संविधान Constitution शब्द की उत्पत्ति लैटिन / रोमन शब्द Constiture से हुई है, जिसका सामान्य अर्थ 'बनावट' है अर्थात् "जनता (संविधान सभा) द्वारा निर्मित नियम एवं कानूनों का वह संकलन (पुस्तक) जिससे देश व राज्य की शासन व्यवस्था चलाई जाती है, संविधान कहलाता है। "
ध्यातव्य रहे - सही रूप से कानूनों के दस्तावेजों का संहिताकरण सर्वप्रथम रोमन साम्राज्य में किया गया था, जिसे 'Twelve Table / बारह तख्तियों का कानून कहा गया।
भारतीय संविधान का निर्माण व विशेषतायें
संविधान संबंधी प्रमुख तथ्य - संविधान के प्रेरणा स्रोत 17वीं व 18वीं शताब्दी की लोकतांत्रिक क्रांतियाँ है। संविधान का सूत्रपात इंग्लैण्ड के सामंतवादियों तथा हेनरीमैन के संविधानवाद के विचार, से हुआ, तो सर्वप्रथम इसका क्रियान्वयन अमेरिका में हुआ। पूरे विश्व में संविधान शब्द का पहली बार प्रयोग सर हेनरीमैन ने किया था तथा पूरे विश्व में संविधान का प्राचीन स्वरूप ब्रिटेन के संविधान को माना गया लेकिन इंग्लैण्ड का संविधान (इंग्लैण्ड के संविधान को संयोग और बुद्धिमता का शिशु कहा गया है) एक अलिखित संविधान (अभिसमय / परम्पराओं पर आधारित) है। इसी कारण पूरे विश्व का प्रथम लिखित संविधान अमेरिका के संविधान को माना गया है। अगर हम एशिया महाद्वीप की बात करें तो एशिया में पहला लिखित संविधान जापान देश का था लेकिन विश्व में सबसे बड़े लिखित संविधान की बात करें तो हमारे भारत देश का संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
विश्व में संविधान की शुरूआत |
5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 व धारा-35ए हटाने के लिए संविधान आदेश (जम्मू कश्मीर के लिए [PTET-2011]) 2019 के तहत अधिसूचना जारी की। अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य पुनर्गठन विधेयक पेश किया गया, जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर अब दिल्ली और पुदुचेरी की तरह विधानसभा वाला केन्द्रशासित प्रदेश होगा। लद्दाख को भी केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया है, लेकिन वहाँ विधानसभा नहीं होगी। केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में 20 जिले और लद्दाख ( कारगिल और लेह ) में 2 जिले होंगे, जो 31 अक्टूबर, 2019 तक अस्तित्व में आ जाएंगे।
ध्यातव्य रहे - विश्व में संविधान की उत्पत्ति का महत्त्वपूर्ण स्रोत 'बेबीलोनिया हम्मूराबी संहिता' को माना जाता है तो विश्व में आधुनिक संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत 'अमेरिका के संविधान' ( 4 मार्च, 1789 ) को माना गया है जो विश्व का पहला लिखित संविधान है।
- एशिया का प्रथम लिखित संविधान जापान का है (1860)
- विश्व का सबसे पुराना संविधान ब्रिटेन का है।
संविधान निर्माताओं ने कई देशों के संविधान का अध्ययन करने के पश्चात् हमारे संविधान का निर्माण किया इसलिए भारतीय संविधान को 'उधार का थैला / Bag of Borrowings' कहा जाता है।
भारतीय संविधान विश्व का सबसे लिखित विस्तृत संविधान है जिसमें मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियाँ थी तथा जबकि गणना की दृष्टि से वर्तमान में 465 (NCERT के अनुसार 475) अनुच्छेद सहित, 25 भाग तथा 12 अनुसूचियाँ हैं, यह संविधान सफेद कागज पर अंग्रेजी भाषा में लिखा गया लेकिन इसके अनुच्छेदों की अनुकृति चाँदी के पन्नों पर लिखी गई थी, जिसमें लगभग 7.5 किग्रा. चाँदी का प्रयोग किया गया था।
आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को 'वकीलों का स्वर्ग' कहा है क्योंकि यह भ्रम एवं विवाद को जन्म देता है । भारतीय संविधान का मूल स्त्रोत 'भारत शासन अधिनियम 1935' है, जिसमें वर्तमान संविधान में लगभग दो तिहाई भाग सम्मिलित है।
