- अग्नि नृत्य जसनाथी सिद्धों का प्रसिद्ध नृत्य है ।
- जसनाथी सम्प्रदाय के मतानुयायी डुंगरपुर कबीले के लोग होते है । अग्नि नृत्य का उद्गम कतरियासर (बीकानेर ) में हुआ हैं । कारियासर में जसनाथ जी की जन्मस्थली है ।
- जसनाथी सिद्धों के द्वारा रात्रि जागरण में अग्नि नृत्य किया जाता है ।
- अग्नि नृत्य शुरू करने से पूर्व कई मण लकडियों को जला कर 7 फुट लम्बा, 6 फुट चौडा, 3 फुट ऊँचा अग्नि का ढेर तैयार किया जाता है । धूणे के चारों और पानी का छिडकाव किया जाता है । तीन शब्द जसनाथिर्यों के व चौथा शब्द नाचणियों का गाया जाता है । अग्नि नृत्य को सिद्ध कस्तम जी का कहकर प्रारम्भ किया जाता है ।
- जसनाथी सम्प्रदाय के सिद्ध लोग जसनाथ जी के गीत गाते हुए गुरू की आज्ञा से "फतै-फतै" करते हुए अग्नि नृत्य में प्रवेश करते है । कतरियासर, मामलू, लिखमादेसर आदि अग्नि नृतकों के प्रसिद्ध गाँव है ।
- अग्नि नृत्य को संरक्षण देने मे बीकानेर के स्वर्गीय महाराजा गंगासिह का बहुत बडा योगदान है ।
- इसमें नृत्यकार अंगारों से मतीरा फोड़ना, हल जोतना आदि क्रियाएं सम्पन्न करता है ।
- अग्नि नृत्य में नगाड़ा नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है ।
- अग्नि नृत्य मुख्यत : पुरुष प्रधान नृत्य है ।
- जसनाथ जी को कतरियासर की जमीन सिकन्दर लोदी ने उपहार में भेंट की ।
- अंगारों का ढेर धूणा कहलाता है, तो नृतक नाचणियाँ कहलाते है ।
हिंडोला नृत्य
- हिंडोला नृत्य जैसलमेर क्षेत्र में किया जात है । हिंडोला का शाब्दिक अर्थ यहाँ झूला नहीं होकर बडी विशेष से है ।
- इस नृत्य में पुरुष व महिलाएँ संयुक्त रूप से नृत्य करते हुए अपने पूर्वजों का आहवान करते है ।
कानूड़ा नृत्य
- कानूड़ा नृत्य बाडमेर जिले के चोहटन गाँव मे कृष्ण जन्माष्टमी को महिलाओं व पुरुषों (युगल जोडी में ) के द्वारा किया जाता है ।
आँगी-बाँगी गैर नृत्य
- बाडमेर जिले कै लाखेटा गाँव में 400 वर्ष पुराना आँगी-बाँगी गैर नृत्य प्रसिद्ध है, जो प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया को आयोजित होता है ।
- ढोल नृत्य जालौर का प्रमुख नृत्य है ।
- यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है ।
- ढोल नृत्य केवल पुरुषों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है ।
- ढोल नृत्य माली ढोली, सरगड़ा व भील जाति के लोगों द्वारा किया जाता है ।
- इस नृत्य को पेशेवर नृत्य भी कहा जाता है ।
- ढोल नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री जयनारायण व्यास को है ।
- ढोल नृत्य में एक साथ 4 या 5 ढोल बजाए जाते हैं ।
- इस नृत्य में कलाकारों के समूह का मुखिया थांकना ( थांकना का शाब्दिकअर्थ-नृतकों में जोश भरना) होता है ।
- ढोल का मुखिया थांकना शैली में बजाना शुरू करता है । ज्योंही थाकना समाप्त होता है । नृत्यकारों के समूह में कोई मुंह में तलवार लेकर, कोई हाथ में डण्डे लेकर कोई भुजाओं में रूमाल लटका का लयबद्ध अंग संचालन करते है ।
लुंबर नृत्य
- यह जालौर जिले का महिला प्रधान नृत्य है ।
- महिलाएँ यह नृत्य होली के अवसर पर गोला बनाकर करती है ।
- इस नृत्य में महिलाएँ पाँवों की प्रत्येक गति के साथ 'ताली' बजाती है ।
चोगोला नृत्य
- चोगोला नृत्य एक क्षेत्रीय युगल नृत्य है जो डूंगरपुर जिले में होली के अवसर पर किया जाता है ।
- इस नृत्य में स्त्री-पुरुष जलती हुई होली के चारों और गोला/घेरा बनाकर नृत्य करते है ।
पालीनोच नृत्य
