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राजस्थान की लोक देवियाँ - Rajasthan ke Pramukh Lok Deviya
राजस्थान की लोक देवियाँ - Rajasthan ke Pramukh Lok Deviya |
शीतला माता
- इनका प्रमुख स्थान शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर) है ।
- शीतला माता एक ऐसो माता है, जिसकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है ।
- इनके मंदिर को सुहाग मंदिर के नाम से जाना जाता है । शीतला माता का वाहन गधा होता है ।
- शीतला माता के मंदिर का निर्माण सवाईंमाधो सिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर बनवाया ।
- इनका पुजारी कुम्हार होता है ।
- शीतला माता का प्रतीक चिन्ह 'दीपक' (मिट्टी की कटोरिया) होती है ।
- चेचक की देवी के रूप में शीतला माता प्रसिद्ध है । शीतला माता को सेढ़ल माता, बच्चों की संरक्षिका आदि उपनामों से भी जाना जाता है ।
- चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी के दिन गधों के मेले का आयोजन होता है । प्राय: जांटी (खेजडी) को शीतला माता मानकर पूजा जाता है ।
- बांझ स्त्रियाँ संतान प्राप्ति हेतु शीतला माता की पूजा करती है । शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंदिर के रूप में माना जाता है ।
सकराय/शाकम्भरी माता
- इनका आस्था केन्द्र उदयपुर वाटी (झुंझुनू) के समीप स्थित है ।
- सकराय माता खण्डेलवालों की कूल देवी के रूप में प्रसिद्ध है ।
- सकराय माता ने अकाल से पीडित जनता को बचाने के लिए फल सब्जियां, कंद-मूल उत्पन किये ।
- इस शक्ति के कारण ये शाकम्भरी कहलाई ।
- शाकम्भरी माता अजमेर के चौहानों की कुलदेवी है ।
- शाकम्भरी माता का मंदिर सांभर में है तथा एक मंदिर सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित है ।
- इस शक्ति पीठ पर नाथ सम्प्रदाय का वर्चस्व रहा है । '
- सकराय माता का मंदिर सीकर जिले के खंडेला व झूझूनूं जिले के उदयपुर वाटी के मध्य स्थित है ।
- देवी का प्राचीन और वास्तविक नाम शंकरा है । शंकरा शब्द का अपभ्रंश और प्रचलित रूप सकराय हो गया ।
- शंकरा या सकराय माता को भांतिवश शाकंभरी माता के नाम से भी पुकारते है ।
राणी सती लोक देवी
- झुंझुनू जिले की राणी सती लोक देवी के रूप में प्रसिद्ध है ।
- इनका नाम नारायण बाई था ।
- राणी सती का जन्म महम ग्राम (डोकवा) के अग्रवाल घुड़सालम के यहाँ हुआ ।
- राणी सती का विवाह हिसार के तनधनदास के साथ हुआ । ये एक कुशल योद्धा थे ।
- हिसार के नवाब की रक्षा करते हुए धनदास की मृत्यु हो गई तब नारायणी बाईं सन् 1652 में मार्गशीर्ष कृष्णा नवमीं को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सती हुई ।
- इनके परिवार में कुल 13 स्त्रियां सती हुई ।
- झुंझुनू में राणी सती का विशाल संगमरमरी मंदिर है ।
- लोक भाषा में राणी सती दादीजी के नाम से भी प्रसिद्ध है सती माता को अग्रवाल जाति की कुलदेवी माना जाता है ।
नारायणी माता या करमेती माता
- नारायणी माता को नाईं जाति के लोग अपनी कुलदेवी मानते है ।
- इनका मंदिर अलवर जिले के राजगढ तहसील में बरवा डूंगरी तहसील में स्थित है ।
- नारायणी माता का मंदिर 11वीं सदी में बनाया गया ।
- वर्तमान मे मीणा व नाईं जाति के बीच नारायणी माता को लेकर विवाद चल रहा है ।