भारतीय शासन व्यवस्था में एक प्रतिनिधि एवं लोकप्रिय घटक को समाविष्ट करने का प्रथम प्रयास भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 के द्वारा किया गया था।
पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 भारत में समस्त ब्रिटिश संवैधानिक प्रयोगों में सबसे अल्पकालिक सिद्ध हुआ, तो वहीं इस अधिनियम द्वारा बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल की स्थापना की गई थी।
1813 के चार्टर अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया था। एक्ट ऑफ 1909 (मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम) के द्वारा मुसलमानों के लिए पृथक मताधिकार व पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना की गई।
भारत सरकार अधिनियम 1919 ई
भारत सरकार अधिनियम 1919 ई. (मोन्टेग्यू चेम्सफोर्ड | सुधार अधिनियम) के तहत प्रान्तों में द्वैध शासन प्रारम्भ | हुआ। द्वैध शासन प्रणाली के जनक लियोनिल कॉर्टिस को माना जाता है। द्वि-सदनात्मक विधानमण्डल बनाया गया। इस अधिनियम के तहत् सिक्खों, यूरोपियनों, आंग्ल भारतीयों और ईसाईयों को भी पृथक् प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया।
माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में एक नरेश मण्डल के निर्माण का सुझाव दिया गया, जिसके तहत् 8 फरवरी, 1921 को दिल्ली में नरेश मण्डल की स्थापना की गयी जिसमें कुल 121 राजा उपस्थित थे। नरेश मण्डल का मुख्यालय दिल्ली रखा गया। तथा इसका अध्यक्ष वायसराय को बनाया गया।
इस अधिनियम में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए एक 'केंद्रीय लोक सेवा आयोग' के गठन का प्रावधान था जिसका गठन 1926 में किया गया। जिसका प्रथम अध्यक्ष सर रोज बार्कर थे। इस अधिनियम के तहत् एकवर्थ समिति की सिफारिश के आधार पर 1924 में सामान्य बजट से रेलवे बजट को अलग कर दिया गया लेकिन 2017-18 में पुनः रेल बजट व सामान्य बजट को एक साथ पेश किया गया।
ध्यात्वय रहे - एक्ट 1919 के तहत् गठित 'ली आयोग द्वारा संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का गठन 1926 में किया गया।
भारत सरकार अधिनियम, 1935 -
इस अधिनियम से संघात्मक (संघीय) व्यवस्था प्रारम्भ हुई। इस एक्ट में 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूची, 14 परिशिष्ठ थे। प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त कर केन्द्र में लगाया गया। इस अधिनियम से संघीय न्यायालय की स्थापना हुई। भारत परिषद् का अंत कर दिया। गया।
इस अधिनियम द्वारा मुसलमान, सिक्ख, आंग्ल भारतीय, भारतीय ईसाई, यूरोपियनों के अतिरिक्त हरिजनों (दलित वर्गों) के लिए भी पृथक् निर्वाचन क्षेत्र बनाये गये। 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना को ही 1935 के अधिनियम के साथ जोड़ दिया गया।
1 अप्रैल, 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना की गई। RBI का प्रथम गवर्नर 'ओरबर्न स्मिथ' और स्वतंत्र भारत का RBI का प्रथम गवर्नर सी.डी. देशमुख को बनाया गया। 1935 अधिनियम के तहत् जब फरवरी 1937 में प्रान्तीय चुनाव हुए तो 6 प्रान्तों में कांग्रेस, 3 प्रान्तों में मिली जुली, 1 प्रान्त में यूनियनिस्ट पार्टी तथा एक प्रान्त में कृषक प्रजा पार्टी की सरकार बनी। यह अधिनियम 1947 तक जारी रहा।
संविधान सभा एवं संविधान निर्माण
व्यक्तियों का वह समूह जिसने मिलकर विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन कर शासन चलाने के लिए नियम व कानूनों का निर्माण किया उसे संविधान सभा कहते हैं।
भारत में संविधान सभा की मांग सर्वप्रथम 1895 में बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किये गये 'स्वराज्य विधेयक में उठाई गई। उसके बाद भारतीयों का पहला संगठित प्रयास 1923 में दिल्ली में आयोजित एक सर्वदलीय सम्मेलन 'कॉमनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल' से मानी जाती है।
