Bharat me Krishi - इस पोस्ट में हम भारत में कृषि विकास (Bharat me Krishi) trick उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ये पोस्ट समान्य ज्ञान की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है ये नोट्स आगामी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयोगी है
Bharat me Krishi - भारत में कृषि विकास
Bharat me Krishi - भारत में कृषि विकास |
भारत की लगभग 68% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ तथा विकास की कुंजी है। कुल कृषित भूमि के 72 प्रतिशत भाग पर खाद्यान फसलें एवं 28 प्रतिशत भाग पर व्यापारिक फसलें उगायी जाती है। देश के 46.7 प्रतिशत क्षेत्रफल पर कृषि सम्पन्न होती हैं।
चीन के पश्चात् भारत में ही विश्व का सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र है देश की 37.5 प्रतिशत कृषित भूमि पर सिंचाई की जाती है। 2015-16 में भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का 17.2% रहा। कुल आबादी की कृषि में भागीदारी 49% है।
भारत को 15 कृषि जलवायविक प्रदेशों में विभक्त किया गया है जिसका आधार विशेष भौतिक दशाएँ और अपनाई गई विशेष कृषि विधियाँ हैं।
देश की मिट्टियों में नाइट्रोजन के साथ फॉस्फोरस तथा पौटेशियम की भी कमी है। उर्वरकों के विकल्प के तौर पर वैज्ञानिकों ने राइजोबियम तथा नीली हरी शैवाल जैसे जैव उर्वरकों का आविष्कार किया है। देश की लगभग 8 करोड़ हैक्टेयर भूमि अपरदन से प्रभावित है।
- प्रथम पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य कृषि में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था।
- 1960-61 में देश के कुल कृषि क्षेत्र का 18.3 प्रतिशत सकल सिंचित क्षेत्रफल था।
- भारत में 1970-71 में हुई प्रथम कृषिगत संगणना के समय जोतों का औसत आकार 2.30 हैक्टेयर था
- चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-75) में कृषि विकास के लिए नई कृषि रणनीति अपनायी और हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ।
- देश की कृषित भूमि का सर्वाधिक भाग मध्य प्रदेश में पाया जाता है। (1.88 करोड़ हैक्टेयर)
- हरियाणा और पंजाब राज्यों की 80 प्रतिशत से अधिक भूमि पर खेती की जाती है।
देश की लगभग 75 प्रतिशत भाग पर HYV (High Yielding Varieties) बीजों का प्रयोग किया जा रहा है। गेहूँ की फसल के उत्पादन हेतु HYV बीजों का प्रयोग 90.7 प्रतिशत क्षेत्र पर तथा चावल की 74.6 प्रतिशत भूमि पर इनका प्रयोग किया जा रहा है।
सम्पूर्ण देश में सिंचित भूमि का कुल कृषि क्षेत्रफल से सर्वाधिक अनुपात पंजाब (लगभग 90 प्रतिशत) में हैं। दूसरा स्थान उत्तर प्रदेश का (66 प्रतिशत) आता है।
- खाद्यान्नों का उत्पादन वर्ष 1951-52 में 52 मिलियन टन था।
- फरीदाबाद में केन्द्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण व प्रशिक्षण संस्थान है।
- प्रयोगशाला से खेत तक' कार्यक्रम- 1979 ई. में शुरू हुआ।
- कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे पर अंतःनिर्भर होते हैं।
- कृषि मूल्य आयोग - स्थापना 1965 ई. में की गई।
कृषि क्षेत्र को वितरित एजेन्सीवार साख (2014-15)
सहकारी बैंकों का - 16.47%
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का - 12.19%
न्यूनतम समर्थन मूल्य -
यह वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेची जाने वाली अनाज की पूरी मात्रा क्रय करने के लिए तैयार होती है। यह एक प्रकार का बीमा है। केन्द्र सरकार एक वर्ष में दो बार न्यूनतमसमर्थन मूल्य की घोषणा करती है एक बार रबी की फसल के लिए तो दूसरी बार खरीफ की फसल के लिए।
संस्थागत स्त्रोत-
संस्थागत साख स्वोतों में सरकार, सहकारी समितियाँ एवं सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा व्यापारिक बैंक आते हैं। 1982 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक NABARD की स्थापना की गई। वर्तमान में कृषि क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत ऋण संस्थागत स्त्रोतों द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है।
गैर-संस्थागत स्रोत अर्थ-
महाजन, साहूकार, व्यापारी, भू-स्वामी, कमीशन एजेंट आदि से ऋण लेना।
किसानों को प्रायः निम्न तीन प्रकार की ऋण सुविधाओं की आवश्यकता होती है
- अल्पकालीन ऋण - 15 माह से कम अवधि के लिए प्रदान किये जाते हैं।
- मध्यकालीन ऋण - 15 माह से 5 वर्ष तक की अवधि के ऋण मध्यकालीन ऋण होते हैं।
- दीर्घकालीन ( या अवधि ) ऋण - ऐसे ऋण जिनकी भुगतान की अवधि 5 वर्ष से अधिक हो, इस श्रेणी में शामिल होते हैं।
भू-संसाधन-
ऋतुएँ- भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ खरीफ, रबी व जायद के नाम से जानी जाती हैं।
शस्य गहनता -शस्य गहनता कुल फसली क्षेत्र तथा शुद्ध फसली क्षेत्र का अनुपात होता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
सिंचाई
जल संसाधन-
भारत में विश्व के जल संसाधन का 16% भाग पाया जाता है। सिंचाई तथा कृषि उपयोग में सतह का 89% और भूमिगत जल का 92% भाग उपयोग में आता है।
त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम-
इसकी स्थापना 1996-97 में सरकार ने सिंचाई की आधारभूत संरचना को सुदृढ़ करने व सिंचाई प्रबंधन को अधिक सफल बनाने के उद्देश्य से की।
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना-
इसकी शुरूआत 1999 ई. से हुई। इसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के परिणामस्वरूप फसल की पैदावार न होने की स्थिति में किसानों को आर्थिक मदद उपलब्ध कराना है।
सिंचाई के साधन
कुएँ एवं नलकूप - भारत के शुद्ध सिंचित कृषि क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत भाग कुओं एवं नलकूपों द्वारा सिंचित है। पंजाब, हरियाणा, एवं उत्तर प्रदेश में नलकूपों से सिंचाई का प्रयोग अधिक है।
तालाब-
देश के 5.1 प्रतिशत शुद्ध सिंचित क्षेत्र में तालाबों से सिंचाई की जाती है। कर्नाटक, हैदराबाद, राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी पहाड़ी भाग एवं मध्यप्रदेश में तालाबों से सिंचाई अधिक होती है।
