प्रतिहार शब्द का अर्थ 'द्वारपाल' है, क्योंकि प्रतिहारों ने अरब आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा की । अतः इनकी तुलना मौर्य व गुप्त राजाओं से की जा सकती है प्रतिहार स्वयं को लक्ष्मण के वंशज सूर्यवंशी/रघुवंशी मानते है ।
गुर्जर-प्रतिहारों का शासन छठी से दसवीं शताब्दी तक रहा, जो जोधपुर में मण्डोर व जालौर का भीनमाल क्षेत्र था, इन्होंने बाद में उज्जैन व कन्नौज को अपनी शक्ति का केन्द्र बनाया 8वीं-10वीं शताब्दी मे उत्तर भारत मे गुर्जर प्रतिहारवंश प्रभावशाली था ।
Gurjar Pratihar Vansh in Hindi - गुर्जर प्रतिहार वंश
Gurjar Pratihar Vansh |
गुर्जर प्रतिहारों ने लगभग 200 सालों तक अरब आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया ( वनरक्षक-2013 )
डॉ. आर सी. मजूमदार के अनुसार-गुर्जर प्रतिहारों ने छठी से 11वीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का कार्य किया ।
- जोधपुर के बौक शिलालेख के अनुसार गुर्जर प्रतिहारों का अधिवास मारवाड़ में लगभग 6वीं शताब्दी के द्वितीय चरण में हो चुका था ।
- 8वीं-10वीं शताब्दी में उत्तर भारत में मंदिर व स्थापत्य निर्माण शैली महाभारत शैली/गुर्जर-प्रतिहार शैली प्रचलित थी ।
- अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहारवंश था, जो गुर्जरों की शाखा या गुर्जरात्रा प्रदेश से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार के नाम से जाना गया ।
- गुर्जर प्रतिहारों का प्रभाव केन्द्र मारवाड़ था ।
- गुर्जरात्रा प्रदेश में रहने के कारण प्रतिहार गुर्जर प्रतिहार कहलाए। गुर्जरात्रा प्रदेश की राजधानी भीनमाल ( जालौर ) थी ।
- बाणभट्ट ने अपनी पुस्तक ' हर्षचरित ‘ में गुर्जरों का वर्णन किया है ।
- इस वंश की प्राचीनता बादामी के चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में 'गुर्जर जाति' का सर्वप्रथम उल्लेख से मिलती है ।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत सी-यू-की में कु-चे-लो ( गुर्जर ) देश का उल्लेख करता है । जिसकी राजधानी पि-लो-मो-लो ( भीनमाल) में थी ।
- अरबी यात्रियों ने गुर्जरों को 'जुर्ज' भी कहा है ।
- अल मसूदी प्रतिहारों को अल गुर्जर तथा प्रतिहार राजा को 'बोरा' कहकर पुकारता है ।
- भगवान लाल इन्दजी ने गुर्जरों को 'गुजर' माना है, जो गुजरात में रहने के कारण गुजर कहलाए ।
- देवली, राधनपुर तथा करडाह अभिलेखों में प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा गया है ।
- डॉ. गौरीशंकर ओझा प्रतिहारों को क्षत्रिय मानते है ।
- जॉर्ज केनेडी गुर्जर प्रतिहारों को ईरानी मूल के बताते है ।
- मिस्टर जैक्सन ने बम्बई गजेटियर में गुर्जरों को विदेशी माना है ।
- प्रतिहार राजवंश महामारू मंदिर निर्माण वास्तुशैली का संरक्षक था । ( कॉलेज व्याख्यता इतिहास-2016 )
- कनिघंम ने गुर्जर प्रतिहारों को कुषाणवंशी कहा है ।
- डॉ. भंडारकर ने गुर्जर प्रतिहारों को खिज्रों की संतान बताकर विदेशी साबित किया है ।
- स्मिथ स्टेनफोनो ने गुर्जर प्रतिहारों को हूणवंशी कहा है ।
- भोज गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक था । ( सीटीआईं-2०12 )
- भोज द्वितीय प्रतिहार राजा के काल में प्रसिद्ध ग्वालियर प्रशस्ति की रचना की गई । ( ग्रेड द्वितीय-हिंदी-201० )
- गुर्जर प्रतिहारों की कुल देवी चामुंडा माता थी ।
भीनमाल शाखा (जालौर)
- संस्थापक - नागभट्ट प्रथम ।
अवन्ति/उज्जैन शाखा
- नागभट्ट प्रथम के समय दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित ।
कन्नौज शाखा
- नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज को जीतकर अपने राज्य की राजधानी बनाया ।
- कवि वृष की उपाधि मुंज राजा को दी गई थी ।
आभानेरी तथा राजौरगढ़ के कलात्मक वैभव गुर्जर प्रतिहार काल के है ।
गुर्जरों तथा अन्य पिछड़ी जातियों (एस बी सी) के लिए राजस्थान सरकार ने 2015 मे 5 प्रतिशत कोटे की व्यवस्था की ।