ध्यातव्य रहे - बाल गंगाधर तिलक ने पहली बार अपने स्वराज्य बिल के अंतर्गत संविधान सभा शब्द का पहली बार प्रयोग किया था। लेकिन इससे पूर्व स्वराज्य शब्द का पहली बार मौखिक प्रयोग शिवाजी मराठा ने किया, तो स्वराज्य शब्द का पहली बार लिखित प्रयोग दयानंद सरस्वती ने किया था। कांग्रेस के मंच से पहली बार स्वराज्य शब्द का प्रयोग दादा भाई नौरोजी ने 1906 ई. में किया था।
लखनऊ पैक्ट के बाद व असहयोग आन्दोलन के दौरान 5 फरवरी, 1922 में महात्मा गाँधी ने कहा कि, "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार होगा (भारत के संविधान का निर्माण भारत की जनता द्वारा किया जायेगा) । अर्थात् गांधीजी ने अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर संविधान सभा के गठन की माँग की।"
संविधान सभा की सर्वप्रथम माँग (औपचारिक रूप से संविधान के गठन की बात) का श्रेय 1934 में कम्यूनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष 'मानवेन्द्र नाथ राय' (एम.एन. रॉय) को जाता है इसी कारण संविधान सभा के विचार का प्रतिपादक एम.एन. रॉय को माना जाता है।
मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में औपनिवेशिक साम्राज्य की माँग करते हुए एक कानून का ढाँचा (नेहरू रिपोर्ट) तैयार कर 10 अगस्त, 1928 को लखनऊ अधिवेशन में पेश किया गया, जिस पर सर्वसम्मति नहीं बन सकी लेकिन इस नेहरू रिपोर्ट को ही श्याम चतुर्वेदी ने 'प्रथम भारतीय संविधान का स्वरूप/ब्ल्यू प्रिन्ट' कहा।
संविधान निर्माण की प्रत्यक्ष मांग 1931 में कराची अधिवेशन में रखी गई। जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में 1936 को संविधान सभा की मांग को मूर्त रूप प्रदान किया। 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार भारत के संविधान के निर्माण के लिए अधिकारिक रूप से संविधान सभा के गठन की माँग की। सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की माँग को सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1940 में 'अगस्त प्रस्ताव' के माध्यम से लॉर्ड लिनलिथिगो द्वारा स्वीकार किया गया।
22 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन में स्पष्ट किया गया कि भारतीय संविधान के लिए एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन किया जायेगा। हिन्दू महासभा के अध्यक्ष वी.डी. सावरकर ने कहा 'भारत क्रिप्स के बाप की संपत्ति नहीं जो टुकड़े-टुकड़े कर देगा'
ध्यातव्य रहे - संविधान सभा के विचार को जनता तक ले जाने का श्रेय पं. जवाहरलाल नेहरू को जाता है।
क्रिप्स मिशन -
मार्च, 1942 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को भारतीय नेताओं से वार्ता हेतु भारत भेजा, जिसमें यह प्रस्ताव किया गया कि नये संविधान की रचना के लिए संविधान सभा का गठन किया जायेगा। कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया। महात्मा गाँधी ने इसे बाद की तिथि का चैक (अरेखांकित चैक) कहा तथा जवाहर लाल नेहरू ने इसे दिवालिया बैंक का चैक कहा।
संविधान सभा का अन्तिम रूप से गठन कैबिनेट मिशन के सुझावानुसार जुलाई, 1946 में किया गया।
कैबिनेट मिशन, 1946
संविधान सभा के गठन हेतु ब्रिटिश सरकार की ओर से भेजा गया आयोग 24 मार्च, 1946 को 'कैबिनेट मिशन' दिल्ली आया। कैबिनेट मिशन 3 सदस्यीय दल था ये तीन सदस्य निम्न थे-
लॉर्ड पैट्रिक लॉरेन्स (अध्यक्ष), सर स्टेफोर्ड क्रिप्स (व्यापार) मंत्री ) ए.वी. एलेक्जेन्डर (नेवी मंत्री)। कैबिनेट मिशन ने अपनी रिपोर्ट 16 मई, 1946 को पेश की जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में संविधान सभा का गठन करना और गौण उद्देश्य भारत का विभाजन करना था।.