नहरें -
देश के लगभग 31 प्रतिशत शुद्ध सिंचित क्षेत्र में सिंचाई का साधन नहरें हैं। भारत में नहरों की लम्बाई विश्व में सर्वाधिक मानी जाती है।
आर्थिक क्रांतियाँ
क्रांति |
संबंध |
NH क्रांति |
स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना से। |
गुलाबी क्रांति |
झींगा मछली के उत्पादन से। |
भूरी क्रांति |
अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों की खोज एवं खाद्य प्रसंस्करण से। |
पराभनी क्रांति |
भिंडी के उत्पादन से। |
ग्रीन गोल्ड क्रांति |
चाय उत्पादन से। |
अमृत क्रांति |
नदियों को आपस में जोड़ने से सम्बन्धित परियोजना से। |
कृष्ण क्रांति |
पेट्रोल व डीजल के संदर्भ में भारत को आत्मनिर्भर बनाने से। |
नीली क्रांति |
मत्स्योत्पादन या समुद्री जीवों का व्यापारिक उत्पादन। |
हरित क्रांति |
खाद्यान्न उत्पादन (विशेषत: गेहूँ और चावल) में वृद्धि हेतु। |
रजत क्रांति |
अण्डा/मुर्गी के उत्पादन से। तिलहन उत्पादन से। |
पीली क्रांति |
तिलहन उत्पादन से |
स्वर्ण
/ सुनहरी क्रांति |
फल-फूलों के उत्पादन से। |
श्वेत क्रांति/ऑपरेशन फ्लड |
दुग्ध उत्पादन से |
गोल क्रांति - |
आलू उत्पादन से। |
लाल क्रांति - |
माँस व टमाटर उत्पादन से। |
मूक क्रांति - |
मोटे अनाज के उत्पादन से। |
सदाबहार
क्रांति |
जैव तकनीकी से कृषि उत्पादन में वृद्धि |
इन्द्रधनुषी क्रांति |
समस्त क्रांतियों का सम्मिलित स्वरूप। |
हाइट गोल्ड (तीसरी क्रांति) |
कपास उत्पादन में वृद्धि से |
कृषि के प्रकार
- विटीकल्चर - अंगूरों की व्यापारिक स्तर पर उत्पादन की कृषि
- पिसीकल्चर अथवा जल कृषि व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली मछली पालन की क्रिया।
- सेरीकल्चर -रेशम उत्पादन की क्रिया, जिसमें शहतूत आदि की कृषि भी सम्मिलित है।
- हॉर्टीकल्चर - व्यापारिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन।
- आरबरीकल्चर -विशेष प्रकार के वृक्षों तथा झाड़ियों की कृषि, जिसमें उनका संरक्षण तथा संवर्धन भी
- शामिल हैं।
- एपीकल्चर -व्यापारिक स्तर पर शहद-उत्पादन हेतु किया जाने वाला मधुमक्खी पालन का कार्य।
- फ्लोरीकल्चर - व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली फूलों की कृषि
- सिल्वीकल्चर- वनों के संरक्षण एवं संवर्धन से सम्बन्धित क्रिया।
- नेमरीकल्चर -यह भी आदिम व्यवस्था की कृषि है, जिसमें मानव द्वारा जंगलों से फल, जड़ आदि संग्रह किया जाता था।
- ओलेरीकल्चर -जमीन पर फैलने वाली सब्जियों की व्यापारिक कृषि है।
- मेरीकल्चर -व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समुद्री जीवों के उत्पादन की क्रिया।
- हॉर्सीकल्चर -सवारी व यातायात के लिए उन्नत प्रजाति के घोड़ों एवं खच्चरों को व्यापारिक स्तर पर पालने की क्रिया।
स्थानबद्ध कृषि-
इसमें किसी भी स्थान पर निवास करने वाले किसान एवं उसके परिवार द्वारा स्थायी रूप से मिल जुलकर कृषि कार्य
मिश्रित कृषि-
इस प्रकार की कृषि में कृषि कार्यों के साथ ही पशुपालन का कार्य भी किया जाता है।
डेरी फार्मिंग-
यह एक प्रकार की विशेषीकृत कृषि है, जिसमें दूध देने वाले पशुओं के प्रजनन एवं उनके पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
रोपड़ कृषि -
इस कृषि पद्धति के अन्तर्गत बड़े-बड़े बागानों में केवल एक ही फसल उगायी जाती है। मलेशिया में रबड़, ब्राजील में कहवा तथा असोम घाटी में चाय की कृषि एकल-फसलों कृषि के उदाहरण हैं।
स्थानांतरित कृषि -
इसका तात्पर्य है - दहन व कर्तन खेती। इस प्रकार की खेती में फायरस्टोन, कुल्हाड़ी तथा हल का उपयोग किया जाता है। यह कृषि झाड़ी परती पद्धति से की जाती है। इस कृषि में पशुपालन का कोई स्थान नहीं ।
विश्व में आदिम कृषि
देश |
नाम |
सूडान |
कैंगीन |
म्यांमार |
हुमाह |
थाइलैंड |
लदांग |
वेनेजुएला |
चेन्ना |
ब्राजील |
मिल्पा |
उत्तरी-पूर्वी भारत |
मासोले |
फिलीपींस |
न्गासू |
इण्डोनेशिया |
टोंग्या |
मलेशिया |
तमराई |
श्रीलंका |
कोनुको |
जिम्बाब्वे |
रोका |
कांगो |
झूमिंग |
भारत में आदिम कृषि
क्षेत्र |
आदिम कृषि का नाम |
ओडीशा |
पोडु, दाबी, कोमान, ब्रिंगा |
पश्चिमी
घाट |
कुमारी |
दक्षिणी
पूर्वी
राजस्थान |
बत्रा |
मध्यप्रदेश |
पेंडा, वीवर, दईया, डिप्पा |
गहन कृषि-
गहन कृषि प्रणाली- उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों, दक्षिणी अमेरिका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के कुछ प्रदेशों में यह कृषि प्रणाली विस्तृत है। खाद्यान्न में चावल की प्रधानता है। यह विश्व की सबसे गहन कृषि प्रणाली है।
गहन कृषि प्रदेश -
प्रायः समतल मैदानी तथा पठारी भागों में मिलते है। गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, मोनाम, मेकांग, सिक्यांग, यांगटिसीक्यांग, द्वांगहो आदि नदियों के विस्तृत मैदान में जनघनत्व भी अधिक है जो कि गहन कृषि के लिए आवश्यक है।
बागाती (रोपण) कृषि-
बागाती शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिका में ब्रिटिश अधिवासों के लिए किया गया।
उद्यान कृषि -
यह भी व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली सब्जियों एवं फल-फूलों की कृषि है जिसके परिवहन में ट्रकों का अधिक उपयोग किये जाने के कारण इसे ट्रक फार्मिंग कहा जाता है। भारत संसार में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। संसार में आम, केले, चीकू और नींबू के उत्पादन में भारत अग्रणी है। आम के
- उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रमुख स्थान है।
- देश में केले के प्रमुख उत्पादक राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र और अन्य दक्षिण भारतीय राज्य लीची और अमरूद के प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार हैं।
- आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में अंगूर का अत्यधिक उत्पादन होता है।
- कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सेब, नाशपती, खुबानी और अखरोट का उत्पादन होता है।