- अलवर जिले में नारायणी माता के पुजारी, मीणा होते है ।
- अलवर जिले की राजगढ तहसील में बरवा की डूंगरी की तलहटी में नारायणी माता प्रसिद्ध लोकतीर्थों में से एक है ।
- यहाँ पर नारायणी नामक महिला अपने पति के साथ सती हुई थी ।
आई माता
- आई माता सिरवी जाति के क्षत्रिय लोगों की कुल देवी है ।
- इनका बिलाड़ा (जोधपुर) में प्रमुख मंदिर हैं ।
- इस मंदिर में दीपक की ज्योति से कैसर टपकती है ।
- माता का थान बडेर कहलाता है, इसमें मूर्ति नहीं होती है ।
- सिरवी लोग आईं माता के मंदिर को दरगाह कहते है ।
- हर महीने की शुक्ला द्वितीया को आई माता की पूजा होती है ।
- गुजरात के अंबापुर गाँव में बीका डाबी राजपूत के घर विक्रम संवत् 1472 भादवा सुदी बीज शनिवार को सुंदर कन्या जीजी बाईं ( आईं माता के बचपन का नाम ) का जन्म हुआ ।
- आई जी माता रामदेवजी की शिष्या थी ।
- आईं माता नवदुर्गा अर्थात देवी का अवतार मानी जाती हैं ।
- सिरवी जाति राजपूतों से निकली एक कृषक जाति मानी जाती है ।
- आई पंथी आईं माता द्वारा बनाए गए 11 नियमों का पालन करने के लिए सूत के धागे की 11 गाँठों वाली बेल पुरुष के हाथ पर तथा महिलाओं के गले में बाधी जाती है ।
महामाई/महामाया
- इनका स्थान मावली (उदयपुर) में है ।
- महामाया को शिशू रक्षक लोकदेवी के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता है ।
- गर्भवती स्त्रियां अपनी प्रसव की पूर्ति के लिए और बच्चे को स्वस्थ प्रसन्न रखने के लिए मालवी की महामाया की पूजा करती हैं ।
घेवर माता का इतिहास
- राजसमन्द की पाल पर घेवर माता का मंदिर है ।
- घेवर माता अपने हाथों में होम की ज्वाला प्रज्जवलित कर अकेली सती हुई थी ।
- कहा जाता है कि जब राजसमन्द में पाल बनी तो वह बनते-बनते टूट जाया करती थी, तब किसी ज्योतिषी के कहने से ऐसी स्त्रि की खोज की गई जो पतिव्रता हो और जिसके बाएँ गाल पर आंखों के नीचे तिल हो । मालवे से घेवर बाईं लाई गई । हाथ से पाल पर पत्थर रखवाया गया । वहीं महाराणा के सम्मुख होम करते-करते बिना पति के सती हुई ।
जिलाणी माता
- अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे की प्राचीन बावडी के पास लोकदेवी जिलाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर है ।
- जिलाणी माता ने हिन्दुओं की रक्षा की और इन्हें मुसलमान बनने से बचाया ।
- लोकदेवी जिलाणी माता के मंदिर में प्रतिवर्ष दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है ।
- धर्मांतरण को रोकने के लिए प्रसिद्ध जिलाडी माता का प्रसिद्ध मंदिर बहरोड़ कस्बे ( अलवर ) की प्राचीन बावडी के पास स्थित है ।
भदाणी/अदाणा माता
- कोटा से 5 किलोमीटर दूर भदाणा नामक स्थान पर माता का मंदिर है ।
- भदाणा माता के मंदिर में मूठ (मारण का तांत्रिक प्रयोग) की झपट में आये व्यक्ति को मौत के मुँह से बचाये जाने का उपक्रम होता है ।
- मूठ में प्राय उड़द, मूंग फेंके जाते हैं।
- भोपा घुटने व कुंहनियां जैसे स्थान चूसकर उडद, मूंग निकालकर बाहर फेंकता हैं फिर देवी के सम्मुख भैरू को बोतल की धार देने को कहा जाता है । ठीक होने पर सवामण का प्रसाद करने व एक माह बाद दर्शन करने का संकल्प लिया जाता है ।
- भोपा फिर चूसकर रहे-सहे उड़द, मूंग निकाल देता है ।