भारतीय संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन के सुझावानुसार हुआ [UPTET-2014]। जिसमें प्रारम्भ में कुल 389 सदस्य (10) लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि) लिए गए जिन्हें तीन भागों में बांटा गया
- प्रान्तीय विधानमण्डलों से निर्वाचित-292
- देशी रियासतों से (राजाओं द्वारा मनोनीत)-93
- चीफ कमीशनरी (केन्द्रशासित प्रदेश) क्षेत्रों से-4
- कुल - 389
ध्यातव्य रहे - चीफ कमीशनर (CCR) के अधीन चार प्रांत 'अजमेर मेरवाड़ा, बलूचिस्तान (पाकिस्तान), कुर्ग (कर्नाटक) व दिल्ली' (ABCD) है ।
संविधान सभा का चुनाव जुलाई, 1946 में 296 (292 प्रांत + 4 कमीश्नरी क्षेत्र) सीटों पर करवाए गए क्योंकि चुनाव के अंदर देशी रियासतों ने भाग नहीं लिया। निर्वाचन के लिए मतदाताओं की तीन श्रेणियाँ बनाई गयी थी जो सामान्य, मुस्लिम व सिक्ख (पंजाब के लिए) थी। प्रत्येक समुदाय का प्रतिनिधि अपने लोगों द्वारा (समुदाय के) निर्वाचित किया जायेगा अर्थात् मुस्लिम प्रतिनिधि का निर्वाचन मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि करेंगे। निर्वाचन अधिकारी व संविधान सभा के सचिव एच.वी. आर. आयंगर थे।
संविधान सभा के चुनावों का परिणाम
चुनावों के परिणाम इस प्रकार आये -
- हिन्दू महासभा को कोई सीट नहीं मिली
- हैदराबाद ऐसी रियासत थी, जो कभी भी संविधान सभा में शामिल नहीं हुई, उसे सैनिक कार्यवाही द्वारा भारत में मिलाया गया।
- महिलाओं की संख्या 15
- ST = 33 एवं SC = 36 सदस्य थे।
- संविधान सभा में सर्वाधिक निर्वाचित सदस्य उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत (55 सदस्य) से थे, तो सर्वाधिक मनोनीत सदस्य मैसूर रियासत (7 सदस्य) से थे।
चुनावों के परिणामस्वरूप अपने अल्पमत को देखकर मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया और 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस (सुनियोजित तरीके से दंगे) मनाया।
ध्यातव्य रहे - आजादी के समय भारत में कुल 562 रियासतें थीं और | निम्न तीन रियासतों को निम्न प्रकार से शामिल किया गया-जम्मू कश्मीर (विलय पत्र द्वारा), हैदराबाद (Operation Polo चलाकर | सैन्य बल द्वारा), जूनागढ़ (जनमत संग्रह द्वारा)। एकीकरण के | समय जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरिसिंह, हैदराबाद के | निजाम (शासक) मीर उस्मान अली खान बहादुर आसफ जाह | सप्तम तथा जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय थे।
2 सितम्बर, 1946 को अन्तरिम सरकार का गठन हुआ और पं. जवाहरलाल नेहरू को उपाध्यक्ष घोषित किया गया।
ध्यातव्य रहे - 2 सितम्बर, 1946 को बनी संविधान सभा की अंतरिम | सरकार में मुस्लिम लीग (मोहम्मद अली जिन्ना) शामिल नहीं हुई थी। लेकिन 26 अक्टूबर, 1946 को अंतरिम सरकार का पुनर्गठन कर मुस्लिम लीग के पाँच सदस्यों को शामिल किया गया।
Very Most.- संविधान सभा में निर्वाचित सदस्यों में भीमराव अम्बेडकर (बंगाल से) डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा (बिहार से) चुने गये थे। महात्मा गाँधी संविधान सभा के सदस्य नहीं चुने गये थे, साथ ही मोहम्मद अली जिन्ना संविधान के सदस्य चुने गये थे, लेकिन उन्होंने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया था।
संविधान सभा की पहली बैठक नई दिल्ली के वर्तमान संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में 9 दिसम्बर, 1946 [RTET-2011] सोमवार को 11 बजे हुई जिसमें 211 व्यक्ति सम्मिलित थे। इस दिन संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा (फ्रांस की परम्परा (वरिष्ठता) के आधार पर) बने। संविधान सभा के पहले मनोनीत उपाध्यक्ष फ्रेंक एन्थेनी थे। मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया।
ध्यातव्य रहे - आचार्य जे.बी. कृपलानी / जीवतराम भगवानदास कृपलानी (तत्कालीन राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष) के द्वारा डॉ. सच्चिदानंद सिंहा का अध्यक्ष पद के लिए नाम प्रस्तावित किया गया तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे अनुमोदित किया। संविधान सभा का प्रथम अधिवक्ता डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् थे।
