rajasthan ke lok geet gk - राजस्थानी लोकगीत
Rajasthan ke Lok Geet GK in Hindi - राजस्थानी लोकगीत |
राजस्थान के लोकगीत
प्रमुख लोक गीत |
आंगो मोरियों
औल्यूँ
यह किसी की याद में गाया जाने वाला गीत है ।
आंबो
यह गीत पुत्री की विदाई पर गाया जाता है ।
अजमो
यह गीत गर्भावस्था के आठवें महीने में गाया जाता है ।
इडूणी
यह गीत स्त्रियां पानी भरने जाते समय गाती है ।
" पाड़ोसण बड़ी चकोर ले गई ईंडोणी।
ईंडोणी रे कारण म्हारी सासू बोलै बोल ।
गम गई ईंडोणी। "
उमादे
राजस्थान में यह रूठी रानी का गीत है ।
ढोलामारू
यह सिरोही का प्रेमकथा पर आधारित गीत है । इसे ढाढी गाते है । इसमें ढोला मारू की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है ।
झोरावा
जैसलमेर जिले में पति के प्रदेश जाने पर उसके वियोग मे गाया जाने वाला गीत है ।
झूलरिया
यह गीत माहेरा या भात भरते समय गाया जाता है ।
फतमल
यह गीत हाड़ौती के राव फतहल तथा उसकी टोडा की रहने वाली प्रेमिका की भावनाओं से संबंधित है ।
फलसड़ा
विवाह के अवसर पर अतिथियों के आगमन पर यह गीत गाया जाता है ।
फाग
यह होली के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।
तेजा
यह तेजाजी की भक्ति में खेत की बुवाई/जुताई करते समय गाया जाता है ।
मोरिया थाईं रे थाईं
इस गरासिया गीत में दूल्हे की प्रशंसा की जाती है और महिलाएं इसके इर्द गिर्द नृत्य करती है ।
मरसिया
मारवाड़ क्षेत्र मे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मृत्यु के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।
मोरिया
इसमें ऐसी बालिका की व्यथा है, जिसका संबंध तो तय हो चुका है, लेकिन विवाह में देरी है यह एक विरह गीत है । मोरिया का अर्थ मोर होता है ।
माहेरा
बहिन के लडके या लडकी की शादी के समय भाई उसको चूनडी ओंढाता है और भात भरता है । अतः इस प्रसंग से संबधित गीत भात/माहेरा के गीत कहलाते है ।
मूमल
जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारित एव प्रेम गीत है । मूमल लोद्रवा ( जैसलमेर ) की राजकुमारी थी ।
"म्हारी बरसाले री मूमल, हालौनी ऐ आली रे देस।"
नोट: गणगौर बूंदी व जोधपुर में नहीं मनायी जाती है,
लाखा फुलाणी के 'गीत-
ये गीत मध्यकाल से प्रारंभ माने जाते है और इनकी उत्पत्ति सिंध प्रदेश से हुई थी ।
लांगुरिया
करौली क्षेत्र की कुल देवी 'केला देवी' की आराधना में गाए जाने वाले ये भक्ति गीत है ।
लसकरिया
लसकरिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
बीन्द
बीन्द गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता हैं
"वनड़ो उमायो ए बनी थारै कारणे,
जोड़ी की उमायो ए वड़ गौतम थारै रूप में।"
रसाला
रसाला गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
रमगारिया
रमगारिया गीत कच्छी घोडी नृत्य करते समय गाया जाता है ।
लावणी
लावणी का अर्ध बुलाने से है । नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के लिए यह गीत गाया जाता है । मोरध्वज, ऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियां है ।
लूर
