जीणमाता चौहानों की कुल देवी है । जीणमाता का जन्म धांधू (चूरू) में चौहान राजपूत कुल में हुआ था । जीण और हर्ष भाईं-बहिन थे ।
राजस्थान की लोक देवी जीणमाता (Rajasthan ki Lok Devi Jeen Mata)
Rajasthan ki Lok Devi Jeen Mata |
- हर्ष का विवाह होने पर एक दिन नणद-भौंजाईं में कहा सुनी हो जाने के कारण जीण घर से चली गई ।
- हर्ष ने बहुत मनाया पर वह नहीं लोटी ।
- अत: हर्ष भी उसके साथ हो लिया और पहाडों में तपस्या करने लगा ।
- जीण माता का मंदिर सीकर से सात कोस दक्षिण में गाँव के पास की पहाडियों में स्थित है ।
- हर्ष पर्वत पर शिलालेख के अनुसार जीणमाता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान (प्रथम) के शासन काल में हरड़ ने 1064 ई. में करवाया
- जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढाई प्याला मदिरा पान करती है ।
- इसे प्रतिदिन ढाई प्याला शराब पिलाई जाती है ।
- जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों में लगता है ।
- जीण माता को जयन्ती का अपभ्रंश माना गया है, जयन्ती नव दुर्गाओं में प्रथम मानी जाती है ।
- उपासक इस माता की तांत्रिक शक्ति पीठ को सिद्ध स्थल मानते हैं ।
- जीण माता को मीणों की कुल देवी, चौहानों की कुल देवी, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी एवं मधुमक्खियों की देवी के नाम से जाना जाता है ।
- जीण माता की आदमकद मूर्ति अष्टभुजा युक्त है ।
- मंदिर परिसर में बकरों के कान की बलि दी जाती है ।
- राजस्थानी लोक साहित्य में इस देवी का गीत सबसे लंबा है ।
- इस गीत को कनफटे जोगी केसरिया वस्त्र पहनकर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू और सारंगी पर गाते है ।
- यह गीत करूण रस से ओत-प्रोत है जो 'चिरंजा' कहलाता है ।
- महाराजा महेशदान सिंह ने नागौर जिले के प्राचीन कस्बे मारोठ के पश्चिम में स्थित पर्वत की गुफा के भीतर जीण माता का एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बनवाया ।
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