संविधान सभा की दूसरी बैठक 11 दिसम्बर, 1946 को हुई। जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (बिहार राज्य से निर्वाचित) संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष [CTET-2018, UPTET-2018 ] बने। जिसे भारत का अजातशत्रु, बिहार का गांधी व देशरत्न के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन बैठक में 'बेनेगल नरसिंह राव' (बी.एन. राव) को संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया। संविधान सभा का प्रथम उपाध्यक्ष एच.सी. मुखर्जी ( हरेन्द्र कोमार मुखर्जी ) को चुना गया।
संविधान सभा की तीसरी बैठक 13 दिसम्बर, 1946 को हुई जिसमें पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया, जिसे संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को मंजूरी दी।
ध्यातव्य रहे - संविधान का पहला वाचन डॉ. राधाकृष्णनन् ने किया था, इसी कारण उन्हें 'संविधान का प्रथम वक्ता' कहा जाता है, तो संविधान की प्रस्तावना / उद्देश्य प्रस्ताव को एन.ए. पालकीवाला ने संविधान का परिचय पत्र कहा।
संविधान निर्माण के लिए गठित समितियाँ इस प्रकार हैं-
समिति |
अध्यक्ष |
1. प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) |
भीमराव अम्बेड़कर[CTET 2018 ] |
2. संघ शक्ति समिति |
पं. जवाहर लाल नेहरू |
3. संघ संविधान समिति |
पं. जवाहर लाल नेहरू |
4. संचालन समिति |
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
5. प्रान्तीय संविधान समिति |
सरदार वल्लभ भाई पटेल |
6. मौलिक अधिकार समिति |
सरदार वल्लभ भाई पटेल |
7. झण्डा समिति |
राजेन्द्र प्रसाद |
8. कार्य संचालन समिति |
के.एम. मुंशी |
9. सर्वोच्च न्यायालय समिति |
एस. बारदाचारियार |
10. मूल अधिकार उप समिति |
जे.बी.कृपलानी |
11. तदर्थ समिति |
एस. वर्धा |
12. अल्पसंख्यक उप समिति |
एच.सी. मुखर्जी |
13. राज्यों के लिए समिति |
पं. जवाहर लाल नेहरू |
14 प्रक्रिया नियम समिति |
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
15. परामर्श समिति |
सरदार वल्लभ भाई पटेल |
16. राष्ट्रध्वज संबंधी तदर्थ समिति |
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
17. संविधान सभा के कार्यों संबंधी समिति |
जी.वी. मावलंकर |
ध्यातव्य रहे - सामान्यत: आचार्य कृपलानी को झण्डा समिति का अध्यक्ष मान लिया जाता है, लेकिन अध्यक्ष तो दूर वे इस समिति के सदस्य भी नहीं थे। कृपलानी नहीं वरन् डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे।
22 जुलाई, 1947 को चतुर्थ अधिवेशन में राष्ट्रीय ध्वज ( लम्बाई चौड़ाई का अनुपात 3 2 UPTET-2013) को स्वीकार किया गया जिसे हंसा मेहता द्वारा प्रस्तुत किया गया।
अक्टूबर, 1947 को संविधान सभा के सचिवालय की परामर्श शाखा ने संविधान का पहला प्रारूप तैयार किया। परन्तु इस प्रारूप की जाँच करने के लिए संविधान सभा ने 29 अगस्त, 1947 को सात सदस्यीय प्रारूप समिति / ड्राफ्टिंग कमेटी / मसौदा समिति' का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया।
प्रारूप समिति
ध्यातव्य रहे - थोड़े समय बाद बी.एल. मित्तर के स्थान पर एम. माधवराव को सदस्य बनाया गया तथा 1948 में डी.पी. खेतान की मृत्यु होने पर टी.टी. कृष्णामाचारी को सदस्य बनाया गया। संविधान | सभा में अम्बेडकर जी का निर्वाचन पं. बंगाल से हुआ था।
30 अगस्त, 1947 को प्रारूप समिति की पहली बैठक हुई जो कुल 141 दिन तक चली। इस समिति ने संशोधित संविधान को 21 फरवरी, 1948 को संविधान सभा के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किया तथा 4 नवम्बर, 1948 को संविधान सभा के समक्ष संविधान का अंतिम प्रारूप डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा पेश किया गया।
भारत विभाजन की योजना ( माउन्टबेटन योजना, 3 जून, 1947 ) के बाद भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 324 (235+89) रह गई। जो 31 अक्टूबर, 1947 को 299 (जिसमें) 229 सदस्य भारतीय प्रांतों से तथा 70 सदस्य देशी रियासतों से थे।) रह गई। संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा के कुल 12 अधिवेशन एवं संविधान का तीन बार वाचन किया गया, तो संविधान सभा निर्माण में कुल 11 अधिवेशन हुए। थे।
अधिवेशन
