET-2017] में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का विस्तृत विवरण दिया गया है
भारत में पहली बार मौलिक अधिकारों की माँग बाल गंगाधर तिलक ने अपने स्वराज्य विधेयक (1895 ई.) में की थी तो पहली बार मौलिक अधिकारों का वर्णन मोतीलाल नेहरू की नेहरू रिपोर्ट (1928 ई.) में मिलता है।
बालगंगाधर तिलक के स्वराज्य विधेयक के बाद एनी बेसेन्ट के नेतृत्व में गृह स्वराज्य बिल (Home Rule Bill) के तहत् मौलिक अधिकारों की मांग रखी गयी।
1925 में तैयार किये गये कॉमनवेल्थ बिल ऑफ इंडिया में मौलिक अधिकारों की बात की गई। फिर 1927 में कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में ए. एम. अंसारी द्वारा मौलिक अधिकारों की मांग रखी गयी और संविधान निर्माण के लिए दो समितियाँ गठित की गई, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता वाली मौलिक अधिकार समिति व जे.बी. कृपलानी की अध्यक्षता वाली मौलिक अधिकारों की उपसमिति थी।
ध्यातव्य रहे - उपसमिति में एक महिला सदस्य अमृता कौर थी। जो भारत की प्रथम महिला मंत्री व एक ही पद पर सर्वाधिक समय तक रहने वाली महिला थी (स्वास्थ्य विभाग मंत्री) । WHO में प्रथम भारतीय महिला मंत्री भी बनी।
मूल अधिकारों को भारत का अधिकार-पत्र/भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा/भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ कहा जाता है।
रूसी व अमेरिका क्रान्ति के कारण इन्हें 'Bill of Right' के नाम से जाना जाता है।
ध्यातव्य रहे - भाग-3 को डॉ. भीमराव अम्बेड़कर ने सर्वाधिक प्रकाशमान व अलौकिकता भाग बतलाया है, क्योंकि संविधान सभा ने इस पर 38 दिन तक विचार किया था।
मौलिक अधिकारों की प्रकृति नकारात्मक होती है परन्तु ये वाद योग्य होते हैं। इन्हें न्यायालय के द्वारा लागू कराया जा सकता है। इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य लोकतन्त्रात्मक राज्य या राजनैतिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।
ध्यातव्य रहे - अनु. 15, 16, 19, 29, 30 में उल्लेखित मौलिक अधिकार वे हैं जो केवल भारतीयों को प्राप्त है तो अनुच्छेद 14, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26, 27, 28 भारतीयों के साथ विदेशियों को प्राप्त मौलिक अधिकार हैं।
Very Most - अनु. 19 आपातकाल में सबसे पहले निलम्बित होता है तो अनु. 20 व 21 वें मौलिक अधिकार हैं जो आपातकाल में भी निलम्बित नहीं होते हैं। बी. आर. अम्बेडकर ने कहा है कि 'सभी भारतीयों को मतदान का अधिकार होना चाहिए चाहे उनका सामाजिक आर्थिक स्तर कुछ भी हो।' [CTET-2012, UPTET 2016 |
मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संविधान संशोधन 1978 के तहत् सम्पत्ति के मौलिक अधिकार [CGTET-2011, CTET-2018 ] को इस सूची से अलग कर इसे अनुच्छेद 300'क' ( पहले इसका उल्लेख अनुच्छेद 31 में था) के तहत् केवल 'विधिक/ कानूनी' [PTET-2011, HTET-2014] अधिकार बना दिया गया है अतः वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार RTET-2011] भारतीय नागरिकों को प्राप्त हैं।
मूल अधिकारों के प्रमुख अनुच्छेद
ध्यातव्य रहे - अनुच्छेद 33, 34, 35 में सैन्य अधिकार वर्णित है तथा अनुच्छेद 31 (सम्पत्ति का अधिकार) निरस्त कर दिया गया है, अतः वर्तमान में मौलिक अधिकारों का वर्णन अनुच्छेद 14 से 32 तक है।
अनु. 12 राज्य की परिभाषा संघ के रूप में
अनु. 13-न्यायिक पुनरावलोकन पद्धति सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा
1. समता / समानता का अधिकार (अनु. 14-18)
अनु. 14-विधि के समक्ष समानता (ब्रिटेन से लिया गया) संविधान के अनुच्छेद 39(a) में उल्लेख है कि गरीबों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराया जाये। विधि का समान संरक्षण U.S.A. से लिया गया।
अनु. 15-धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म के स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध ।