केरल, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश काजू के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। भारत विश्व के कुल काजू उत्पादन का 40% भाग पैदा करता है। भारत काजू का सबसे बड़ा निर्यातक देश है नारियल के प्रमुख उत्पादक राज्य केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक हैं। भारत विश्व में सर्वाधिक नारियल का उत्पादन करता है। बड़ी इलायची का प्रमुख उत्पादक राज्य सिक्किम है।
कृषि विकास की दिशा में उठाये गये कदम
अन्न उपजाओ आंदोलन-
वर्ष 1949 में तत्कालीन खाद्यान्न संकट के निवारण हेतु अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन का सूत्रपात किया गया
केन्द्रीय श्रेणी नियंत्रण प्रयोगशाला -
यह प्रयोगशाला नागपुर में स्थित है। यह उत्पादों के प्रतिदशों का भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर परीक्षण करके उन उत्पादों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करके एगमार्क की मुहर लगाती है। 1958 में नाप-तोल की मीट्रिक प्रणाली अपनायी गई।
देश का पहला फल उत्कृष्टता केन्द्र-
21 मई, 2013 को हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा मंगियाना (सिरसा) में इण्डो-इजराइल संयुक्त परियोजना के अंतर्गत उद्घाटन किया गया।
देश का सबसे बड़ा फूडपार्क -
8 अक्टूबर, 2013 को अमेठी जिले के जगदीशपुर में 'शक्तिमान मेगाफूड पार्क' स्थापित हुआ।
पहला डिजिटल कृषि कार्ड -
29 अप्रैल 2013 को गोवा, डिजिटल कृषि कार्ड जारी कर देश में ऐसा करने वाला प्रथम राज्य बन गया।
देश का सबसे ऊँचा कृषि विज्ञान केन्द्र-
जम्मू-कश्मीर के लेह जिले के न्योमा में देश का सबसे अधिक ऊँचाई पर कृषि विज्ञान केंद्र 6 जून 2013 को स्थापित किया गया।
आनुवांशिक संवर्धित फसल -
जब किसी पौधे के प्राकृतिक जीन में कृत्रिम उपायों द्वारा उसकी मूल संरचना में परिवर्तन कर दिया जाता है, तो पौधे से प्राप्त खाद्य को 'आनुवांशिक संवर्धित फसल' कहते हैं। इस प्रविधि से प्राप्त उत्पाद को आनुवांशिक संवर्धित खाद्य कहते हैं। जैसे Bt-Cotton, Bt-Brinjal Bt का अर्थ : बैसिलस थुरिनजिएंसिस हैं।
यह एक बैक्टीरिया है जिसका जीन (Cry IAC) निकालकर आनुवांशिक संवर्धित फसलों में प्रवेश कराया जाता है। यह टॉक्सिन लार्वा द्वारा कीटों को मारने में मदद करता है। लार्वा को बक/बोलवार्म भी कहते हैं। भारत को एकमात्र बी.टी. कपास वाणिज्यिक G.M. फसल उगाने की अनुमति वर्ष 2002 में मिली। केन्द्र सरकार द्वारा 25 फरवरी 2012 को बीटी बैंगन पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया।
अशोका-
कृषि के क्षेत्र में प्रथम सुपर कम्पयूटिंग हब 'अशोका' की स्थापना से सुपर कम्प्यूटिंग साधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हुई। बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लिए केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय प्रस्तावित है।
पासीघाट -
केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश के इस स्थान पर प्रथम कृषि महाविद्यालय का शिलान्यास किया गया।
केरल-
देश का एकमात्र राज्य है जहाँ भू-स्वामित्व प्रणाली एवं काश्तकारी व्यवस्था एक साथ समाप्त कर काश्तकारों को कृषि भूमि के स्वामित्व अधिकार प्रदान किये गये।
विनोबा भावे -
समाजसेवी एवं सर्वोदयी नेता। सन् 1951 ई. में भूमिहीन मजदूरों को कृषि भूमि पर बसाने हेतु भूदान आंदोलन प्रारंभ किया।
कृषि क्षेत्र की औसत विकास दर - 2015-16 में -5 प्रतिशत 11वीं योजना के दौरान औसत वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत अनुमानित की गई है।
हरित क्रांति
1966-67 में वृहद स्तर पर कृषि विकास की एक नई व्यूह रचना को अपनाया गया जिसे 'हरित क्रांति' कहते हैं। यह उन्नत व उच्च गुणवत्ता वाले बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों, आधुनिक कृषि उपकरणों व विस्तृत नहरी सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन की एक नवीन प्रक्रिया थी। हरित क्रांति का मसौदा पत्र तीसरी पंचवर्षीय योजना में शुरू किया गया, परंतु इसे लागू योजनावकाश में किया गया।
नॉरमन ई. बोरलॉग -
हरित क्रांति के जनक, अमेरिका में पौधव्याधि विशेषज्ञ एवं पादप प्रजनन विशेषज्ञ थे, 1970 में इन्हें नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।
एम. एस. स्वामीनाथन - भारत में हरित क्रांति का सूत्रपात इनके निर्देशन में किया गया।
पंजाब व हरियाणा - भारत में हरित क्रांति का प्रारंभ सर्वप्रथम इन राज्यों में हुआ।
गेहूँ - हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कुल खाद्यान्न उत्पादन में इस फसल का भाग काफी बढ़ा है।
चावल-हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कुल खाद्यान्न उत्पादन में इस फसल का भाग लगभग स्थिर रहा है।
मोटे अनाज व दाल - हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कुल खाद्यान्न उत्पादन में इन खाद्यान्नों के भाग घंटे हैं।
एवरग्रीन -
राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष स्वामीनाथन ने हरित क्रांति की सफलता के पश्चात इस क्रांति को शुरू करने का आह्वान किया है। जिससे देश की खाद्यान्न उत्पादन को 210 मिलियन टन के स्तर से बढ़ाकर 420 मिलियन किया जा सके।
हरित क्रांति के मुख्य कारक(Causes or Factors of the Green Revolution)
1.अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग (Use of the Seeds of H.Y.V.)- हरित क्रान्ति का मुख्य तत्व अधिक उपज देने वाले बीज' हैं, 'जिन्हें चमत्कारी बीज' कहा गया है। अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रयोग पाँच फसलों पर किया गया है- गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का और ज्वार। इनमें सर्वाधिक सफलता गेहूँ में मिली है। गेहूँ की मैक्सिन किस्में-लरमा रोजो 64A एवं सोनोरा-64 आदि काफी लोकप्रिय रही है। चावल में छोटा बासमती, नयी जय, पदमा, रत्ना, जिलया, विजया, कृष्णा आदि किस्में हैं।
2.बहुफसली कार्यक्रम (Multiple Cropping Programme) -