मण्डोर शाखा ( जोधपुर )
- संस्थापक - रज्जिल
- गुर्जर प्रतिहारों की प्रारंभिक राजधानी मण्डोर थी ।
- गुर्जर प्रतिहारों की इन शाखाओं में सबसे प्राचीन एवं महत्वपूर्ण मण्डोर के प्रतिहार थे । मंडोर के प्रतिहार क्षत्रीय माने जाते है ।
हरिशचंद्र
- हरिशचंद्र को प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है । हरिशचंद्र को प्रतिहारों का गुरू/गुर्जर प्रतिहारों का आदि पुरूष/ गुर्जर प्रतिहारों का मूल पुरूष कहते है ।
- हरिश्चंद्र की दो पत्नियों में से एक ब्राह्मण तथा दूसरी क्षत्रिय पत्नी थी । क्षत्रिय पत्नी का नाम भद्रा था ।
- इसकी क्षत्रिय पत्नी के चार पुत्र हुए जिनके नाम भोगभट्ट, कध्दक, रज्जिल और दह थे ।
रज्जिल
- गुर्जर प्रतिहार राजवंश के आदिपुरूष हरिशचंद्र थे, तो मण्डोर के गुर्जर प्रतिहार राजवंश के संस्थापक रज्जिल थे ।
- रज्जिल ने मण्डोर को जीतकर अपने राज्य की राजधानी बनाया
नरभट्ट
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने नरभट्ट का उल्लेख 'पेल्लोपेल्ली' नाम से किया है, जिसका शाब्दिक अर्थ साहसिक कार्य करने वाला होता है ।
भीनमाल (जालौर) शाखा
- रघुवंशी प्रतिहारों ने चावडों से प्राचीन गुर्जर देश छीन लिया और अपनी राजधानी भीनमाल को बनाया । भीनमाल शाखा के प्रतिहारों के उत्पति के विषय में जानकारी ग्वालियर प्रशस्ति से मिलती है। जो प्रतिहार शासक भोज प्रथम के समय उत्कीर्ण हुई ।
- प्रसिद्ध कवि राजशेखर के ग्रंथों से भी भीनमाल के प्रतिहारों की जानकारी मिलती है ।
नागभट्ट प्रथम (780-75०ई)
- Nagabhata प्रथम को 'नागवलोक' तथा इसके दरबार को नागवलोक दरबार कहा जाता था ।
- नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है ।
- इसकी जानकारी हमें पुलिकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख से प्राप्त होती है ।
- नागभट्ट प्रथम ने भीनमाल को चांवडों से जीता तथा 730 ईं. में भीनमाल की राजधानी बनाया । ( पीटीआई -201 5 )
- इसने भीनमाल में प्रतिहारवंश की स्थापना की । नागभट्ट प्रथम ने आबू, जालौर आदि को जीतकर उज्जैन ( अवन्तिका ) को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ।
- नागभट्ट प्रथम के समय सभी राजपूतवंश गुहिल , चौहान, परमार, राठोड़, चंदेल , चालुक्य इसके सामंत के रूप में कार्य करते थे ।
- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने म्लेच्छ ( अरबी ) सेना को पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया ।
- नागभट्ट प्रथम का समकालीन अरब शासक जूनैद था । इसकी पुष्टि अल बिलादुरी के विवरण से होती है ।
- हांसोट अभिलेखानुसार समकालीन अरब शासक जुनैद के नियंत्रण से भड्रोच छीन कर नागभट्ट प्रथम ने चाहमान भतृवडढ को शासक नियुक्त किया ।
वत्सराज (780 -795 ई)
- वत्सराज देवराज व भूयिकादेवी का पुत्र था ।
- वत्सराज भीनमाल में गुर्जर प्रतिहारों का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है ।
- Vatsaraj ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत की, जो 150 वर्ष तक चला ।
- 150 वर्ष का त्रिपक्षीय संघर्ष कन्नौज को लेकर हुआ ।
- यह संघर्ष 8वीं सदी में प्रारंभ हुआ ।
- उत्तर भारत के गुर्जर प्रतिहार, दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट वंश, पूर्व में बंगाल के पालवंश के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ । इस संघर्ष में गुर्जर प्रतिहार विजयी हुए । परन्तु वत्सराज राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से हारा था ।
- कन्नौज को कुश स्थल व महोदय नगर के नाम से जाना जाता था । कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत गुर्जर-प्रतिहार शासक वत्सराज के समय हुई ।
- सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु ( 647 ईं. ) के बाद उत्तरी भारत की राजनीति की धुरी कन्नौज पर अधिकार करने हेतु संघर्ष प्रारंभ हुआ ।