यह राजपूत स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
लोरी
ये गीत माँ द्वारा अपने बच्चे को सुलाने के लिए गाती है ।
गोरबंद
यह गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है । गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है । राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों विशेषत: मरूस्थली व शेखावाटी क्षेत्रों में लोकप्रिय 'गोरबन्द' गीत प्रचलित है ।
गोपीचन्द
इसमें बंगाल के शासक गोपीचन्द द्वारा अपनी रानियों के साथ किया संवाद चर्चित है ।
गणगौर
गणगौर के अवसर पर गाया जाने वाला गीत । राज्य में सर्वाधिक गीत इसी अवसर पर गाये जाते है ।
गढ़ गीत
ये गीत सामन्तो राज दरबारों और अन्य समृद्ध लोगों द्वारा आयोजित महफिलों में गाए जाते है । ये रजवाडी व पेशेवर गीत है । ढोली दमापी मुसलमान तवायफें इन गीतों को गाते है ।
बन्ना-बन्नी
विवाह के अवसर पर वार-वधू के लिए ये गीत गाये जाते है ।
"बना की बनड़ी, फेरा में झगड़ी।
थे ल्यायां क्यों ना जी, सोना री हंसली। "
बीणजारा
यह एक प्रश्नोत्तर परक गीत है । इस गीत में पत्नी पति को व्यापार हेतु प्रदेश जाने की प्रेरणा देती है ।
" बिणजारा ओ, हाँरै लोभी लोग दिसावर जाय,
थाने सूत्या न सरै बिणजारा ओ।"
विनायक
विनायक मांगलिक कार्यो के देवता है किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले विनायक (गणेशजी की पूजा) पूजा कर गीत गाये जाते है ।
"एक सौ पान सुपारी ड्योढ सै
म्हारो फलसड़ो कुण खुड़काइयो।
छोटो सो बिंदायक डगमग डोलै
च्यार लाडू खावा नै"
बंधावा
यह शुभ कार्यं के सम्पत्र होने पर गाया जाने वाला लोकगीत है ।
बादली गीत
बादली गीत शेखावाटी, मेवाड़ व हाडौती क्षेत्र में गाया जाने वाला वर्षा ऋतु से संबंधित गीत है ।
" बादली बरसे क्यूँ नी ए, बीजली चमके क्यूँ नी ए। "
बीरा गीत
बीरा नामक लोकगीत ढूंढाड़ अंचल में भात सम्पन्न होने के समय गाया जाता है ।
" बीरा म्हारे रमा क्षमा सँ आज्यो जी। "
बेमाता गीत
नवजात शिशु का भाग्य लिखने वाली बेमाता के लिए यह गीत गाया जाता है ।
भणेत
राजस्थान में श्रम करते समय परिश्रम से होने वाली थकान को दूर करने के लिए इस गीत को गाया जाता हैं ।
पडवलियों
बालक के जन्म होने के पश्चात बालमनुहार के लिए गाये जाने वाला गीत है । पडवलियों का अर्थ घास से बनाया हुआ छोटा मकान होता है
पणिहारी
पनघट से पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते है । इस गीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रत धर्म पर अटल रहना बताया गया है ।
"सागर पाणीने जाऊँ सा हो नजर लग जाए। "
परणेत
इस गीत का सम्बन्थ विवाह से है । राजस्थान में विवाह के गीत सबसे अधिक प्रचलित है । परणेत के गीतों में बिदाई के गीत बहुत ही मर्म स्पर्शी होते है ।
"वनखंड री ये कोयल वनखंड छोड़ चली।"
पावणा
यह गीत दामाद के ससुराल आगमन पर गाया जाता है ।
पपैया
पपैया एक प्रसिद्ध पक्षी है । इसमें एक युवती किसी विवाहित युवक को भ्रष्ट करना चाहती है, किन्तु युवक उसको अन्त में यही कहता है कि मेरी स्त्री ही मुझे स्वीकार होगी । अत: इस आदर्श गीत में पुरूष अन्य स्त्री से मिलने के लिए मना करता है ।