अनु. 16-लोक नियोजन व सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता।
ध्यातव्य रहे - अनु. 16 (4) अपवाद 'आरक्षण' का उल्लेख । कुछ विशेष वर्गों (अनुसूचित जाति व जनजाति) को आरक्षण दिया जाता है। परंतु न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4) के लागू होने की दो शर्ते निर्धारित की हैं- 1. वर्ग पिछड़ा हो (सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से) 2. उसे राज्य के अधीन पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला मिला हो।
अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम 1955 पारित किया। 1976 ई. में इसमें अनेक संशोधन भी किए गए। 1989 में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति निरोधक कानून पारित किया गया।
अनु. 18-उपाधियों का अन्त
अनु. 18 (1) यह निषेध करता है कि राज्य सेना व विद्या संबंधी सम्मान के अलावा कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
18(2) - भारत का कोई नागरिक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा।
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनु. 19-22)
अनु. 20 अपराधों की दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण (सभ्य) नागरिक को न कि मुजरिमों को) । (1) अपराध करते समय जो कानून लगा था वह ही रहेगा बदला हुआ कानून नहीं लागू होगा।
(i) एक अपराध के लिए केवल एक ही बार सजा। (iii) स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए कोई विवश नहीं कर सकता।
Very Most - अनु. 21 प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता |PTET 2011, CTET-2012]- राष्ट्रीय आपातकाल में भी समाप्त नहीं होती। अन्य मूल अधिकारों को राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलम्बित किया जा सकता है
ध्यातव्य रहे - पूरे विश्व में इच्छा मृत्यु की अनुमति नीदरलैंड में दी। जाती हैं लेकिन केवल बीमार व्यक्ति को न कि स्वस्थ व्यक्ति को।
अनु. 21(क) 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का अधिकार | BTET-2011, CTET-2012] । इसे 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा मौलिक अधिकार बनाया गया जो 1 अप्रैल, 2010 से लागू कर दिया गया है। निजता (एकान्तता) का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अगस्त, 2017 को अपने फैसले में कहा है कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के अनु. 21 के तहत मौलिक अधिकार है। बालकों का अधिकार बिल (1992) का अनु. 42 यह कहता है कि 'मुझे मेरे अधिकारों को जानने का अधिकार है। [RTET-2012)
अनु. 22 कुछ विशेष परिस्थितियों में गिरफ्तारी के सम्बन्ध में संरक्षण (प्रतिषेध)।
सूचना का अधिकार अधिनियम जून, 2005 को पारित किया गया [UPTET-2014], जिसे 12 अक्टूबर, 2005 को पूरे देश में लागू किया गया।
3. शोषण के विरुद्ध (अनु. 23-24)
अनु. 23-मानव के साथ दुर्व्यवहार (सामाजिक, आर्थिक रू से) एवं बलात श्रम (बंधुआ मजदूर, सागड़ी प्रथा, हाली प्रथा, बेगा प्रथा) का निषेध |
अनु. 24-बालश्रम का संकटमय उद्योगों में निषेध 10 अक्टूबर 2006 से बालश्रम (14 वर्ष से कम) (CGTET-2011] को पूण् रूप से निषेधित कर बालश्रम व संरक्षण आयोग का गठन।
ध्यातव्य - गुरुपद स्वामी की अनुशंसा पर 1986 में बालश्रम कानून बनाया गया। 2014 का शांति का नोबेल पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी (भारतीय) व मलाला यूसुफजई (पाक) को संयुक्त रूप से बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने व बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए दिया गया था। बचपन बचाओ आंदोलन- 1980, प्रणेता कैलाश सत्यार्थी
4. धार्मिक स्वतन्त्रता (अनु. 25-28)
5. संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार (अल्पसंख्यकों ) अनु.29-30