संविधान सभा की अन्तिम बैठक (166वीं बैठक / 12वाँ अधिवेशन) 24 जनवरी, 1950 को हुई [UPTET-2011] जिसमें संविधान सभा के कुल 299 सदस्यों में से 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किये। इस दिन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले प्रथम व्यक्ति जवाहर लाल नेहरू थे, तो अंतिम हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान की तीनों प्रतियों पर हिन्दी में हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति खान अब्दुल गफ्फार खाँ थे। संविधान सभा में कुल 15 महिलाओं ने भाग लिया (10 महिलाओं ने ही संविधान पर हस्ताक्षर किये)। महिला समूह की अध्यक्षा श्रीमती हंसा मेहता थीं। जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा को चलायमान राष्ट्र कहा।
संविधान सभा के सचिव के.एग. मुंशी थे तो, संविधान सभा के उपाध्यक्ष डॉ. एच.सी. मुखर्जी थे। संविधान सभा जब संविधान निर्माण का कार्य करती थी तो उस समय संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद रहते थे जबकि यही संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में कार्य करती थी, तो उस समय इसके अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर (तत्कालीन) लोकसभा अध्यक्ष) हुआ करते थे (26 नवम्बर, 1949 तक) ।
ध्यातव्य रहे - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एकमात्र राष्ट्रपति थे जिसे विदेशी (लॉर्ड माउंटबेटन / पूरा नाम-लॉर्ड लुई फ्रांसिस अल्बर्ट विक्टर निकोलस जॉर्ज माउन्टबेटन) ने शपथ दिलाई। आजादी के समय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एटली थे, जो लेबर पार्टी से थे तथा कांग्रेस अध्यक्ष जे.बी. कृपलानी थे। आजादी से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को राष्ट्रपति कहा जाता था।
संविधान के कुल तीन वाचन हुए
संविधान सभा ने संविधान का निर्माण 26 नवम्बर, 1949 को पूरा किया और इस दिन ही इसे आत्मार्पित, अधिनियमित, अंगीकृत किया गया क्योंकि इस दिन अंतरिम संसद, नागरिकता, सर्वोच्च न्यायालय आदि से सम्बन्धित लगभग 16 अनुच्छेद (अनु. 5, 6, 7, 8, 9,60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 393, 394) तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए गए थे।
ध्यातव्य रहे - अनु. 393 के तहत इसे भारत का संविधान नाम दिया गया है। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार करने की तिथि (Adopted) तथा 26 जनवरी, 1950 को संविधान के प्रवर्तन (Execution) की तिथि कहा जाता है।
26 जनवरी, 1950 को संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ [RTET 2011, CTET-2018] और भारत एक गणतन्त्र राज्य बना। उस समय भारत के संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद, 22 भाग व 8 अनुसूचियाँ थीं तथा वर्तमान में एक प्रस्ताव 465 अनुच्छेद, 25 भाग व 12 अनुसूचियाँ है।
भारतीय संविधान का निर्माण important facts
- संविधान के प्रारूप निर्माता बी. एन. राव थे तो संशोधित संविधान के प्रारूप निर्माता भीमराव अम्बेड़कर थे।
- चर्चिल ने "संविधान सभा को केवल हिन्दुओं का संगठन कहा।"
- संविधान पर 166 दिन बैठक हुई जिसके प्रारूप पर 114 दिन बहस हुई और 24 जनवरी, 1950 को इस पर 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किये।
- संविधान के कुछ अनुच्छेद 26 नवम्बर, 1949 को लागू हो गये जबकि सम्पूर्ण संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ जिसे गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि 26 जनवरी, 1930 को प्रथम बार स्वाधीनता दिवस मनाया गया। गणतन्त्र / राजतंत्र शब्द फ्रांस से लिया गया है तथा राष्ट्रपति की ओर इंगित करता है।
- संविधान को भारत की जनता के नाम से स्वीकार किया गया था, इसी कारण संविधान की अंतिम शक्ति भारत की जनता को माना गया है ।
- 26 नवम्बर को संविधान स्वीकार किये जाने के कारण विधि/ कानून / संविधान दिवस मनाया जाता है।
- मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के प्रथम शिक्षामंत्री थे।
- कैबिनेट मिशन ने भारत को राज्य संघ रूप में मानने का विचार किया ।
- मैसूर प्रांत 15 अगस्त, 1947 को भारतीय संघ में शामिल हो गया था।
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