संत जसनाथ जी का जन्म 1482 ईं. (वि सं. 1539) की कार्तिक शुक्ला एकादशी (देवोसत्थान एकादशी) को बीकानेर जिले के कतरियासर ग्राम में हुआ ।
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Sant Jasnath ji ka Itihas |
- जन मान्यता है कि कतरियासर गाँव के जागीरदार हमीर जाट को एक रात स्वपन में दिखाई दिया कि गाँव की उत्तर दिशा में स्थित तालाब के किनारे एक बालक बैठा है । प्रात: तालाब के तट पर सचमुच एक सुन्दर बालक को देखकर नि: संतान हमीर जी अत्यन्त प्रसन्न हुए । उसे घर लाकर उन्होंने अपनी पत्नी रूपादे को सौंप दिया । यही बालक संत जसनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इनकी माता रूपादे थी ।
- नाथ सम्प्रदाय के लोग भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैं ।
- भगवान आशुतोष शिव की प्रसन्नता के लिए अघोर पूजा पद्धति को भी वे ठीक मानते है ।
- इन्होंने 36 धार्मिक नियमों का निर्धारण 15०4 ई. में किया ।
- नाथ सम्प्रदाय में ही इन 36 नियमों का पालन करने वाले लोग जसनाथ कहलाने लगे ।
- गोरक्ष पीठ के गोरख आश्रम में जसनाथ जी की शिक्षादीक्षा हुई । बालक जसनाथ के गुरू गोरखनाथ थे ।
- विक्रम संवत् 1551 की अश्विनी शुक्ल सप्तमी को उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ ।
- इस संप्रदाय के लोग गले में काले रंग का डोरा पहनते है ।
- जसनाथी सम्प्रदाय के वे अनुयायी जो सम्पूर्ण जीवन और संसार से विरक्त हो गये, वे परमहंस कहलाये ।
- जसनाथी सम्प्रदाय में भगवा वस्त्र पहनने वाले अनुयायी सिद्ध कहलाये ।
अग्नि नृत्य
- जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा धधकते हुये अंगारों पर किया जाने वाला नृत्य है इसमें जसनाथी अग्नि में प्रवेश करने से पहले फ्ते-फ्ते कहते है ।
- श्री जसनाथ जी मात्र 24 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हो गये । इन्होंने आश्विन शुक्ल सप्तमी को समाधि ग्रहण की ।
- जसनायी संत जीवित समाधि लेते है ।
- जसनाथी के चमत्कारों से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने जसनाथ जी को कतरियासर (बीकानेर) में 500 बीघा जमीन भेंट की ।
- ज़सनाथ जी को प्रमुख पाँच उप पीठें मालासर (बीकानेर) , लिखमादेसर (बीकानेर) , पूनरासर (बीकानेर) , बमलू (बीकानेर) एवं पाँचला (नागौर) है ।
- ये आजन्म ब्रह्मचारी रहे तथा गोरखमालिया नामक स्थान पर 12 वर्ष तक तपस्या क्री ।
- जसनाथजी के उपदेश ' सिंभूदडा ' एवं ' कोड़ा ' ग्रन्थों मे संग्रहित है
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