अनु. 29-अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी भाषा, लिपि को सुरक्षित और संरक्षित रखने का अधिकार अर्थात् अल्पसंख्यक वर्ग के हितों का संरक्षण शैक्षिक, भाषा, और लिपि के संदर्भ में सरकार इनकी सहायता करेगी ।
अनु. 30-अल्पसंख्यकों द्वारा शिक्षण संस्थाओं की स्थापना एवं प्रबन्ध एवं प्रशासन से सम्बन्धित अधिकार।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनु. 32-35 )
अनु. 32-बी.आर. अम्बेडकर ने इसे 'संविधान की आत्मा/हृदय' [CGTET-2011] कहा। इस अधिकार को 'गॉर्ड' (जनतंत्र का पहरेदार) कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि यह नागरिकों को अनुमति देता है कि वे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं, यदि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का सरकार द्वारा उल्लंघन हुआ है | CTET-2012, 2015] । इस प्रकार यह अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है | CTET-2014] | अनु. 32 में उच्चतम न्यायालय तथा अनु. 226 में उच्च न्यायालय [UPTET 2017] के द्वारा निम्न पाँच लेख जारी करने की शक्ति देता है।
(2) परमादेश ( मैण्डेमस) हम आदेश देते हैं। यह लेख उच्च न्यायालय या उच्चाधिकारियों द्वारा अधीनस्थ न्यायालय या कर्मचारियों को उसके सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए दिया जाता है। यह रिट सबसे शक्तिशाली रिट है जो केवल सरकारी पदाधिकारी के विरूद्ध लागू किया जा सकता है। लेकिन इसे राज्यपाल व राष्ट्रपति के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है।
(3) प्रतिषेध (प्रोहिबेसन) मना करना [CTET-2016] यह लेख उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है। इस लेख द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को सूचित किया जाता है। कि आपके यहाँ चल रहे किसी विवाद पर सुनवाई बंद कर दे क्योंकि अब यह आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं रहा। ऐसा करने के निम्न लाभ हैं-अधीनस्थ न्यायालयों को निरंकुश होने से रोका जा सकता है।
(4) उत्प्रेषण (सर्शियोरेरी ) - इसका अर्थ है कि 'और जानकारी दीजिए'। यह लेख उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से किसी वाद के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए जारी करता है कि आपके यहाँ पर चल रहे किसी वाद जैसे-अ बनाम ब में आप द्वारा लिए गए निर्णय एवं उस केस से सम्बन्धित एकत्रित किए गए गवाह सबूतों की अधिक से अधिक जानकारी दी जाती है। "जिससे कि न्यायिक सिद्धान्तों के विपरीत यदि मानवीय भूल के कारण अधीनस्थ न्यायालय ने कोई गलत निर्णय दे दिया तो उसके स्थान पर सही निर्णय दिया जा सकेगा और यह केस अब अधीनस्थ न्यायालय में ना चलकर अब उच्च न्यायालय में चल सकेगा।
(5) अधिकार पृच्छा (को-वारंटो) [HTET-2014] - इसका अर्थ है तुम्हे क्या हक है। इस लेख द्वारा उच्चाधिकारियों द्वारा निम्न अधिकारियों से पूछा जाता है कि आपको इस पद पर कार्य करने का क्या हक है जिस पर आपकी संवैधानिक नियुक्ति नहीं हुई। जब तक वह उसका उचित जवाब नहीं देता तब तक उस पद पर कार्य नहीं कर सकता।
ध्यातव्य रहे - यदि कोई कर्मचारी अधीनस्थ न्यायालय / कार्यालय न्यायपालिका के आदेशों की बार-बार अवहेलना कर रहा है तो उसके खिलाफ अब कौनसा लेख जारी किया जाएगा अवमानना नोटिस।
ध्यातव्य रहे - 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के तहत् अनुच्छेद 20 एवं 21 में उल्लेखित अधिकार आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं होंगे।
मौलिक अधिकारों में संशोधन सम्बन्धित कुछ विवाद
1967 के गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है तो 1973 के केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है परन्तु इसके मौलिक स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती।
1980 के मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों की सर्वोच्च स्थिति निर्धारित की गयी।
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