पंछीड़ा
यह गीत हाडौती व ढूंढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाता है ।
"पंछीड़ा रे उड़न जाजे पावा गढ़ रे।"
पवाड़ा
किसी महापुरूष, वीर के विशेष कार्यों को वर्णित करने वाली रचनाएं 'पवाडा' कहलाती है ।
पटैल्या
यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
बिछिया
यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
बिछूड़ो गीत
बिछूड़ो गीत हाड़ौती क्षेत्र (कोटा-बूंदी) का लोकप्रिय गीत है।
जिसमें एक पत्नी बिच्छू द्वारा डसने से मरने वाली है तथा अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देते हुए गाती है।
"मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूडो।"
लालर
यह पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासियों के द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
पीपली
यह रेगिस्तानी क्षेत्र विशेषत: शेखावाटी, बीकानेर, मारवाड़ के कुछ भागों में स्त्रियों द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला लोकगीत है । इसमें प्रेयसी अपने परदेश गये पति को बुलाती है । यह तीज के त्यौहार के कुछ दिन पूर्व गाया जाता है ।
पीठी
विवाह के अवसर पर दोनों पक्ष के यहाँ वर-वधु को नहलाने से पूर्व पीठी या उबटन लगाते है, जिससे उनमें रूपनिखार आए, उस समय 'पीठी गीत' गाया जाता है । यह कार्य भौजाई (भाभी) द्वारा किया जाता हैं ।
सुपियारदे
इस गीत में त्रिकोणीय प्रेम कथा का वर्णन किया गया है ।
पील्लो गीत
यह शिशु जन्म के पश्चात जलवा पूजन के समय गाया जाता है ।
सुवंटिया
इस गीत में भील स्त्री द्वारा परदेश गये पति को संदेश भेजती है ।
सहसण या सैंसण माता के गीत
सैंसण माता का जैन धर्म के तेरापंथी संप्रदाय में भारी महत्व है । जैन श्रावकों की निराहार तपस्या के दौरान सहसण माता के गीत गाये जाते है ।
सुपणा
यह विरहणी का एक स्वप्न गीत है । इस गीत के द्वारा रात्रि में आये स्वप्न का वर्णन किया जाता हैं ।
" सूती थी रंगमहल में, सूताँ में आओरे जंजाल। "
सींठणा/सीठणी
विवाह के अवसर पर भोजन के समय गाये जाने वाले गीत सीठणा गाली गीत है ।
सेजा
इसमें प्रकृति पूजन, लोकगीत, परम्परा , कला और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है । इसमें कुँवारियां श्रेष्ठ वर की कामना, अखण्ड सौभाग्य एवं सुखी दामपत्य जीवन की शुभेच्छा से पूजा अर्चना करती है ।
सारंग
यह संगीत दोपहर के समय में गाया जाता है ।
केसरिया बालम
यह राज्य गीत है । इस गीत के माध्यम से प्रदेश गये पति को आने का संदेश भेजा जाता है ।
कांगसियो
कांगसियों का शाब्दिक अर्थ 'कंघे' से है जो भारतीय संस्कृति में बालों का शृंगार करने के विशेष काम आता है।
विशेषतः कांगसियो गीत गणगौर के मांगलिक अवसर पर गाया जाता है।"म्हारै छैल भंवर रो कांगसियो पणिहाऱ्या ले गई रे।"
ईसरदासजी रो कांगसियो म्है मोल लेस्यां राज,
गोराँ बाई रा लांबा लांबा केश,
कांगसियो बाई रैचिना चड्यो जी राज। "
काजलियौ