हरित क्रांति के लिए दूसरा महत्वपूर्ण कारक बहुफसल कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत धोड़े समय में पक कर तैयार हो जाने वाली किस्मों को बोया जाता है। बहुफसली कार्यक्रम का उद्देश्य एक ही भूमि पर वर्ष में एक से अधिक फसल उगाकर उत्पादन बढ़ाना है। यह कार्यक्रम 1967-68 में लागू किया गया।
3.रासायनिक खादों का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizers )-
रासायनिक खादों के प्रयोग में 1966-67 से भारी वृद्धि हुई है। नाइट्रोजन खाद, फॉस्फेट खाद व पोटाश खाद में उपभोग के नये स्तर प्राप्त किए गए। हैं। तीनों प्रकार की रासायनिक खादों (NPK) के उपयोग का स्तर वर्ष 2010-11 में 281.12 लाख टन था। 1960-61 में रासायनिक खाद का उपयोग प्रति हेक्टेयर 1.9 किलोग्राम होता था जो अब बढ़कर 95 किलोग्राम हो गया।
4.लघु सिंचाई योजना (Minor Irrigation Programme)-
नवीन कृषि नीति के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं- अच्छे बीज, खाद एवं सिंचाई। इनमें लघु सिंचाई को विशेष महत्व दिया गया है। आपातकालीन कृषि उत्पादन कार्यक्रम के अधीन लघु सिंचाई की विशेष योजनाएँ स्वीकृत की गई हैं।
5.साख सुविधाओं का विस्तार (Improved Credit Facilities)-
वर्तमान समय में सरकार द्वारा कृषि साख़ को सुविधाओं के विस्तार पर अधिक बल दिया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक, अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक,सहकारी तथा ग्रामीण बैंकों द्वारा कृषकों को साख सुविधाएँ उपलब्ध करायी जा रही है।
6. उचित मूल्य की गारंटी (Guarantee of fair price)-
कृषि क्रांति के लिए बहुत हद तक उतरदायी कारण कृषकों को दी जाने वाली उचित मूल्य की गारंटी है। इसके लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है जिसका कार्य फसल की बुआई के समय उन मूल्यों की सिफारिश करना है जिन पर फसल आने का सरकार क्रय करने के लिए वचनबद्ध हो। सरकार इस आयोग के सिफारिश मूल्यों पर सरकारों से विचार-विमर्श करती है और फिर उचित मूल्य निर्धारित करती है। ये सरकारी खरीद मूल्य कहलाते हैं।
7. कृषि उद्योग निगम (Agriculture, Industry Corporation)-
सरकारी नीति के अनुसार 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगमों की स्थापना की गई है। इन निगमों का कार्य कृषि उपकरण व मशीनरी की आपूर्ति तथा उपज में प्रसंस्करण (Processing) एवं भंडारण को प्रोत्साहन देना है।
8. कीटाणुनाशक औषधियों का उपयोग (Use of Pesticides)-
पौधों को कीटाणुओं के आक्रमण से बचाने के लिए भारतीय कृषकों द्वारा कीटाणुनाशक औषधियों का भारी मात्रा में प्रयोग किया जाता रहा है। इससे कृषि उपजों के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है जिससे हरित क्रांति का सपना साकार हो गया है।
9. कृषि का यंत्रीकरण (Mechanisation of Agriculture ) -
भारतीय कृषि का यंत्रीकरण भी बहुत हद तक देश में हरित क्रांति लाने में सहायक रहा है। कृषि क्षेत्र में ट्रैक्टर, पंप सेट, नलकूप, थ्रेसर मशीन आदि के प्रयोग में भारी वृद्धि हुई है जिसका कृषि के विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है तथा उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है।
10. कमजोर किसानों के लिए विशिष्ट कार्यक्रम (Special Programme for Poor Farmers)
कमजोर, छोटे व सीमान्त कृषकों एवं खेतीहर कृषकों की सहायता के लिए तीन योजनाएँ लागू की गई है-
- लघु कृषक विकास एजेंसी कार्यक्रम,
- सीमान्त कृषक एवं कृषि श्रमिक विकास एजेन्सी कार्यक्रम,
- एकीकृत शुष्क भूमि कृषि विकास कार्यक्रम |
11. भू-संरक्षण-
हरित क्रांति के अन्तर्गत भू-संरक्षण का कार्यक्रम अपनाया गया है जिसके दो अंग हैं- एक तो कृषि योग्य भूमि को क्षरण से रोकना व दूसरे उबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाकर खेती योग्य बनाना।
12. कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान (Agriculture Education and Research)-
सरकार की नीति के अनुसार कृषि शिक्षा का विस्तार करने के लिए पहला विश्वविद्यालय सन् 1960 में पंतनगर में स्थापित किया गया था, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते 35 हो गई है।
हरित क्रान्ति अथवा कृषिगत विकास की नई व्यूह रचना के तीन चरण
1.वर्ष 1966-1972 तक का प्रथम चरण- इसमें कृषकों के लिए लाभप्रद समर्थन मूल्यों की व्यवस्था की गई। देश में अधिक उपज देने वाले गेहूँ के बीजों का प्रयोग होने लगा, सिंचाई में निवेश बढ़ाया गया।
2.वर्ष 1973-1980 तक का दूसरा चरण- सार्वजनिक वसूली काफी घट गई, खाद्यान्न का उत्पादन घटा, सरकार ने कृषिगत इनपुटों पर सब्सिडी बढ़ायी (उर्वरकों व पॉवर पर) तथा अधिक उपज देने वाली किस्मों को गेहूँ से चावल में फैलाया।
3.वर्ष 1981 1990 तक का तीसरा चरण- इसमें भारत खाद्यान्नों में आत्म निर्भरता की अवस्था में पहुँच गया। उत्पादन वर्ष 1964 में 12 मि. टन से वर्ष 1986 में 47 मि. टन हो गया। सब्सिडी का विस्तार किया गया।
प्रमुख फसलें (Major Crops)
- धान की खेती के लिए मृदा का उपयुक्त pH मान 4-6 होना चाहिए।
- धान के खेतों में CH, (मीथेन) गैस ज्यादा निकलती है। चावल के लिए 75 दिन जलपूर्ण खेतों की आवश्यकता होती है।
किस्में-
खाद्य फसल -
यह संसार की लगभग 50% जनसंख्या की प्रमुख खाद्य फसल है। चावल भारत में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला खाद्यान्न है। खाद्यान्त्रों के अन्तर्गत भूमि का लगभग 1/3 भाग चावल के अन्तर्गत है। चावल देश के लगभग 75 प्रतिशत लोगों का मुख्य खाद्यान है। यह भारत की मुख्य खाद्य फसल है।
उत्पादक क्षेत्र--
चीन चावल के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। भारत विश्व का दूसरा बड़ा चावल उत्पादक देश है। भारत थाईलैंड को पीछे छोड़कर वर्ष 2013 में चावल निर्यातक के रूप में शीर्ष स्थान पर है। विश्व में चावल के अंतर्गत कुल क्षेत्र के आधार पर भारत में 28% क्षेत्रफल आता है। इस आधार पर सर्वाधिक चावल क्षेत्र भारत में है।