- कोटा के शासकों की कुल देवी भदाणा माता का मंदिर भदाणा (कोटा) में है ।
छींक माता
- राज्य में माघ सुदी सप्तमी को छींक माता की पूजा होती हैं ।
- जयपुर के गोपाल जी के रास्ते में इनका मंदिर है ।
- छींक माता मुख्यत जयपुर की है ।
बडली माता
- बडली माता की तांती बांधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है । बडली माता का मंदिर चित्तौड़गढ़ जिले में छींपों के अकोला में बेड़च नदी के किनारे स्थित है ।
- बच्चों को दो तिबारियों से निकालने पर बीमार बच्चा अच्छा हो जाता है ।
- लोग बडली माता की तांती बांधते है ।
- मनौती पूरी होने पर लोहे का त्रिशूल चढाते है ।
शच्चिया माता
- इनका प्रमुख स्थल ओसिया (जोधपुर) में है ।
- सचिया माता ओसवालों की कुलदेवी है ।
- सचिया माता की वर्तमान प्रतिमा कसौरि पत्थर की है ।
- यह प्रतिमा वस्तुत: महिषासुर मर्दिनी देवी की हैं ।
- सचिया माता सम्प्रदायिक सद्भाव की देवी है ।
- सचिया माता के मंदिर का निर्माण परमार राजकूमार उपलदेव ने करवाया था ।
- ओसियां का प्राचीन नाम उकेश या उपकेश पट्टन था ।
- ओसियाँ राजस्थान का एकमात्र स्थान है जहाँ चार शतकों ( 8-12वीं शताब्दी ) तक विभिन्न संप्रदायों के देव भवन बनते रहे हैं ।
- यहाँ वैष्णव, शैव, सूर्यं, जैन एवं देवी मंदिर है ।
आवड/आवक माता
- आवक माता का जन्म जैसलमेर में आगमन वि. सं. 888 के आसपास माना जाता है । आवड़ माता ने हकड़ा नदी को हथेली में सोख लिया था । आवक माता ने लूणराज भाटी को अपने हाथ का एक स्वर्ण चूड़ा देकर आशीर्वाद दिया कि इस चूडे को अपने दाहिने हाथ में धारण करने के बाद यदि तू युद्ध भूमि में उतरेगा तो अकेले ही खड्ग से शत्रु की सैना को पराजित करेगा ।
आशापुटरा माता
- आशापुरा माता बिस्सा जाति के लोगों की कुलदेवी है ।
- बिस्सा जाति के लोग आशापुरा माता के उपासक हैं ।
- बहूत से लोगों की मनोकामना पूर्ण करने पर यह आशापुरा माता के नाम से प्रसिद्ध हुई ।
- आशापुरा माता का मंदिर पोकरण के पास स्थित है ।
- बिस्सा जाति में विवाहित वधूमेहँदी नहीं लगा सकती है ।
- भाद्र शुक्ला दशमीं व माघ शुक्ला दशमीं को दो विशाल उत्सव आशापुरा माता के लिए होते है ।
- वि. सं. 1200 के लगभग बिस्सा जाति के लोग, कुलदीप श्रीलूण भाणजी के साथ कच्छभुज से पधरे थे ।
- बिस्सा जाति के लोग झडूला यही उतारते है तथा विवाह के बाद 'जात' लगाने भी जाते है ।
- आशापाला वृक्ष में इस देवी का वास है अतः आशापाला वृक्ष चौहान वंश का आराध्य वृक्ष है, जिसे चौहान कुल के लोग न तो इस वृक्ष को काटते हैं और न ही जलाते हैं ।
आमजा माता
- इनका मंदिर उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर कैलवाड़ा में स्थित है ।
- आमजा माता कैलवाड़ा के पास गाँव रीछडे मे भीलों की देवी है ।
- आमजा माता की पूजा के लिए एक भील भोपा तथा दूसरा ब्राह्मण पुजारी है ।
- प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मंदिर में मेला लगता है ।
चारणी देवियां/आवड माता
- चारणी देवी सात देवियों के रूप में प्रसिद्ध है ।
- चारणों की देवियां 'आवड़ा', 'आईंनाथ', 'जोगमाया' के रूप में पूज्य है ।
- चारणी देवियां जैसलमेर क्षेत्र की है ।
