Rajasthan ki Prachin Kalibangan Sabhyata - राजस्थान की प्राचीन कालीबंगा सभ्यता के बारे में पूरी जानकारी Kalibangan Facts in Hindi - कालीबंगा सभ्यता की विशेषता आप को इस पोस्ट में मिल जाये गी
Rajasthan ki Prachin Kalibangan Sabhyata |
कालीबंगा सभ्यता
- कालीबंगा सभ्यता हनुमानगढ जिले में स्थित है ।
- यह सभ्यता वैदिक कालीन सरस्वती/द्वषद्वती नदी घाटी में फैली हुई थी ।
- कालीबंगा घग्घर/नट/नाली/मृत/सोतर/हकरा/वा
हिद नदी के किनारे स्थित है । - कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है काले रंग की चूडियाँ
- इस सभ्यता की खोज 1952 ई. में अमलानंद घोष ने की । (माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 की पुस्तक में 1951 ईं. में खोज करना बताया गया है ।)
- कालीबंगा का उत्खनन कार्य बी बी. लाल व बी के. थापर के नेतृत्व में 1961 से1969 ई. में किया गया तथा श्री एम. डी. खरे, के एम. श्रीवास्तव व एस पी. जैन द्वारा भी उत्खनन किया गया ।
- कालीबंगा विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से सर्वश्रेष्ठ तो नहीं परंतु उनके समकक्ष मानी जा सकती है । इसीलिए डाँ. दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा को सामरिक व पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से सिंधु घाटी सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा जा सकता है ।
- पिग्गट महोदय ने हड़प्पा व मोहनजोदडो को सिंधु घाटी सभ्यता की जुडवाँ राजधानियाँ कहा है ।
- सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों का सर्वाधिक संकेन्द्रण / घनत्व घग्घर हकरा क्षेत्र में पाया जाता है । सिंधु घाटी सभ्यता के काल को प्रथम नगरीकरण का युग कहा जाता है ।
- कालीबंगा में मुख्यत घग्घर नदी के बायें तट पर दो टीले मिले है प्रथम पश्चिमी टीला तथा द्वितीय पूर्वी टीला ।
प्रथम पश्चिमी टीला - जो अपेक्षाकृत छोटा लेकिन ऊँचा है । पश्चिमी टीले के निम्न स्तरों में प्राक् हड़पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए है । इन्हीं प्राक् हड़प्पाकालीन ऊपरी स्तरों में हड़प्पाकालीन संस्कृति के पुरावशेष प्राप्त हुए है । जिनमें दुर्ग या गढी के अवशेष प्रमुख है ।
द्वितीय पूर्वी टीला - जो अपेक्षाकृत कम ऊँचाई तथा विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है । इस टीले से प्रस्तर धातुकाल या हड़प्पाकाल के अवशेष मिलते है ।
द्वितीय पूर्वी टीला - जो अपेक्षाकृत कम ऊँचाई तथा विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है । इस टीले से प्रस्तर धातुकाल या हड़प्पाकाल के अवशेष मिलते है ।
प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा
- इस बस्ती में मकानों के निर्माण के लिए कच्ची ईंटों का ही प्रयोग हुआ था । इसलिए कालीबंगा को दीनहीन बस्ती कहा जाता है ।
- पक्की ईटों का प्रयोग केवल स्नानागार नाली एवं कुएं आदि के निर्माण में हुआ है ।
- अन्य घरेलू सामग्री के अंतर्गत त्रिभुजाकार पक्की मिट्टी के पिण्ड ( टेराकोटा केक ), पत्थर के सिलबट्टे आदि प्राप्त हुए है
प्राक् हड़प्पायुगीन सामाजिक जीवन
- प्राक् हड़प्पा युगीन कालीबंगा की बस्ती के चारों तरफ परकोटे की उपस्थिति तत्कालीन समाज में असुरक्षा की भावना ( संभवत: बाढ़ से ) का संकेत है ।
- प्राक् हड़प्पाकालीन आवास का निर्माण कच्ची ईटों से किया गया था । स्नानागार तथा नालियो का निर्माण पक्की ईंटों से किया जाता था ।
- मकानों की दीवारों में दरारें होने के कारण यहाँ भूकंप के अवशेष होने का प्रमाण है ।