- बाँसवाड़ा का पालीनोच नृत्य केवल विवाह के अवसर पर किया जाता है ।
मोहिली नृत्य
- मोहिली नृत्य कांठल प्रदेश के धारियाबाद गाँव (प्रतापगढ) में किया जाने वाला एक क्षेत्रीय नृत्य है ।
- यह विशुद्ध रूप से स्त्रियों का नृत्य है, जो विवाह के अवसर पर किया जाता है ।
नाहर नृत्य
- नाहर नृत्य भीलवाडा के माण्डलगढ में किया जाता है ।
- यह नृत्य होली के तेहरवें दिन के बाद किया जाता है ।
सिंगवाले शेर का नृत्य
- यह नृत्य भीलवाडा जिले के माण्डलगढ में किया जाता है ।
- होली के अवसर पर गाँव के दो तीन व्यक्ति भूरे शरीर पर रूई लपेट कर व सींग लगाका शेर बनते है और ढोल की थाप पर नृत्य करते है ।
- इस नृत्य का उद्भव शाहजहां के शासनकाल से माना जाता है ।
बिन्दौरी नृत्य
- बिन्दौरी नृत्य मुख्य रूप से झालावाड जिले का है ।
- यह नृत्य गैर शैली का नृत्य है ।
- बिन्दोरी नृत्य होली व वीशेष रूप से विवाह के अवसर पर किया जाता है
ढोला मारू नृत्य
- यह विशेष रूप से झालावाड क्षेत्र में किया जाने वाला ढोला मारू का नृत्य नाट्य है जो कि भवाईयों द्वारा किया जाता है ।
- ढोला मारू भवाईयों का प्राचीन खेल है जिसमे दादरा कहवरे ढपताल का विशेष प्रयोग रहता है ।
शिकारी नृत्य
- शिकारी नृत्य बारां जिले का प्रमुख नृत्य है
- शिकारी नृत्य शहरिया जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य है
लांगुरिया नृत्य
- यह नृत्य करौली जिले का प्रमुख नृत्य है
- लांगुरिया नृत्य धार्मिक नृत्य है ।
- लांगुरिया नृत्य कैलादेवी के लक्खी मेले में भक्तों द्वारा किया जाता है ।
- कैलादेवी करौली के यदुवंशी शासकों की कुल देवी है ।
- लांगुरिया नृत्य में एक काल्पनिक पात्र होता है ।
- इस नृत्य के वाद्य यंत्र नगाड़ा, ताशा व बीनतारा है ।
बम नृत्य
- बम नृत्य विशेष रूप से डीग (भरतपुर) जिले में प्रसिद्ध है ।
- यह नृत्य फाल्गुन माह में नयी फसल आने के उपलक्ष्य में किया जाता है ।
- बम नृत्य में नगाड़ा नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
- बम की धुन के साथ रसिया गाया जाने के कारण इस नृत्य को बम रसिया नृत्य भी कहते है।
- यह नृत्य करते समय दो फुट व्यास के ढाई फुट ऊंचे नगाड़े पर खडे होकर दोनों हाथों में मोटे डण्डे (बम) लेकर बजाया जाता है । दूसरा दल वादकों का होता है । जो थाली को गिलास पर उल्टा रख कर बजाते है । तीसरा दल गायकों व नृत्यकारों का होता हैं । जो गा-गाकर नाचते है ।
चरकूला नृत्य
- चरकूला नृत्य पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से भरतपुर जिले में किया जाता है
- यह ब्रज क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है ।
- चरकूला नृत्य विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का नृत्य है ।
- चरकूला नृत्य धातु के बर्तन पर दीपक जलाकर उसको सिर पर रखके महिलाएँ करती है । नृत्य करते समय महिलाएँ हाथ में लोटा लिए होती है । आदमी इनके सामने ताली बजाते हुए नृत्य करते है । प्रारंभ में यह नृत्य कृष्ण की राधा को स्मृति में बैलगाडी के पहिए पर 108 दीपक जलाकर किया जाता था
हुरंगा नृत्य
- भरतपुर का यह नृत्य भरतपुर जिले के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाने वाला एक स्वांग नृत्य नाटक है ।
- जिसमें पुरुष व महिलाएँ बम ढोल की ताल पर सामूहिक रूप से नृत्य करते है ।
- यह नृत्य होली के बाद चैत्र कृष्णा पंचमी से अष्टमी तक किया जाता है ।
खारी नृत्य
- खारी नृत्य मुख्यत अलवर (मेवात) में लोकप्रिय है