- जैसलमेर से कुछ दूरी पर भूगोपा के पास एक पहाडी की गुफा में तेमड़ेराय का मंदिर स्थित हैं, जो सात देवियों का मंदिर हैं ।
- चारण देवियों की स्तुति 'चरजा ' कहलाती हैं, जो दो प्रकार की होती है सिंघाऊ और घड़ाऊ ।
- सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा को ढाला कहा जाता है ।
सांगिया/स्वांगिया/स्वांगृहाणी/ सुग्गा माता
- स्वांगिया माता भाटी शासकों की कुलदेवी है । स्वांगिया माता मुख्यत: जैसलमेर क्षेत्र की है ।
- इन को जैसलमर के राज्य चिन्ह में स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ हाथ में लिए दिखाया गया है ।
- राज चिन्हों में सबसे ऊपर पालम चिडिया, जिसे शकुन/सूगन चिडी भी कहते है ।
- यह देवी का प्रतीक है । सुगन चिडी को आवड माता मानते हैं ।
- स्वांगिया माता के पूर्वज सडवा शाखा के चारण थे जो गायें पालते थे और घी व घोडों का व्यापार करते थे ।
तणोटिया माता या रूमाला माता
- इनका मन्दिर तनोट (जैसलमेर) में है ।
- तणोटिया माता भाटी शासकों व सेना के जवानों की कुल देवी मानी जाती है ।
- तनोट माता के मंदिर में पुजारी का काम सीमा सुरक्षा बल व सेना के जवान करते है ।
- तणोटिया माता के मंदिर के सामने भारत पाक युद्ध (1965) में भारत विजय का प्रतीक विजय स्तंभ स्थापित है ।
- तणोटिया माता को थार की वैष्णो देवी भी कहा जाता है ।
- इस मंदिर के पास पाक सेना द्वारा गिराये गये बम्बों में विस्फोट नहीं हुआ ।
ज़मुवाय माता
- इनका स्थान जमुवा रामगढ में है ।
- जमूवाय माता कछवाहा शासकों की कुल देवी हैं
- जयपुर में स्थित यह माता अन्नपूर्णा के नाम से जानी जाती है ।
- ज़मवाय माता को ही 'अन्नपूर्णा' के नाम से भी जानते हैं ।
- इस देवी के मंदिर में मद्य का भोग एवं पशुबलि प्रारंभ से ही वर्जित है ।
- जमवाय माता के बारे में कहा जाता है, कि सतयुग में मंगलायू , त्रेतायुग में हड़वाय द्वापर युग में बढ़वाय और कलियुग में जमुवाय माता के रूप मे प्रसिद्ध हुईं ।
- भौडकी ( झुंझुनूं) महरौली एवं मादनी मंढा ( सीकर ) भूणास ( नागौर ) ।
त्रिपुरा सुन्दरी माता
- त्रिपुरा सुन्दरी माता तिलवाड़ा (बांसवाडा) की है ।
- इस माता की पूजा शक्ति पीठ के रूप में होती है ।
- त्रिपुरा सुन्दरी माता की 18 भुजाओं वाली काले पत्थर से उत्कीर्ण मूर्ति है ।
लुटियाला/लटियाला माता जी
- लुटियाला माता लोद्रवा फलोदी क्षेत्र की है ।
- इनका मंदिर फलौदी में है, जिसके आगे खेजड़ा (शमीवृक्ष) स्थित है, इसलिए इन्हें खेजड़ बेरी रायभवानी भी कहते है ।
- यह माता कलों की कुलदेवी है ।
- लुटियाला माता का एक भव्य मंदिर बीकानेर के नवां शहर में स्थित है
आदि शक्तिपीठ हिगलाज माता
- हिंगलाज माता की पूजा चांगला खांप के मुसलमानों/चारण मुसलमानों ( चारणों से मुसलमान बने थे ) की ब्रह्मचारिणी कन्या द्वारा की जाती है, इसलिए वह 'चांगली माई ' कहलाती है ।
- हिंगलाज माता मुख्यत: लौद्रवा क्षेत्र की है ।
- प्रथम आदि शक्तिपीठ हिंगलाज माता का मुख्य मंदिर बलूचिस्तान वर्तमान पाकिस्तान मे स्थित है ।
- हिंगलाज माता चौहान वंश की कुल देवी है ।
ज्वाला माता
- पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को प्रथम पत्नी भागवती सती का जानु-भाग ( घुटना ) जोबनेर पर्वत पर आकर गिरा, जिसे माता का प्रतीक मानकर ज्वाला माता/जालपा देवी के नाम से पूजा जाने लगा ।