देश में सम्पूर्ण विश्व का लगभग 20 प्रतिशत चावल उत्पन्न होता है। भारत में प्रति हेक्टेयर चावल उत्पादन 2462 किग्रा. (2014-15) है। आन्ध्र प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु का चावल के अन्तर्गत 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र सिंचित है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं-ऑस सितम्बर-अक्टूबर में, अमन जाड़ों में तथा बोरो गर्मी में काटी जाती हैं। चावल का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य पं. बंगाल है। दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमशः उत्तर प्रदेश व पंजाब है।
उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र, गंगा के मैदान और इसका डेल्टा प्रदेश, पूर्वी तटीय मैदान, पूर्वी प्रायद्वीपीय पठार तथा पश्चिमी तटीय मैदान प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
गेहूँ
तापमान - बोये जाने के समय तापमान कम से कम 8° से 10°C तक होना चाहिए। पकते समय तापमान 15° से 20°C तक चाहिए।
वर्षा- 60 सेमी से 100 सेमी.। बुवाई के 15 दिन बाद से पकने के 15 दिन पूर्व तक चक्रवातीय वर्षा गेहूं की फसल लाभदायक होती है।
मिट्टी- नाइट्रोजन युक्त दोमट मिट्टी, महीन काँप मिट्टी व चीका प्रधान मिट्टी। मिट्टी का pH मान 5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। गेहूँ के आदर्श उत्पादन के लिए 180 किलो उर्वरक प्रति हैक्टेयर का प्रयोग होना चाहिए।
करनाल बंट
गेहूँ की फसल में यह बीजोढ़ रोग नियोसिया इंडिका नामक कवक द्वारा फैलता है। इसे कैंसर रोग भी कहते हैं। बहुधा गेहूँ में रतुआ, गेरुई तथा हरदा रोग लगते हैं। गेहूँ के अन्य रोग- छाछ्या, करजवा, रतुआ, चैंपा रोग।
खाद्यान्न-
कुल खाद्यान्न में गेहूँ का प्रतिशत 31.2 प्रतिशत के लगभग है। भारत में चावल के बाद दूसरा महत्वपूर्ण खाद्यान गेहूँ है। राजस्थान का प्रिय खाद्यान्न गेहूँ है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
विश्व में सर्वाधिक गेहूँ उत्पादक देश क्रमश: प्रथम, द्वितीय व तृतीय चीन, पूर्व सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। देश के कुल बोये गये क्षेत्र के लगभग 14% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। भारत में गेहूँ के दो प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है-
(i) उत्तरी पश्चिम में गंगा-सतलज का मैदान तथा (ii) दक्षिण-मध्य भाग में दक्षिण की काली मिट्टी वाला क्षेत्र ।
भारत में सर्वाधिक गेहूँ उत्तरप्रदेश (34.38 प्रतिशत) में होता है। दूसरे व तीसरे स्थान पर क्रमश: पंजाब व हरियाणा है। प्रति हेक्टेयर गेहूँ का उत्पादन भारत में 3075 किग्रा है। भारत का संसार के गेहूँ उत्पादन में लगभग 9 प्रतिशत का योगदान है। वर्तमान में पंजाब देश में प्रति हैक्टेयर सर्वाधिक गेहूँ की पैदावार करने वाला राज्य बना हुआ है।
राजस्थान - श्रीगंगानगर को इस राज्य का अन्न कटोरा कहा जाता है। राज्य के दक्षिणी-पूर्वी एवं पूर्वी क्षेत्र में गेहूँ का अधिक उत्पादन होता है। राज्य में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र वाली फसल गेहूँ है।
ज्वार
उत्पादक क्षेत्र -
सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में ज्वार पैदा की जाती है। भारत में कुल बोये गए क्षेत्र के 5.3% भाग पर ज्वार की खेती की जाती है।
- ज्वार के सम्पूर्ण क्षेत्र का आधा भाग (50.1%) महाराष्ट्र में है।
- महाराष्ट्र में सन् 2000-01 में देश के कुल ज्वार उत्पादन का 51.7% भाग उत्पादित हुआ था। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश अन्य प्रमुख ज्वार उत्पादक राज्य हैं।
- ज्वार को निर्धन भारतीयों का भोजन कहा जाता है। यह मूलत: अफ्रीका का पौधा है तथा चावल और गेहूँ के बाद तृतीय प्रमुख खाद्यान्न है।
- यह उत्तर भारत में चारे की फसल के रूप में उगायी जाती है।
- चावल एवं गेहूँ के पश्चात् सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर इसे उगाया जाता है। पठारी भाग समस्त देश का 75 प्रतिशत ज्वार उत्पन्न करता है।
- राजस्थान में इसका अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा एवं भरतपुर जिलों में उत्पादन होता है। यह मुख्यतः राज्य के मध्य तथा पूर्वी भाग में होती है।
वल्लभनगर-
अगस्त, 1970 में अखिल भारतीय समन्वित ज्वार अनुसंधान परियोजना का एक मुख्य केन्द्र उदयपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, वल्लभनगर में स्थापित किया गया। जून, 1976 में यह परियोजना राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर में स्थानान्तरित कर दी गई।
बाजरा
अरकट -
बाजरे की फसल के गोंद (अरकट) लगने से यह जहरीला हो जाता है जो गर्भपात और उल्टी-दस्त का कारण बन जाता है। बाजरा साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम फसल है।
जोधपुर -
केंद्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय समन्वित बाजरा सुधार परियोजना को पूना से यहाँ पर स्थानांतरित किया गया है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
इसके उत्पादन में राजस्थान का भारत में प्रथम स्थान है। यह देश के लगभग 5.2% भाग पर बोया जाता है। सन् 2000-01 में यहां 20 लाख टन बाजरा पैदा किया गया जो देश के कुल उत्पादन का 28.9% था। अन्य प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश (17.5%), महाराष्ट्र (13.4%) और हरियाणा हैं।
राजस्थान में इसका उत्पादन जोधपुर, नागौर, जयपुर, करौली, बाड़मेर जिलों में किया जाता है। बाजरा के कुल बोये गये क्षेत्र में बाड़मेर में सबसे अधिक 69.4% क्षेत्र है।
राजस्थान में बाजरा फसल के अंतर्गत बोया गया शुद्ध क्षेत्रफल देश के कुल बाजरा क्षेत्र का 46 प्रतिशत तथा राज्य के कुल बोये गये क्षेत्र का 21.05 प्रतिशत है।
मक्का
वर्षा- उत्तरी भारत में साधारणत: 80 सेमी. वर्षा की रेखा से मक्का के क्षेत्र की पूर्वी सीमा और 50 सेमी. वर्षाको द्वारा पश्चिमी सीमा निर्धारित की जाती है।