भारतीय संस्कृति में काजल सोलह श्रृंगारो में से एक श्रृंगारिक गीत हैं । यह विवाह के समय वर की आँखों में भोजाई काजल डालते समय गाती है ।
"काजळ भरियो कूपलो कोई
धर्यो पलंग अध बीच कोरो काजळियो। "
कोयलडी
परिवार की स्त्रियां वधू को विदा करते समय विदाई गीत कोयलडी गाती है ।
कुकड़लू
शादी के अवसर पर जब दूल्हा तोरण पर पहुंचता है तो महिलाएं ये गीत गाती है ।
कामण
राजस्थान के कई क्षेत्रों मे वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाये जाने वाले गीत कामण कहलाते है ।
कलाकी
कलाकी एक वीर रस प्रधान गीत है ।
कलाली
कलाली लोग शराब निकालने और बेचने का काम करते है । ये ठेकेदार होते है । कलाली गीत में सवाल-जवाब है । इस गीत में श्रृंगारिक एवं मन 'की चंचलता दिखाई देती है ।
कुरंजा
राजस्थानी लोक जीवन में विरहणी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरंजा पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है ।
"तू छे कुरंजा भयली एतू छै धरम की ए भाण
पतरी लिख दूं प्रेम की ए दीजो पियाजी ने जाय
कुरंजा म्हारो भवर मिला दीजे।"
कुकडी
यह रात्रि जागरण का अंतिम गीत होता है ।
केवडा
केवडा एक वृक्ष है । यह प्रेयसी द्वारा गाया जाने वाला गीत है ।
काछबा
यह प्रेम गाथा पर आधारित लोक गीत है, जो पश्चिमी राजस्थान मे गाया जाता है ।
कागा
इसमें विरहणी नायिका कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मानती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है ।
"उड़-उड़रे म्हारा काळा रे कागजा,
जद म्हारा पिवजी घर आवै। "
हिन्डो/हिन्डोल्या
श्रावण मास मे राजस्थानी महिलाएं झूला झूलते समय यह लालित्यपूर्ण गीत गाती है ।
"सावणियों री हीडो रे बाँधन जाए। "
हमसीढ़ो
उत्तरी मेवाड़ में भीलों का प्रसिद्ध लोकगीत है । इसे स्त्री-पुरुष साथ मिलकर गाते है ।
हरजस
राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला सगुण भक्ति का लोकगीत है, जिसमें राम और कृष्णा की लीलाओं का वर्णन है । यह गीत शेखावाटी क्षेत्र में किसी को मृत्यु के अवसर पर गाया जाता है ।
हालरिया
यह जैसलमेर मे बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है ।
हिचकी
किसी के द्वारा याद किये जाने पर हिचकी आती है । उस समय गाया जाने वाला गीत हिचकी गीत है ।
"म्हारा पियाजी बुलाई म्हनै आई हिचकी,
म्हारा साईनाडा रो जी घबरावे,
हिचकी घड़ी घड़ी मत आवै।"
हरणी
यह गीत दीपावली के त्यौहार पर 10-15 दिन पहले मेवाड क्षेत्र में छोटे-छोटे बच्चों की टोलीयों द्वारा घर-घर जाकर गाया जाता है इसे लोवडी गीत भी कहते है । इस गीत के द्वारा बच्चे दीपावली पर खर्च करने के लिए थोड़ा-थोड़ा पैसा एकत्रित करते है ।
होलर
यह गीत पुत्र जन्म से संबंधित है
"होलर जाया ने हुई बधाई, ये म्हारा वंश बढ़ायो रे अलबेली जच्चा।
रंग महल विच जच्चा होलर जायो ये पीलारी मोज ये,
प्यारी लागे कुल बहु ओ ललना।"
हीड
यह गीत मेवाड क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर आदिवासी लोग समूह रूप में घर-घर जाकर एक गाथा के रूप में गाते है हीड़ का तात्पर्य दीपक होता है ।