- 1641 ईं ० के लगभग अजमेर के शाही सेनापति मुहम्मद मुराद ( लाल बेग ) ने जोबनेर के शासक जैतसिंह पर आक्रमण किया ज्वाला माता के रूप में मधुमक्खियों का एक बड़ा झुंड लालबेग की सेना पर टूट पडा जिससे लालबेग की सेना नौबत छोड़कर भाग गई ।
- यह नौबत आज भी ज्वाला माता के मंदिर में विद्यमान है । प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है ।
- ज्वाला माता को राजपूतों का खंगारोत राजवंश अपनी कूल देवी मानता है ।
दधिमाता
- नागौर जिले में गोठ और मांगलोद गाँवों के बीच दधिमाता का भव्य मंदिर है ।
- यह मदिर प्रतिहार कालीन स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है ।
- इस मंदिर की शैली महामारू थी तथा उसी परम्परा के अनुरूप शिखर को नागर शैली में बनाया गया है ।
- यह दधीच ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है ।
- प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है ।
ब्रह्माणी माता
- बाराँ जिले के अंता से 20 किमी. दूर सौरसेन में ब्रह्माणी माता का मंदिर स्थित है ।
- संपूर्ण भारत में यह केवल एक ही मंदिर है, जिसमें माता के अग्र भाग का श्रृंगार नहीं किया जाता है ।
- यहाँ पर देवी के पीठ का श्रृंगार कर पीठ की पूजा की जाती है ।
- यात्री व श्रद्धालु भी माता के पीठ के दर्शन करते हैं, अग्रभाग के नहीं ।
- यहाँ माघ शुक्ला सप्तमी को गधों का मेला भी भरता है ।
आसावरी माता या आवरी माता (चित्तोडगढ)
- ' निकुम्भ ' ( चित्तोडगढ ) में स्थित यह शक्तिपीठ शारीरिक व्याधियों के निवारण के लिए प्रसिद्धि है ।
- यहाँ विशेष रूप से लकवे की बीमारी का इलाज होता है ।
- जनश्रुति है, कि आवरी माता के मंदिर के पास स्थित तालाब में नहाने से लकवा ठीक हो जाता है
बदनोर की कुशाल माता
- राणा कुम्भा ने बदनोर/बैराठ ( भीलवाडा ) के युद्ध में महमूद खिलजी को पराजित कर इस विजय की याद में विक्रम संवत् 1490 ईं ० में कुशाल माता का मंदिर बदनोर ( भीलवाडा) में बनवाया था ।
- इस मंदिर में कुशाल माता की प्रतिमा है, जिसे चामुंडा का अवतार माना जाता है ।
- इस मंदिर के निकट बैराठ माता का मंदिर भी है , जिसे जाट बैराट भी कहा जाता है । कहा जाता है कि ये दोनों सगी बहिने थी ।
- यहाँ प्रतिवर्ष भाद्र कृष्ण ग्यारस से भाद्र अमावस्या को मेला भरता है ।
चामुंडा माता
- दुर्गा माता का सातवाँ अवतार कालिका है ।
- कालिका माता ने दैत्य शुभ-निकुंभ के सेनापति चण्ड और मुण्ड का वध किया तभी से कालिका माता को 'चामुंडा माता' के नाम से पुकारने लगे ।
- चामुंडा माता को प्रतिहार/परिहारों की शाखा इंदावंश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं ।
- सितम्बर, 2008 में नवरात्रे के अवसर पर मंदिर स्थित जनसमूह में भगदड मच जाने से करीब 300 लोग असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो गये ।
- इस हादसे की जाँच के लिए सरकार ने जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी ।
नागणेचियाँ माता
- नागणेची माता मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुल देवी है ।
- नागाणा गाँव नागणेचियाँ देवी का प्रथम धाम रहा है ।
- राव जोधा ने नागाणा गाँव से मूल मूर्ति मँगवाकर जोधपुर दुर्ग में स्थापित करवाकर वहाँ मंदिर बनवाया ।