मिट्टी- नाइट्रोजन व जीवांशयुक्त मिट्टी, दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त। समतल या सुप्रवाहित पठारी भूमि उपयुक्त है।
- साइलेज चारा- मक्का की हरी पत्तियों से बनाया जाता है।
- मक्का के दानों से मंड (स्टार्च), ग्लूकोज तथा एल्कोहल तैयार की जाती है।
- गेहूँ, चावल तथा ज्वार के बाद खाद्यान में मक्का का चौथा स्थान है। चावल और गेहूँ के बाद सबसे ज्यादा मात्रा में बोयी जाने वाली फसल मका है।
उत्पाद-
यह खाद्य फसल व चारा फसल दोनों है। मक्का एक औद्योगिक महत्व की फसल है। यह मूलतः खरीफ की फसल है। मक्का मूलतः दक्षिणी अमेरिका का पौधा है।
उत्पादक क्षेत्र -
इस फसल का जन्म अमेरिका (मक्का की पेटी) में हुआ। विश्व में सर्वाधिक मक्का उत्पादक देश क्रमश: प्रथम, द्वितीय संयुक्त राज्य अमेरिका (लगभग 45 प्रतिशत) तथा चीन (18 प्रतिशत) हैं। विकसित देशों में मक्के को चारे के रूप में काम में लिया जाता है।
भारत के कुल बोये गए क्षेत्र के 3.6% भाग में यह फसल पैदा की जाती है। यह पूर्वी और उ. पूर्वी भारत को छोड़कर देश के सभी हिस्सों में पायी जाता है। मक्का के उत्पादन में आन्ध्र प्रदेश का पहला स्थान है। इसके बाद उत्तर प्रदेश बिहार और कर्नाटक का स्थान है।
राजस्थान -
राज्य का संपूर्ण देश में मक्का बोये जाने वाले क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम एवं उत्पादन की दृष्टि से छठा स्थान है। बाँसवाड़ा जिले के बोरवर गाँव में कृषि अनुसंधान केन्द्र संचालित है। दक्षिणी राजस्थान में रबी के मौसम में भी मक्का की खेती को किसानों में लोकप्रिय बनाने का श्रेय बाँसवाड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र को दिया जाता है। इस केन्द्र ने मक्का की संयुक्त किस्में माही कंचन एवं माही धवल विकसित की है। मेवाड़ मक्का उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है।
जौ
उपयोग-
जौ का सर्वाधिक उपयोग शराब एवं माल्ट बनाने में किया जाता है। इसका उपयोग मिसी रोटी बनाने, मधुमेह रोगी के उपचार व बच्चों के पोषाहार में भी किया जाता है। प्रमुख उत्पादक क्षेत्र जो उत्पादन में प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का तथा दूसरा स्थान राजस्थान का है।
तिल
सरसों
पीत क्रांति (पीली क्रांति) -
यह प्रमुखत: सरसों की क्रांति है। हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव तिलहनों में सरसों पर पड़ा।रबी की फसल में सर्वाधिक क्षेत्र पर सरसों बोई जाती है।
- सरसों का प्रदेश- राजस्थान को कहा जाता है।
- सेवर (भरतपुर) - इस स्थान पर केन्द्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र की आठवीं पंचवर्षीय योजना में स्थापना की गई।
- उत्पादक क्षेत्र भारत विश्व में सरसों का सर्वाधिक उत्पादक देश है।
- राजस्थान, देश का सर्वाधिक सरसों उत्पादक राज्य है। सरसों राजस्थान की सबसे प्रमुख तिलहनी फसल है।। सुमेरपुर (पाली) में राज्य की सबसे बड़ी सरसों मंडी स्थित है।
- राजस्थान के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र गंगानगर, अलवर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर।
- अन्य उत्पादक राज्य उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात है।
मूँगफली
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
भारत विश्व में मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।मूँगफली देश के कुल शस्य क्षेत्र के 3.6% भाग पर फैली हुई है। गुजरात मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। राजस्थान का देश में उत्पादन की दृष्टि से सातवां स्थान है। मूंगफली के अन्य उत्पादक राज्य है-आन्र्ध प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र
सोयाबीन
सोयाबीन दुनिया का सबसे सस्ता सबसे आसान और सबसे अधिक प्रोटीन देने वाला स्रोत है। सोयाबीन की खेती सारे विश्व में वानस्पतिक टेल उत्पादन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
मध्यप्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। सन् 2000-01 में मध्य प्रदेश में 44.5 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ, जो देश के कुल उत्पादन का 65.54 प्रतिशत था। महाराष्ट्र (16.2 लाख टन) और राजस्थान (6 लाख टन) अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
राजस्थान का सोयाबीन उत्पादन में देश में चौथा स्थान है। राजस्थान का दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र (कोटा, चित्तौड़गढ़, बारों, झालावाड़ और बूंदी) प्रमुख है।
कपास (सफेद सोना)
बी.टी. कपास-
बेसिलस थैरिजेन्सिस (विशेष क्रिस्टल प्रोटीन बनाने वाला) का बीज में प्रत्यारोपण। भारत में जीन परिवर्तित (Genetically Modified GM) कृषि केवल कपास की ही होती है। भारत में वाणिज्यिक कृषि हेतु स्वीकृत एकमात्र जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसल बीटी (Br-Bacillus thuringlensis) कपास की पहली किस्म के परिणाम उत्साहवर्द्धक रहे हैं। इसके बीजों की आपूर्ति बहुराष्ट्रीय कम्पनी माहिको मॉसेण्टो बायोटेक (Mahyco Monsanto Biotech) करती है।
सुविन- कपास की किस्म है जो विश्व की सर्वोत्तम किस्मों में से एक है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
कपास उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां दक्षिण भारत में मिलती है। भारत विश्व में कपास का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है। देश के समस्त क्षेत्र के लगभग 4.7% क्षेत्र पर कपास बोयी जाती है।
प्रमुख उत्पादक राज्य -
गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा मध्यप्रदेश हैं। राजस्थान के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर। राजस्थान का कपास उत्पादन के क्षेत्र में देश में आठवाँ स्थान है। कपास की नरमा किस्म श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में प्रचलित है।
गन्ना
उत्पादन क्षेत्र-
विश्व के 23% गन्ने का उत्पादन भारत में होता है। उत्तर प्रदेश देश में गन्ने के उत्पादन में प्रथम स्थान पर, तमिलनाडु दूसरे तथा महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है।
अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक तथा गुजरात।
महाराष्ट्र में गन्ने का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र नासिक के दक्षिण गोदावरी की ऊपरी घाटी में है। गन्ने की फसल देश के कुल शस्य क्षेत्र के 2.4% भाग पर की जाती है। देश में कुल गन्ना उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता है। यहां गन्ना उत्पादन के दो क्षेत्र हैं
तम्बाकू
उत्पादन क्षेत्र-
तम्बाकू के क्षेत्र के दृष्टिकोण से चीन व अमेरिका के बाद भारत का तीसरा स्थान है जबकि उत्पादन में ब्राजील के बाद चौथा।
ईसबगोल (घोड़ा जीरा)
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
विश्व का लगभग 80 प्रतिशत ईसबगोल भारत में पैदा होता है। भारत का 40% ईसबगोल जालौर जिले में पैदा होता है। राजस्थान में ईसबगोल के अन्य उत्पादक क्षेत्र- बाड़मेर, सिरोही, नागौर, पाली तथा जोधपुर।
मण्डोर (जोधपुर)- यहाँ स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र में ईसबगोल पर शोध कार्य किया जा रहा है।
आबूरोड यहाँ ईसबगोल का कारखाना स्थापित किया गया है।
जीरा
जैतून
कृषि फार्म- प्रदेश में 7 स्थानों अलवर जिले में मुंडावर तहसील के तिनकीरूडी कृषि फार्म, झुंझुनूं जिले के बासबिसना, लाडनूं (नागौर), लूणकरणसर (बीकानेर), बरोर (अनूपगढ़, श्रीगंगानगर), सांधू (जालौर) और जयपुर जिले के बस्सी फार्म में जैतून की खेती की जा रही है।
राजस्थान में जैतून के बीजों का उत्पादन अजमेर, फतेहपुर सीकर, जयपुर आदि सरकारी कृषि फार्मों में होगा।
राज्य सरकार ने दो अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों (इजरायल की ग्रैनी टू थाइजेंड लिमिटेड और हॉलैंड की एडफ्रैश बीबी हॉलैंड) के जैतून उगाने के प्रस्तावों को स्वीकार किया है। इन कम्पनियों ने राजस्थान की राज एग्रो टेक इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर जैतून के पौधे लगाने का अनुबंध किया है। ज्ञातव्य है कि जैतून की पत्तियाँ लेकर परवाज भरता पक्षी संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रतीक चिह्न है।
दालें
भारतीय भोजन में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है। अतः ये शुष्क दशाओं में भी पनपती हैं। चना देश में दाल की प्रमुख फसल है। दालें फलीदार फसलों की श्रेणी में आती हैं।
तुअर, उड़द, मूंग और मोठ खरीफ की प्रमुख फसलें हैं तथा चना, मटर और मसूर रबी की फसलें हैं। दालों के उत्पादन और उपभोग में भारत विश्व में प्रथम है। यहाँ विश्व की 20% दाल का उत्पादन होता है। कुल बोये गये क्षेत्रों का 11% भाग दालों के अधीन आता है।
मध्य प्रदेश देश में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इसके बाद उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र दालों के अन्य उत्पादक राज्य हैं।
तुअर
- तुअर दाल की महत्त्वपूर्ण फसल है। तुअर के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश हैं।
- इसे लाल चना या पिजन पी के नाम से जानते हैं।
- यह चारे की फसल के रूप में प्रयुक्त होता है।
- भारत में कुल बाये गए क्षेत्र में इसकी हिस्सेदारी 2-3% है।
- इसका एक तिहाई (1/3) उत्पादन महाराष्ट्र करता है।
चना
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-
मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा महाराष्ट्र का चना उत्पादन में प्रमुख स्थान है। भारत में चने के कुल क्षेत्रफल का 22.78 प्रतिशत राजस्थान में है। राजस्थान में प्रमुख उत्पादक क्षेत्र बीकानेर, सीकर, चूरू, हनुमानगढ़। राजस्थान में कुल दहलनी फसलों में चने का उत्पादन सर्वाधिक होता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा, गेहूँ के बाद चने को तीसरा स्थान प्राप्त है। राजस्थान में राष्ट्रीय औसत से चने का उत्पादन प्रति हैक्टेयर अधिक होता है, जबकि बाकी सभी फसलों का राष्ट्रीय औसत से उत्पादन कम होता है।
मोठ
मूंग
राजस्थान में खरीफ की दालों में मूँग सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
उड़द
मटर
चाय
उत्पादक क्षेत्र-
भारत विश्व में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है और यहाँ विश्व उत्पादन का 28 प्रतिशत उत्पादन और विश्व व्यापार का 13 प्रतिशत व्यापार होता है। चाय निर्यातक देशों में श्रीलंका व चीन के बाद भारत का तीसरा स्थान है।
भारत में चाय की खेती 1840 ई. में असोम की ब्रह्मपुत्र घाटी से शुरू की गई। असोम चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
देश की 98 प्रतिशत चाय असोम, पश्चिम बंगाल, केरल एवं तमिलनाडु में होती है। असोम में ब्रह्मपुत्र तथा सुरमा नदी घाटियां चाय उत्पादन हेतु महत्वपूर्ण हैं। 'दार्जिलिंग की चाय' अपनी उत्कृष्टता के लिए विश्वविख्यात है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू और कांगडा घाटियों में हरी चाय का उत्पादन होता है। तमिलनाडु प्रति हैक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से अग्रणी राज्य है।
कॉफी (कहवा)
कहवा को जातियाँ-
उत्पादक क्षेत्र -
भारत में कर्नाटक की बाबा बूदन की पहाड़ियों के चारों ओर कहवा के बागान हैं। यह दक्षिण के तीन राज्यों कर्नाटक (59 प्रतिशत- प्रथम स्थान), केरल (24 प्रतिशत) और तमिलनाडु (16 प्रतिशत) में उगाया जाता है।
बाजील विश्व का सर्वाधिक कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व के कहवा उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन किया जाता है। ब्राजील में कहवा के बागानों को 'फैजेण्डा' कहते हैं। विश्व में कुल कॉफी उत्पादन का 3.2 प्रतिशत भाग भारत में होता है।
विश्व में कॉफी उत्पादन में भारत का छठवाँ स्थान है। कुल कॉफी उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक भाग निर्यात किया जाता है।
रबड़
उत्पादन क्षेत्र-
