शेरशाह सूरी 1540 - 47
- बचपन का नाम फरीद
- शेरशाह सूरी के पिता का नाम हसन खान
- पैतृक जहांगीर जौनपुर
sher shah suri history in hindi
sher shah suri history in hindi |
- फरीद को बिहार के गवर्नर बाहर खड़ा होनी ने शेर खान की उपाधि प्रदान की थी 1539 में चौसा युद्ध में हुमायूं को पराजित करने के उपलक्ष में शेर खान ने शेरशाह की उपाधि धारण की 1540 के कन्नौज बिलग्राम युद्ध में हुमायूं को पराजित करने के बाद भारत का शासक बना था
विजय और साम्राज्य विस्तार
- मालवा विजय 1542 बल्लू खान को हराया
- राज सैनी विजय 1543 पूरणमल को हराया राज सैनी विजय शेरशाह के माथे पर कलंक माना जाता है
- मारवाड़ विजय 1544 मालदेव को हराया
- कालिंजर विजय 1545 कीरत सिंह को हराया
- कालिंजर विजय शेरशाह सूरी की अंतिम विजय थी इसी विजय अभियान के दौरान शेरशाह की मृत्यु हुई शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लाम शाह शासक बना था
शेरशाह सूरी के प्रशासनिक सुधार
- शेरशाह के समय प्रांतों को इकता कहा जाता था शेरशाह ने राज्य को 47 प्रांतों में विभाजित किया था शेरशाह ने चांदी के रुपए और तांबे के दाम नामक सिक्के का प्रचलन किया था रुपया शब्द शेरशाह सूरी ने दिया है
- शेरशाह सूरी ने 1700 धर्मशाला का निर्माण करवाया था इन धर्मशाला को साम्राज्य की धमनियां कहा जाता था यह चौकी का कार्य करती थी शेरशाह ने अनेक सड़कों का निर्माण करवाया था जिसमें सबसे मुख्य सड़क सड़क ए आजम जो कि बंगाल से चुनार गांव से प्रारंभ होकर दिल्ली होते हुए अमृतसर तक जाती थी इसे ग्रांड ट्रंक रोड भी कहा जाता है
- शेरशाह ने राजस्व क्षेत्र में रैयतवाड़ी प्रथा को लागू किया था इस प्रथा के अंतर्गत किसानों को भू राजसव सीधे तौर पर जमा करवाना होता था अर्थात राजा वह किसान के मध्य कोई विचोला नहीं होता था
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