त्रिपक्षीय संघर्ष के परिणाम
- कन्नौज पर( 725 ईं.- 752 ईं.) यशोवर्धन नामक शासक की मृत्यु के बाद तीन महाशक्तियों में संघर्ष प्रारंभ हुआ जो त्रिपक्षीय संघर्ष कहलाता है । ये तीन शक्तियाँ
- उत्तरी भारत के गुर्जर प्रतिहार
- पूर्व के पाल ( बंगाल के )
- दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट
- त्रिपक्षीय संघर्ष के समय कन्नौज पर शक्तिहीन आयुधवंश ( इन्द्रायुध, चक्रायुध ) के शासकों का शासन था ।
- त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत आठवीं शताब्दी ईस्वी में हुई । त्रिपक्षीय संघर्ष का प्रारंभ प्रतिहारवंश ने किया और इसका अंत भी प्रतिहारवंश ने ही किया ।
- Tripartite conflict (त्रिपक्षीय संघर्ष) का प्रथम चरण गुर्जर-प्रतिहार वत्सराज , बंगाल के पाल शासक धर्मपाल व दक्षिण के राष्ट्रकूट शासक ध्रुव के बीच हुआ ।
- वत्सराज ने कन्नौज पर शासित इन्द्रायुध को हराया व उसने पाल शासक धर्मपाल को मुंगेर ( मुदगगिरी ) के युध्द में पराजित किया । किन्तु राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ ।
- वत्सराज को रणहस्तिन ( युद्ध का हाथी ) की उपाधि प्राप्त थी । वत्सराज के समय 778 ईं. में उद्योतन सूरी द्वारा 'कुवलय माला ग्रंथ' की तथा जिनसेनसूरी द्वारा 781 ई. में 'हरिवंश पुराण' की रचना की गई ।
- वत्सराज शैव मत का अनुयायी था ।
- Vatsaraj ने ओसियाँ ( जोधपुर ) में एक सरोवर तथा महावीर स्वामी का एक मंदिर बनवाया जो कि पश्चिम भारत का प्राचीनतम जैन मंदिर माना जाता है ।
- राजस्थान में प्रतिहारों का प्रमुख केन्द्र ओसियां ( जोधपुर) था । वत्सराज के शासनकाल में वलिप्रबंध नामक काव्य ग्रंथ लिखा गया । जिसमें सती प्रथा, नियोग प्रथा एवं स्वयंवर प्रथा की जानकारी मिलती है ।
नागभट्ट द्वितीय (795-838 ई.)
- नागभट्ट द्वितीय को उपलब्धियों का वर्णन ग्वालियर प्रशस्ति में मिलता है ।
- अरब आक्रमणकारियों पर पूर्णत: रोक लगाने वाला प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय था ।
- नागभट्ट द्वितीय की दानशीलता एवं कन्यादान करने के कारण इन्हें 'कर्ण' की उपाधि दी गई । जिसका उल्लेख ग्वालियर अभिलेख में मिलता है ।
- 833 ईं. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली ।
मिहिरभोज (836-886 ई.)
- मिहिरभोज का शाब्दिक अर्थ 'सूर्यं का प्रतीक' है ।
- इन्होने अपने पिता राम भद्र की हत्या कर प्रतिहारों का शासक बना, इस कारण मिहिरभोज को प्रतिहारों में पितृहंता कहा जाता है । मिहिरभोज कट्टर इस्लाम विरोधी था, उसने बलपूर्वक बहुत से मुसलमानों को हिंदु बनवाया ।
- मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहारवंश में सबसे शक्तिशाली राजा था । मिहिरभोज का काल गुर्जर प्रतिहारवंश का चरमोत्कर्ष काल था । आदि वराह की उपाधि मिहिर भोज शासक ने धारण की वदृहै । ( ग्रेड द्वितीय-2007 )
- ग्वालियर प्रशस्ति मे मिहिर भोज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती है । यह प्रशस्ति भोज के काल में लिखी गई ।
- मिहिरभोज ने द्रुम नामक सिक्का भी चलाया था ।
- अरब यात्री सुलेमान व राजतरंगिनी के लेखक कल्हण ने मिहिरभोज के शासन व्यवस्था की प्रशंसा की । कश्मीरी कवि कल्हण की राजतंरगिणी से मिहिरभोज की उपलब्धियों की जानकारी प्रात होती हैं ।
- 851 ईं. में अरब यात्री 'सुलेमान' ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की, जिसका विवरण सुलेमान की पुस्तक किताब-उल-सिंध-वल-हिन्द में है ।
- गुर्जर प्रतिहारों की अश्व सेना तत्कालीन भारत में सर्वश्रेष्ठ थी । 893 ईं. के एक प्रतिहार लेख से दण्डपाशिक नामक पुलिस अधिकारी का उल्लेख मिलता है ।
- मिहिरभोज वैष्णव धर्म का अनुयायी था । मिहिरभोज ने विष्णु की सगुण व निर्मुण दोनों रूपो में पूजा की तथा विष्णु को ऋषिकेश कहा
- उत्तरप्रदेश के बेग्रमा लेख में इसे 'संपूर्ण पृथ्वी को जीतने वाला' बताया गया ।
महेन्द्रपाल प्रथम (885-910 ई.)