- वर्तमान में नागाणा गाँव में धरती से प्रकट हुई शिला को देवी के रूप में पूजा जाता है, जो नागणेचियाँ देवी के मंदिर में स्थित है ।
- राव बीका नागणेची माता की चाँदी की मूर्ति जोधपुर से लाए थे ।
- नागणेची माता महिषामर्दिनी का स्वरूप है ।
- नागणेची माता का दूसरा रूप ' श्येन पक्षी/बाज/चील ' है ।
- इसी कारण मारवाड़ ( जोधपुर ) , बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासतों के राजकीय ध्वजों पर इसी श्येन पक्षी का चिन्ह अंकित है ।
- राठौड़ कुल के सरदार नीम के वृक्ष की पूजा करते हैं तथा उसकी लकडी का प्रयोग नहीं करते ।
- राव मालदेव के समय देवी को प्रतिमा भूलवश उदयपुर राजघराने में स्थानांतरित हो गई ।
- उस दिन से अब तक नागणेची देवी का पूजन उदयपुर में होता आ रहा है और वर्ष में दो बार ( माघ शुक्ल सप्तमी व भाद्र शुक्ल सप्तमी को ) मेवाड के महाराणा बड़े उत्सव के साथ देवी की पूजा अर्चना करते है ।
बाण माता
- बाण माता का मुख्य मंदिर ' नागदा ' ( उदयपुर ) में है ।
- राणा लक्ष्मण सिंह ने उदयपुर में स्थित कैलवाड़ा नामक स्थान पर बायण/बाणमाता का मंदिर बनाया ।
- 1443 ईं ० में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी मेवाड पर आक्रमण किया तब वह सारंगपुर होता हुआ कैलवाड़ा पहुँचकर बाण माता के मंदिर को लूटकर मंदिर में लकडियाँ भरकर आग लगा कर नष्ट कर दिया ।
- बाण माता सिसोदिया वंश की कुल देवी है ।
- वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण करवाकर गुजरात से नईं मूर्ति मगवाकर वहाँ स्थापित की गई ।
क्षेमंकरी/खींवल/ खीमल माता
- क्षेमंकरी/खींवल/खीमल माता का मंदिर जालौर जिले के भीनमाल गाँव से 3 किमी. दूर ऊँची पहाड़ी पर स्थित बसंतगढ दुर्ग में बना हुआ है ।
- खीमल माता शुभ फल देने वाली हैं अत: इस देवी को शुंभकरी भी कहते है
- क्षेमंकरी/खींवल/शुंभकरी देवी भीनमाल की आदि देवी कहलाती है जो सोलंकी राजपूत वंश की कुल देवी है ।
- इस मंदिर का निर्माण चावड़ा वंश के राजा वर्मलाट के समय विक्रम संवत 682 ईं० में हुआ था
इंद्रगढ की बीजासण माता
- इंद्रगढ़ में ही एक विशाल पर्वत पर बीजासण माता का मंदिर बना हुआ है जो हाडौती अंचल में इंद्रगढ़ देवी के नाम से प्रसिद्ध है ।
- यहाँ प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पूर्णिमा एवं अश्विन तथा चैत्र के नवरात्रों में विशाल मेले का आयोजन होता है ।
सुंधा माता
- जालौर जिले की भीनमाल तहसील की जसवंतपुरा पंचायत समिति से 12 किमी. दूर दातालावास गाँव के समीप सुंधा/सूगंधाद्रि पर्वत पर लगभग 1220 मी. की ऊँचाई पर चामुंडा माता का मंदिर विक्रम संवत 1312 में चोंचिगदेव ने बनाया ।
- सुंधा माता को देवल वंश के राजपूत , श्रीमाली ब्राह्मणों की लाडवानू गोत्र व वैश्य के कंपिजल गौत्र के लोग अपनी कुल देवी मानते है
- चामुंडा माता को सुंधा पर्वत के नाम पर सुंधा माता कहने लगे ।
- राजस्थान का प्रथम रोप वे सुंधा माता मंदिर तक पहुँचने के लिए वर्ष 2006 से आरंभ किया गया है ।
वीरातरा माता/वांकल माता
- वांकल या वीरातरा माता का मंदिर बाडमेर जिले की चौहटन तहसील से 10 किमी. दूर पर्वतीय घाटी में है जो 400 वर्ष से भी अधिक पुराना है ।