- कालीबंगा में समकोण दिशा मे जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले है ।
- प्राक् हड़प्पाकालीन मनुष्यों का आर्थिक जीवन में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान था । उत्खनन मे एक साथ दो फसलों की उपज के दोहरे जूते खेत के प्रमाण मिले है । ( आर पी एस सी-2०11 )
- कालीबंगा मे खेत के दो पाडे थे कम दूरी चना, अधिक दूरी सरसों बोई जाती थी ।
- कालीबंगा में प्राक् हड़प्पा व हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले है ।
- कपास की खेती के साक्ष्य सर्वप्रथम कालीबंगा में मिले है । जिसे यूनानियों ने सिंडन कहा है ।
- कार्बन 14 पद्धति के आधार पर प्राक् हड़प्पाकालीन बस्ती का तिथिक्रम 2400 ई पू निर्धारित हुआ है ।
हड़प्पायुगीन कालीबंगा
- हड़प्पा संस्कृति का विस्तार राजस्थान के उत्तरी भाग तक ही सीमित था ।
- कालीबंगा एक नगरीय सभ्यता है । जिसमे नगर योजना हडप्पा संस्कृति के अन्य पुरास्थलों की भांति कालीबंगा में भी दो टीले दिखाई देते है । इन दोनों को अलग-अलग परकोटे ( कालीबंगा से दोहरे परकोटे के प्रमाण मिले है ) से सुरक्षित किया गया था ।
- यहाँ की बस्ती सुरक्षात्मक दीवार ( परकोटे) से सुरक्षित से की गई थी ।
- कालीबंगा में सभी प्रकार की ईंटों का अनुपात 4:2:1 है । कालीबंगा के अलावा हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में निचला नगर रक्षा प्राचीर से नहीं घिरा, इसलिए कालीबंगा को दोहरे परकोटे की सभ्यता कहा गया ।
- कालीबंगा से हड़प्पाकालीन ( पश्चिमी टीले से ) गढी या दुर्ग के अवशेष मिले है । यह दुर्ग/गढी हड़प्पा और मोहनजोदडो के समकालीन थी ।
- इस सभ्यता का नगर एक निश्चित योजना के आधार पर बसाया गया लगता है । सड़कों को पक्का बनाने की पद्धति का प्रचार कालीबंगा से हुआ । संपूर्ण नगर में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की और जाने वाली चौडी सडकें जो 5 मीटर से 7.20 मीटर तक चौड़ी थी । जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी । जिसे जाल पद्धति/ग्रीड पद्धति/चेम्सफौर्ड पद्धति/आक्सफोर्ड पद्धति कहा जाता है ।
- कालीबंगा में सड़को की चौड़ाई 7.2 मीटर तथा गलियों की चौड़ाई 1.8 मीटर थी । कालीबंगा में भवनों के द्वार सड़को पर न खुलकर गलियों मे खुलते थे ।
- दुर्ग के दक्षिण में कच्ची ईटों से निर्मित चबूतरे मिले है । इनमें एक चबूतरे पर एक कुआँ तथा सात अग्निवेदिकाएं प्राप्त हुई है । अग्निवेदिकाओं की आकृति आयताकार कुण्डनुमा है
- इन अग्निवेदिकाओं के मध्य में बेलनाकार स्तंभ व कोयलों की भस्म भी मिली है तथा इनमें कुछ अन्न के दाने भी मिले है । इस प्रकार की अग्निवेदिकाएं तत्कालीन अन्य पुरास्थलों जैसे बणवाली, राखी गढी व लोथल से प्रात हुई है ।
- कालीबंगा में फर्श में लगी हुई अलंकृत ईटे मिली है ।
- कालीबंगा से मिट्टी, ताँबे व काँसे की चूहिडयाँ मिली है । कालीबंगा समाज में बलि प्रथा का प्रचलन था, यहाँ पर मिली हरिण तथा जैल को हड्डियों से बलि प्रथा का पता चलता है । कालीबंगा में बेलनाकार तंदूर मिले है तदूरों की प्रथा का होना ईरान (मेसोपोटामिया) से इस सभ्यता के सम्बन्ध के प्रमाण है । कालीबंगा के प्रमुख पशु गाय, बैल, भैंस, बकरी, कुत्ता, ऊंट, सुअर आदि थे ।
- कुत्ता कालीबंगा सभ्यता का प्रमुख पालतु जानवर था ।
- कालीबंगा से अवतल चक्की/सालन पत्थर/सिलबट्टे मिले है, जो अनाज पीसने या मिलाने के काम आता था । इस प्रकार का पत्थर सर्वप्रथम अरनेस्ट मैके ने हड़प्पा से खोजा था ।
- इस सभ्यता के नगर की समृद्धि का मुख्य स्रोत उनत व्यापार, वाणिज्य व कृषि था ।