- यह नृत्य एक वैवाहिक नृत्य है ।
- खारी नृत्य दूल्हन की विदाई के समय उसकी सखियों के द्वारा किया जाने वाला मनमोहक नृत्य है ।
कबूतरी नृत्य
- चूरू का कबूतरी नृत्य है जो पेशेवर महिलाओं द्वारा किया जाता है
थाली नृत्य
- थाली नृत्य मुख्य रूप से जोधपुर का प्रसिद्ध नृत्य है
- यह नृत्य पाबूजी के भक्तों के द्वारा किया जाता है ।
- थाली नृत्य के अन्तर्गत रावण हत्था वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
- इस नृत्य में नृत्यकार थाली को अंगुली पर तेज गति से घुमाते हुए नृत्य करते है।
सुगनी नृत्य
- यह नृत्य पाली जिले के हवाली नामक स्थान पर भिगाना व गोइया आदिवासियों द्वारा श्रावण माह की बौछारों में किया जाता है ।
रण नृत्य
- यह गौड़वाड़ (पाली) के सरंगा जाति का नृत्य है ।
डांग नृत्य
- डांग नृत्य नाथद्वारा (राजसमन्द) का प्रसिद्ध नृत्य है
- यह नृत्य श्रीनाथ जी के भक्तों के द्वारा होली के अवसर पर किया जाता है ।
- डांग नृत्य एक धार्मिक नृत्य है ।
- नाथद्वारा (राजसमन्द) में वल्लभ सम्प्रदाय की गदी स्थित है ।
मयूर/भैरव नृत्य
- मयूर/भैरव नृत्य ब्यावर में बादशाह के मेले के दौरान बीरबल का पात्र निभाने वाला व्यक्ति बादशाह की सवारी के आगे करता हुआ चलता है ।
डिग्गीपुरी का राजा नृत्य
- यह नृत्य टोंक डिग्गी, मालपुरा में भगवान कल्याणजी की सेवा अर्चना में उनके भक्तों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है ।
पणघट नृत्य
- इसे जेघड़ नृत्य भी कहते है ।
- यह नृत्य राजस्थानी घेलपणिहारी ख्याल का मुख्य नृत्य है ।
- गगरियां सिर पर रखकर युवतियाँ नृत्य करती है तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते है ।
सूकर नृत्य
- यह आदिवासियों के द्वारा किये जाने वाला नृत्य है । आदिवासियों का लोक देवता सूकर है ।
- यह नृत्य अब अपना अस्तित्व खोने के कगार पर है ।
सालेड़ा नृत्य
- राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रो में समृद्धि के रूप में किया जाने वाला नृत्य
बिनौला नृत्य
- विवाह से पूर्व किया जाने वाला नृत्य ।
चाक चांणी नृत्य
- राजस्थान में यह अभिभावक दिवस पर परम्परा का प्रतीक लोक नृत्य है इस नृत्य को चाक चांनणी नृत्य भी कहा जाता है ।
- यह नृत्य गणेश चतुर्थी के पर्व पर पाठशालाओं के छात्रों द्वारा विचित्र वेशभूषा का प्रदर्शन करते हुए किया जाने वाला नृत्य हैं ।
- इस नृत्य में छात्रों द्वारा गुरू को अपने-अपने घर ले जाकर दक्षिणा का दिया जाना तथा गणेश वन्दना करने की प्रमुख परम्परा है ।
बिगड़ नृत्य
- किसानों द्वारा चौमासे में किया जाने वाला नृत्य बिगड नृत्य कहलाता है
गरबा नृत्य
- गरबा नृत्य गुजरात का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो राज्य में बाँसवाड़ा और डूंगरपुर क्षेत्र में नवरात्रों में विशेष रूप से किया जाता है ।
धाड़ नृत्य
- यह नृत्य केवल महिलाओ द्वारा वर्षा के देवता इंद्र को प्रसन्न करने हेतु किया जाता है ।
खोंडिया नृत्य टूटीयाँ नृत्य
- यह गृहस्थी का नृत्य है जिसका आयोजन संपूर्ण राज्य में विवाह के अवसर पर वर की बारात वथु पक्ष के घर पर जाती है तो वर पक्ष की महिलाओं द्वारा वर के घर पर आनंद व उल्लास व शगुन के रूप में नृत्य किया जाता है ।
घूमर घूमरा नृत्य
- घूमर-घूमरा नृत्य राजस्थान का एकमात्र शोक सूचक नृत्य है । जो केवल वागड क्षेत्र के कुछ ब्राह्मण समुदाय में किया जाता है ।
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