- इस देवी की गर्दन थोडी टेढी होने के कारण इस देवी का नाम ' वांकल माता ' पडा ।
- देवी के मंदिर की जगह वीर विक्रमादित्य रात को रूका इसलिए इस माता का नाम वीरातरा पड़ा ।
- इस स्थान की प्रमुख विशेषता हैं कि यहाँ एक और पर्वतीय चट्टाने हैं तो दूसरी और बालू रेत के विशाल टीले है ।
- वीरातरा माता भोपों की कुल देवी हैं । वीरातरा माता के मंदिर प्रतिवर्ष चैत्र, भादवा एवं माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को तीन बार विशाल मेले लगते है ।
धौलागढ़ माता
- अलवर जिले की कठूमर पंचायत समिति के बहतूकला गाँव के धोलगिरी पर्वत पर देवी का मंदिर स्थित है ।
- धोलगिरी पर्वत के नाम पर देवी का नाम धोलागढ़ देवी पड़ा ।
- धोलागढ़ देवी का मंदिर लक्खी शाह बनजारे ने बनवाया ।
- यहाँ प्रतिवर्ष वैशाख सुदी ( शुक्ल ) एकम् से पूर्णिमा तक मेला लगता है ।
- धोलागढ देवी गौड ब्राह्मणों की कुल देवी है ।
मनसा माता
- मन की मनोकामना पूरी करने के कारण यह देवी मनसा माता के नाम से पूरे शेखावाटी अंचल में प्रसिद्ध है ।
- मनसा माता का मंदिर झुंझुनू जिले में खेतडी व सीकर जिले के हर्ष पर्वत के मध्य स्थित पर्वत के शिखर पर है ।
- यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन माह के नवरात्रों में मनसा माता का विशाल मेला लगता है ।
- मनसा माता के इस मंदिर में पशुबलि निषिद्ध है ।
- मनसा माता का एक प्राचीन मंदिर आमेर ( जयपुर) में भी है ।
चित्तौड़गढ़ की कालिका माता
- चित्तौड़ दुर्ग में रानी पद्मिनी के महलों एवं विजय स्तंभ के मध्य में कालिका माता का मंदिर है ।
- मूलतः यह कालिका माता का मंदिर सूर्यं मंदिर था ।
- महाकाली के उपासक गौड क्षत्रिय वंशी होते हैं अत: वे महाकाली को अपनी कुलदेवी मानते है ।
जय भवानीपुरा की नकटी माता
- जयपुर से 23 किमी. दूर जयभवानीपुरा गाँव में नकटी माता का गुर्जर-प्रतिहार कालीन प्राचीन मंदिर है ।
- नकटी माता का यह प्राचीन मंदिर मूलत: दुर्गा माता का मंदिर था ।
- दुर्गा माता को भवानी माँ के नाम से भी जानते हैं अत: इस गांव का नाम जयभवानीपुरा पडा ।
- चोरों ने इस देवी प्रतिमा को नाक के पास से खंडित कर दिया तभी से इस माता का नाम नकटी माता पड़ा ।
- हॉलैंड के निवासी एक कला प्रेमी ने इस मंदिर परिसर को विकसित और सुविधा संपन्न बनाया ।
जोगणिया माता
- भीलवाडा जिले में स्थित ऊपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर अन्नपूर्णा देवी का मंदिर था ।
- देवा हाडा की पुत्री के विवाह में जोगन का रूप धारण करने के बाद से ही अन्नपूर्णा माता जोगनिया माता के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई ।
- यात्रियों की मनोकामना पूरी होने पर मंदिर परिसर में मुर्गे छोड़कर जाने की भी प्रथा है ।
धनोप माता
- भीलवाडा जिले में शाहपुरा से लगभग 30 किमी. दूर धनोप नामक गाँव में एक ऊँचे रेतीले टीले पर देवी का प्राचीन मंदिर बना है । धनोप माता राजा धुंध की कुल देवी है
- धनोप माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र सुदी एकम् से चैत्र सूदी दशमी तक लगता है ।
आऊवा की सुगाली माता
- सुगाली माता की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति मारवाड़ रियासत के आऊवा ठिकाने के किले में ( वर्त्तमान पाली जिले में ) प्रतिष्ठापित थी ।