हूंस
इस गीत के माध्यम से राजस्थान गर्भवती महिला को दो जीवों वाली कहते है । हूंस का अर्थ गर्भवती की इच्छा होती है इस तरह के गीतों में घेवर, केरी मत्तीरा फली एवं बेर की इच्छापूर्ति के गीत गाते है ।
हर का हिंडोला
यह गीत किसी वृद्ध की मृत्यु के अवसर पर गाया जाता हैं ।
दारूडी
यह गीत रजवाडों में शराब पीते समय गाया जाता है
"दारूड़ी दाखाँ री म्हारै भंवर ने थोड़ी-थोड़ी दीजियो ए "
दुपट्टा
यह गीत दूल्हे की सालियों द्वारा गाया जाता है ।
धुंसो/धुंसा
यह मारवाड़ का राज्य गीत है । इस गीत में अजीत सिंह की धाय माता गोरा धाय का वर्णन है ।
घूमर
यह गणगौर के त्यौहार व विशेष पर्वो तथा उत्सवों पर मुख्य रूप से गाया जाता है ।
घूमर - जब साधारण स्त्रियाँ भाग लेती हैं।
लूहर - जब राजपूत स्त्रियाँ भाग लेती हैं।
झूमरियो - यह बालिकाओं का घूमर है।
घुड़ला
यह मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला त्यौहार के अवसर पर कन्याओं द्वारा गाया जाने चाला लोकगीत हैं ।
"घुडलो घूमेला ली घूमेला, घुडेले रे बांध्यो सूत।
घूड़लो घुमे छै, म्हारे घुड़ले रे बांध्यो सूत।
तेल बघे घी घाल, घुड़लो घुमे छै
सुहागण बाहर आय, घुड़लो घूमे छै। "
घुघरी
बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत ।
घोडी
लडके के विवाह के अवसर पर निकासी के समय गाया जाने वाला गीत है ।
रतन राणा
यह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोढा राणा रतन सिंह का गीत है । यह पश्चिमी क्षेत्र में गाया जाने वाला सगुन भक्ति का गीत है ।
रातिजगा
रातभर जाग कर गाये जाने वाले गीत रातिजगा गीत कहलाते है ।
रसिया
रसिया गीत होली के अवसर पर अलवर, भरतपुर (ब्रज क्षेत्र) में किए जाने वाले 'बम नृत्य के साथ गाये जाते हैं।
जिनमें श्री कृष्ण की लीलाओं का उल्लेख किया जाता है।"माखन की चोरी छोड कन्हैया मैं समझाऊ तोय। "
जलो और जलाल/जला
वधू के घर जब स्त्रियाँ वर की बारात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है ।
"सईयो मोरी रे आयौड़ा जे रे जलालो देश में,
चमक्यारे च्यारे देश......... ( जैसलमेर)"
जलो म्हारी जोड़ रो उदयपुर मालैरे, (जोधपुर) "
जीणमाता का गीत
यह गीत राजस्थान के समस्त गीतों में सबसे लम्बा लोक गीत है । इस गीत में भाईं-बहन के प्रेम, पहाडों की तपस्या, मन्नतों का पूरा होना और आक्रमणकारियों से क्षेत्र की रक्षा का वर्णन किया जाता है
जकडियां
यह पीर ओलियों की प्रशंसा में गाया जाने वाला धार्मिक गीत है । राजस्थानी मुस्लिम समाज मे इन गीतों का प्रचलन सर्वाधिक है ।
जच्चा
यह गीत पुत्र जन्म के अवसर पर गाया जाता है, इसका अन्य नाम होलर है ।
जीरो
इस गीत में पत्नी अपने पति को जीरे की खेती न करने का अनुरोध करती है ।
“यो जीरो जीव रो बैरी रे, मत बोओ म्हारा परण्या जीरो। "
चरचरी
ताल और नृत्य के साथ उत्सव में गाई जाने वाली रचना 'चरचरी' कहलाती है ।
चाक गीत
विवाह के समय स्त्रियों द्वारा कुम्हार के घर जाकर पूजने (घड़ा) के समय गाया जाता है ।
"माथै मैं महमद पहरल्यो कुम्हारी
तो रखड़ी की छवि न्यारी ।
ए रायजादी ए कुम्हारी।"