- कालीबंगा से हड़प्पा संस्कृति के अन्य केद्रों को अनाज, मणके तथा ताँबा भेजा जाता था । कालीबंगा को ताँबा संभवत: गणेश्वर क्षेत्र ( सीकर एवं झुंझुनूं) से प्राप्त होता था । ताँबे का प्रयोग अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले उपकरण बर्तन एवं आभूषण बनाने में होता था ।
- कालीबंगा में सोना, चाँदी, अर्द्धबहुमूल्य पत्थर, शंख आदि से आभूषणों का निर्माण किया जाता था ।
- इनमें स्त्रियाँ कानों में कर्णफूल व बालियाँ पहनती थी,गले में मणकों का हार तथा हाथों में शंख, मिट्टी, ताँबे व काँसे से निर्मित चूडियाँ पहनती थी ।
कालीबंगा मे दाह सरकार
- कालीबंगा के दुर्ग से 300 मीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में तथा बस्ती के दक्षिण में एक कब्रिस्तान भी मिला है ।
- यहां के लोग मुख्यत: शव को दफनाते थे । कालीबंगा के कब्रिस्तान में प्रतीकात्मक शवाधान के अवशेष मिलते है । जैसे हडप्पा से आंशिक शवाधान , मोहनजोदडो से कलश : शवाधान उसी प्रकार कालीबंगा से प्रतीकात्मक शवाधान के अवशेष मिलते है ।
- शव विसर्जन के 37 उदाहरण कालीबंगा से मिले है ।
- कालीबंगा में अन्तयेष्टि के पूर्ण समाधि, आशिक समाधि, दाह संस्कार तीनों प्रकार मिलते है ।
- कालीबंगा से तांबा, सैलखडी व मिट्टी की मोहरें मिली है । कालीबंगा सभ्यता से मिली मोहरों से लिपि का ज्ञान होता है । इस लिपि को सर्पिलाकार (बूस्ट्रोफेडन लिपि)/भाव चित्रात्मक (पिक्टोग्राफिक)/तृन्र्धव लिपि कहा जाता है ।
- यहां की लिपी दांई से बाँई ओर लिखी जाती थी जो अभी तक पढी नहीं जा सकी है ।
- लिपि के अधिकांश नमूने मोहरों से प्राप्त होते है ।
- कालीबंगा व मोहनजोदडो से प्राप्त कुछ मोहरों पर पशुबलि के प्रमाण मिलते है ।
- यहाँ से बेलनाकार मोहर, जो मेसोपोटामिया सभ्यता की है, मिली है
- ईटों से निर्मित चबूतरे फर्श पर अलंकृत ईटों का प्रयोग तथा मिट्टी का पैमाना मिला है ।
कालीबंगा से मिली प्रमुख सामग्री
- मिट्टी से निर्मित केक,
- बैल की खंडित मूर्ति ,
- धीया तथा तामडे के मणके ,
- शंख की चूड़ी ,
- पक्की मिट्टी का खिलौना गाडी ,
- पहिए ,
- हड्डियों की वनी सलाइयाँ ,
- पत्थर के सिलबट्टे,
- मिट्टी की गेंद,ताँबे का परशु,
- मेसोपोटामिया की मोहर,
- ऊँट की अस्थियाँ,
- भग्न वेदिकाएं और शल्य चिकित्सा सम्बन्धी प्रमाण प्रात हुए है ।
- मकानों की दीवारों में दरारें होने के कारण यहाँ भूकम्प के अवशेष मिले है ।
नोट - कालीबंगा से मातृदेवी की कोई भी मूर्ति नहीं मिली है । सिंधुघाटी सभ्यता के स्थलों से नहरों द्वारा सिंचाई, नदी उपासना, मंदिर, सिंह, पन्ना व लोहे के अवशेष नहीं मिले है ।
राज्य सरकार द्वारा कालीबंगा में प्राप्त पुरावशेषों के संरक्षण हेतु यहाँ एक संग्रहालय की स्थापना 1983 ( आर्कियो लाॅजिकल सर्वे आँफ इंडिया के अनुसार ) में की गई व 1985-86 में यह सुचारू रूप से कार्य करने लगा ।
डी पी. अग्रवाल व रफीक मुगल ने घग्घर हकरा नदी क्षेत्र का सूखना कालीबंगा का नष्ट होने का कारण था ।
एस. आर. राव ने कालीबंगा के नष्ट होने का कारण बाढ को माना है । के. यू. आर. केनेडी ने कालीबंगा के नष्ट होने को प्राकृतिक आपदा या महामारी फैलना बताया है ।
कालीबंगा के पुरातात्विक अवशेषों की समानता रखने वाले दो स्थल सोंथी, बीकानेर ( कालीबंगा प्रथम ) तथा कोटदीजी, पाकिस्तान है ।
कालीबंगा के पुरातात्विक अवशेषों की समानता रखने वाले दो स्थल सोंथी, बीकानेर ( कालीबंगा प्रथम ) तथा कोटदीजी, पाकिस्तान है ।
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