विश्व में रबड़ उत्पादन में थाइलैण्ड का प्रथम स्थान है। भारत विश्व का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है। भारत रबड़ का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है 2009-10 के आँकड़ों के अनुसार देश में रबड़ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1143 किग्रा है, जोकि विश्व में सर्वाधिक है। केरल रबड़ उत्पादक राज्यों में प्रमुख है, जहाँ देश का 90 प्रतिशत रबड़ उत्पादन होता है। अन्य उत्पादक क्षेत्रों में तमिलनाडु, कर्नाटक व अण्डमान निकोबार द्वीपसमूह प्रमुख हैं।
अफीम
जूट
उत्पादन क्षेत्र-
जूट उत्पादन के क्षेत्र मुख्यतः गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी के डेल्टा में पश्चिम बंगाल, बिहार, अस्रोम तथा मेघालय में हैं। भारत में जूट के उत्पादन में पश्चिम बंगाल का प्रथम स्थान है। अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं- बिहार, असोम तथा ओडिशा भारत विश्व का 60% जूट उत्पादन करता है। यह देश के कुल शस्य क्षेत्र के 0.5 भाग में बोया जाता है।
सूरजमुखी
होहोबा (जोजोबा)
मशरूम
यह एक प्रकार का कवकीय पादप है। मशरूम में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन सी, कार्बोहाइड्रेट तत्त्व होते हैं। मशरूम को शाकाहारी मीट भी कहा जाता है। मशरूम का सेवन उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कब्ज, मोटापा, हृदय रोग, कैंसर, एड्स एवं कुपोषण रोगों के निदान में उपयोगी है।
Delight of Diabitic- मशरूम को कहा जाता है। मशरूम को खुम्भी, छत्रक, कुकुरमुत्ता भी कहा जाता है।
बटन मशरूम- राजस्थान में उत्पादित तीन-चौथाई मशरूम का प्रकार।
खुम्भी- इस स्थानीय मशरूम में कैल्शियम के साथ विटामिन भी अधिकता में पाए जाते हैं। बाड़मेर जिले में खुम्भी की अच्छी पैदावार होती है। खुम्भी टूटी हड्डी को जोड़ने में सहायक है।
शिताके- जापानी मशरूम (शिताके) को देश में निम्न तीन स्थानों पर उगाया जाता है: उदयपुर, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश), केन्द्रीय खाद्य अनुसंधान संस्थान, मैसूर ।
मसाले
उत्पादन क्षेत्र-
विभिन्न फसलों के सर्वाधिक उत्पादक राज्य (2014-15)
फसल |
राज्य |
कुल खाधात्र |
उत्तर प्रदेश |
मोटा अनाज |
राजस्थान |
काफी |
कर्नाटक |
मूँगफली |
गुजरात |
सूरजमुखी |
कर्नाटक |
कपास |
गुजरात |
गेहूँ |
उत्तर प्रदेश |
दालें |
मध्य प्रदेश |
रबड़ |
केरल |
सरसों |
राजस्थान |
तिलहन |
मध्य प्रदेश |
जूट |
पश्चिम बंगाल |
चावल |
पश्चिम बंगाल |
चाय |
असम |
मकई (मक्का) |
आंध्रप्रदेश |
सोयाबीन |
मध्य प्रदेश |
गन्ना |
उत्तर प्रदेश |
आलू |
उत्तर प्रदेश |
कृषि संगठन तथा उनके मुख्यालय
संगठन |
मुख्यालय |
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान |
कानपुर |
समेकित कीट प्रबंधन राष्ट्रीय केंद्र |
नई दिल्ली |
अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान |
फिलीपींस (मनीला) |
अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान केन्द्र |
हैदराबाद |
अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र |
ऐलेपो (सीरिया) |
राष्ट्रीय
कृषि और ग्रामीण विकास बैंक |
मुंबई |
अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ वृद्धि केन्द्र |
मैक्सिको |
प्रमुख कृषि संस्थान
संस्थान |
स्थान |
राज्य |
राष्ट्रीय
मत्स्य उद्योग विकास बोर्ड |
हैदराबाद |
आन्ध्र प्रदेश |
राष्ट्रीय
चावल शोध संस्थान |
कटक |
ओडिशा |
भारत डेयरी निगम एवं राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड |
आनन्द |
गुजरात |
भारतीय डेयरी अनुसंधान |
करनाल |
हरियाणा |
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान |
लखनऊ |
उत्तर प्रदेश |
भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान |
कोयम्बटूर |
तमिलनाडु |
केंद्रीय
कॉफी अनुसंधान संस्थान |
कुर्ग |
कर्नाटक |
कॉफी अनुसंधान केंद्र |
चिकमंगलूर |
कर्नाटक |
जूट कृषि अनुसंधान केंद्र |
बैरकपुर |
पश्चिम बंगाल |
केंद्रीय
उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान |
फरीदाबाद |
हरियाणा |
टिड्डी चेतावनी संगठन |
जोधपुर |
राजस्थान |
कृषि विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय |
फरीदाबाद |
हरियाणा |
राष्ट्रीय
पौध संरक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान |
हैदराबाद |
आन्ध्रप्रदेश |
चौधरी चरणसिंह राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान |
जयपुर |
राजस्थान |
केंद्रीय
चारा बीज उत्पादन फार्म |
हैसर घट्टा |
कर्नाटक |
विवेकानन्द पर्वतीय
कृषि अनुसंधानशाला |
अल्मोड़ा |
उत्तराखण्ड |
केंद्रीय
कृषि अनुसंधान संस्थान |
पोर्टब्लेयर |
अण्डमान निकोबार द्वीपसमूह |
राष्ट्रीय
जैव उर्वरक विकास केन्द्र |
गाजियाबाद |
उत्तर प्रदेश |
पशु स्वास्थ्य एवं पशु चिकित्सा जैविकी संस्थान |
कोलकाता |
प. बंगाल |
पशु चिकित्सा और जीव विज्ञान संस्थान |
बेंगलुरु |
कर्नाटक |
केंद्रीय
मत्स्य पालन और समुद्री इंजीनियरी प्रशिक्षण संस्थान |
कोचीन |
केरल |
राष्ट्रीय
पटसन एवं संबंधित रेशे अनुसंधान संस्थान |
कोलकाता |
प. बंगाल |
भारतीय प्राकृतिक रेजिन्स एवं गम संस्थान |
राँची |
झारखण्ड |
कृषिगत उत्पादन : आंकड़े एक दृष्टि में
पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि व संबद्ध क्षेत्र पर परिव्यय-
कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों पर सर्वाधिक प्रतिशत व्यय प्रथम पंचवर्षीय योजना में (लगभग 31 प्रतिशत) किया गया। 12वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में वृद्धि का लक्ष्य = 4 प्रतिशत
योजना |
कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों पर परिव्यय |
कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों पर व्यय का प्रतिशत (%) |
प्रथम योजना |
600 |
31 |
द्वितीय योजना |
950 |
20 |
तृतीय योजना |
1750 |
21 |
चतुर्थ योजना |
3670 |
24 |
पंचम योजना |
8740 |
22 |
छठी योजना |
26100 |
24 |
सातवीं योजना |
47100 |
23 |
8वीं योजना |
54992.5 |
12.7 |
9वीं योजना |
97882 |
11.4 |
10वीं योजना |
162242 |
10.6 |
11वीं योजना |
346707 |
9.51 |
0 Comments