- इस देवी की मूर्ति के 10 सिर और 54 हाथ है ।
- सुगाली माता आऊवा के ठाकुरों ( चंपावतों ) की कुल देवी है ।
- सुमाली माता सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत रही है अत: इसे 1857 की क्रांति की देवी कहते है ।
- राजपूताना म्यूजियम से 2009-10 में यह सुगाली माता की मूर्ति पाली में स्थित बांगड म्यूजियम में भेज दी गई ।
- वर्तमान में भी सुमाली माता की मूर्ति पाली के म्यूजियम में रखी हुई है ।
कैवाय माता
- कैवाय माता का मंदिर नागौर जिले की परबतसर तहसील से 6 किमी. दूर किनसरिया गाँव में है ।
- प्राचीनकाल में इस मंदिर को अंबिका माता के नाम से जाना जाता था परंतु वर्तमान में इसे कैवाय माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
- पहले इस मंदिर में कैवाय/ब्रह्माणी माता की मूर्ति थी जिसके पास में ही जोधपुर के राजा अजीतसिंह ने माँ भवानी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई
वटयक्षिणी देवी/झाँतला माता
- चित्तौड़गढ़ से कपासन जाने वाले मार्ग पर पांडोली तालाब की पाल पर सैंकडों वर्ष पूर्व एक विशाल वट वृक्ष था जिसके नीचे महिषामर्दिनी देवी की प्रतिमा थी जहाँ कालांतर में विशाल मंदिर का निर्माण किया गया अत: इस देवी को वटयक्षिणी माता के नाम से पुकारा गया ।
- जनसाधारण की भाषा में इस देवी को झाँतला माता के नाम से पुकारते है ।
- माना जाता है, कि माता के मंदिर में आने से लकवा तथा अन्य असाध्य रोगों से पीडित रोगी स्वस्थ हो जाते है । इंदराज चौहान वटयक्षिणी देवी का उपासक रहा ।
राठासण देवी
- वीर विनोद के अनुसार हरित ऋषि राष्ट्रसेनी देवी की आराधना करते थे और इन्हीं हरित ऋषि ने राष्ट्रसेनी देवी को प्रसन्न कर बप्पा रावल के लिए मेवाड़ का राज्य मांगा था और उन्हीं की कृपा से बप्पा रावल ने मेवाड़ में अपना अधिकार स्थापित किया था ।
- इस देवी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल द्वारा नागदा में एकलिंग जी मंदिर के समीप करवाया गया ।
चौथ माता
- इनका मंदिर चौथ का बरवाड़ा कस्बे ( सवाई माधोपुर ) में स्थित हैं ।
- चौथ माता कंजर समाज की कुल देवी है ।
- सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए करवा चौथ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्थी ) पर चौथ माता का व्रत करती है ।
अर्बुदा देवी
- अर्बुदा देवी का मंदिर सिरोही जिले में माउंट आबू में स्थित है ।
- यहाँ प्रतिष्ठित अर्बुदा देवी आबू की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजी जाती है ।
- अर्बुदा देवी को अधर देवी भी कहते है ।
- यह माता राजस्थान की वैष्णो देवी कही जाती है ।
- अर्बुदा देवी के नाम पर ही अरावली पर्वत माला को अर्बुदाचल भी कहा जाता है ।
ऊनवास की पिप्पलाद माता
- राजसमंद जिले में हल्दी घाटी के पास ऊनवास गाँव में गुहिल शासक अल्लट ने दुर्गा माता के मंदिर का निर्माण करवाया ।
- दुर्गा माता के मंदिर को ही पिपलाद या ऊनवास की माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
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2 Comments
Good
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteFull fitel