- महेन्द्रपाल का गुरू व दरबारी कवि राजशेखर था । ( कॉलेज व्याख्यता, इतिहास-2० 16 )
- राजशेखर के ग्रंर्थों मे प्रथम शासक महेन्द्रपाल जिसे परमभट्टारक तथा महाराजाधिराज, परमेश्वर की उपाधियों से पुकारा गया । (आरटेट 2012) महेन्द्रपाल प्रथम को 'रघुकुल चूडामणी, निर्भयराज व निर्भय नरेन्द, महीशपाल तथा महेन्दायुध' आदि नामों से भी पुकारा गया ।
- राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, प्रबंधकोष, बाल रामायण, बाल भारत ( प्रचण्ड पाण्डव ), विद्धशाल भंजिका नाम से नाटक व काव्यमीमांसा, हरविलास, भुवनकोष नामक काव्य ग्रंथों की रचना की
- Rajasekhar ने अपनी पत्नी अवन्ति सुंदरी के कहने पर ही 'कर्पूरमंजरी' की रचना की थी ।
- महेन्द्रपाल को 'निर्भय नरेश' कहा गया है ।
- इतिहासकार जी. एन. पाठक ने अपने ग्रंथ ' उत्तर भारत का राजनेतिक इतिहास ' में प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल प्रथम को हिंदु भारत का अतिंम महान हिंदूसम्राट माना है ।
महिपाल प्रथम (914-943 ई )
- महिपाल ने भी राजशेखर को आश्रय दिया था । राजशेखर ने महिपाल प्रथम को 'आर्यवृत्त का महाराजाधिराज, रघुकुल मुक्तामणि व रघुकुल मुकुटमणि' के नाम से पुकारा ।
- राजशेखर ने महिपाल को बाल भारत नाटक में रघुवंश मुक्तामणि ( रघुवंशरूपी मोतियों में मणि के समान) एवं आर्यवृत का महाराजाधिराज लिखा है । महिपाल को विनायकपाल एवं हेरम्भपाल के नाम से भी जाना जाता है ।
- महिपाल के समय 915 ईं. में अरब यात्री अलमसूदी भारत आया ।
- अलमसूदी ने गुर्जर-प्रतिहारों को अलगुर्जर व राजा को बोरा कहा ।
- महिपाल प्रथम के शासनकाल से प्रतिहारों का पतन शुरू हो गया
महेन्द्रपाल-द्वितीय (945-948 ईं.)
- इसके बाद गुर्जर-प्रतिहारों में चार शासक हुए देवपाल ( 948-49 ईं.) , विनायकपाल द्वितीय ( 953-54 ईं. ) , महीपाल द्वितीय ( 955 ईं. ), विजयपाल द्वितीय ( 960 ईं. ) इनके समय गुर्जर-प्रतिहारों की अवनति हुई ।
राज्यपाल
- प्रतिहार शासक राज्यपाल ( राजपाल ) के समय महमूद गजनवी ने कन्नौज पर 1018 ईं. (12वां अभियान) में आक्रमण किया, जिससे डरकर राज्यपाल कन्नौज छोड़कर गंगा पार भाग गया ।
त्रिलोचनपाल
- रज्यपाल के बाद त्रिलोचनपाल प्रतिहारों का शासक बना ।
- जिसे महमूद गजनवी ने 1019 ईं. में पराजित किया ।
यशपाल
- प्रतिहारवंश का अंतिम शासक यशपाल ( 1036 ईं. ) था ।
- 11वीं शताब्दी में कन्नौज पर गहड़वाल वंश ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया । इस प्रकार प्रतिहारों के साम्राज्य का 1093 ईं॰ में पतन हो गया ।
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