चिरमी
चिरमी एक पौधा होता है, इस पौधे को संबंधित कर वधू द्वारा अपने ससुराल में भाई व पिता की प्रतिक्षा करते समय की मनोदशा का वर्णन किया जाता है।
"चिरमी रा डाला रा चार, वारी जाऊ चिरमी ने। "
हींडा
यह गीत सहरिया जनजाति में दीपावली के अवसर पर गाया जाता है ।
लहंगी
यह गीत जनजाति के द्वारा वर्षा ऋतु में गाया जाता है ।
आल्हा
यह गीत सहरिया जनजाति के द्वारा वर्षा वस्तु में गाया जाता है ।
चौबाली
राजस्थानी लोकगीतों का संस्मरण चौबाली कहलाता है ।
रामदेवजी के गीत
लोकदेवताओं में सबसे लम्बे गीत रामदेवजी के गीत है ।
राजस्थान की लोक गायन शैलियां
माण्ड गायन शैली
10 वीं 11 वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र माण्ड क्षेत्र कहलाता था।
अतः यहां विकसित गायन शैली माण्ड गायन शैली कहलाई।
एक श्रृंगार प्रधान गायन शैली है।
प्रमुख गायिकाएं
अल्ला-जिल्हा बाई (बीकानेर) - केसरिया बालम आवो नही पधारो म्हारे देश।
गवरी देवी (पाली) भैरवी युक्त मांड गायकी में प्रसिद्ध
गवरी देवी (बीकानेर) जोधपुर निवासी सादी मांड गायिका।
मांगी बाई (उदयपुर) राजस्थान का राज्य गीत प्रथम बार गाया।
जमिला बानो (जोधपुर)
बन्नों बेगम (जयपुर) प्रसिद्ध नृतकी "गोहरजान" की पुत्री है।
मांगणियार गायन शैली
राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर तथा बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार जिसका मुख्य पैसा गायन तथा वादन है।
मांगणियार जाति मूलतः सिन्ध प्रान्त की है तथा यह मुस्लिम जाति है।
प्रमुख वाद्य यंत्र कमायचा तथा खड़ताल है।
कमायचा तत् वाद्य है।
इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है।
तालबंधी गायन शैली
औरंगजेब के समय विस्थापित किए गए कलाकारों के द्वारा राज्य के सवाईमाधोपुर जिले में विकसित शैली है।
इस गायन शैली के अन्तर्गत प्राचीन कवियों की पदावलियों को हारमोनियम तथा तबला वाद्य यंत्रों के साथ सगत के रूप में गाया जाता है।
वर्तमान में यह पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
हवेली संगीत गायन शैली
प्रधान केन्द्र नाथद्वारा (राजसमंद) है।
औरंगजेब के समय बंद कमरों में विकसित गायन शैली।
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tags: Rajasthan Ke Lok Geet in Hindi - राजस्थान के प्रमुख लोकगीत, list, notes, pdf, trick,
4 Comments
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अन्तर्जाल पर यह पन्ना महज एक देखने की चीज नहीं है , यह तो अपने आप में वीकी पीडिया है। मैंने तो इसे अपने बुकमार्क में सुरक्षित कर लिया है। इतनी जानकारी से मैं मन्त्र-मुग्ध सा हो गया हूँ। प्रस्तुत कर्त्ता को सादर अभिवादन ! Vijay Kayal
ReplyDeleteअन्तर्जाल पर यह पन्ना महज एक देखने की चीज नहीं है , यह तो अपने आप में वीकी पीडिया है। मैंने तो इसे अपने बुकमार्क में सुरक्षित कर लिया है। इतनी जानकारी से मैं मन्त्र-मुग्ध सा हो गया हूँ। प्रस्तुत कर्त्ता को सादर अभिवादन ! Vijay Kayal
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