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पाबूजी का जन्म 1239 ईं में फलौदी तहसील (जोधपुर) के कोलू गाँव में हुआ । पाबूजी राठौड राजवंश से सम्बन्धित थे ।पाबूजी का पूजा स्थल कोलू गाँव फलौदी (जोधपुर) में है । पाबूजी का प्रतीक चिन्ह भाला लिए अश्वारोही है ।
लोक देवता पाबूजी महाराज | Lok Devta Pabu ji Maharaj |
लोक देवता पाबूजी महाराज का इतिहास
- पाबूजी के पिता का नाम धांधलजी माता का नाम कमलादे था ।
- ये राठौडों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे ।
- पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है ।
- मनौती पूर्ण होने पर भोपा व भोपियों द्वारा पाबूजी की फड गाई जाती है ।
- पाबूजी ऊँटों के देवता के रूप में पूजे जाते है ।
- ऊँट के बीमार होने पर पाबूजी की भक्ति की जाती है ।
- पाबूजी के पवाड़े विशेष रूप से प्रचलित है ।
- इन पवाडों में इनका प्रमुख वाद्ययंत्र माठ होता है ।
- पाबूजी का विवाह अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री सुप्यारदे/फूलमदे से हो रहा था कि ये फेरों के बीच से ही उठकर (साढे तीन फेरे)अपने बहनोई जीन्दराव खींची से देवल चारणी ( जिसकी कैसर कालमी घोडी ये मांगकर लाये थे ) की गायें छुडाने चले गये और देचूं गाँव (जोधपुर) में वीर गति को प्राप्त हुए ।
- ऊँटों की पालक रांईका (रेबारी) जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है ।
- पाबूजी थोरी एवं आयड़ जाति में लोकप्रिय है और मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है ।
- पुरानी मान्यता के अनुसार मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को मिला था ।
- 'पाबूजी की फड़' नायक जाति के भोपो द्वारा 'रावणहत्या' वाद्य के साथ बांची जाती है ।
- पाबूजी की फड़ चाँदी की फड है ।
- पाबूजी की अराधना में थाली लोकनृत्य किया जाता है ।
- 'चांदा-डेमा, हरमल एवं सलजी सौलंकी पाबूजी के रक्षक सहयोगी के रूप में माने जाते है ।
- आशिया मोडजी द्वारा लिखित ' पाबू प्रकाश ' पाबूजी के जीवन पर एक महत्वपूर्ण रचना है ।
- इनकी घोडी का नाम केसर कालमी था ।
पाबूजी के बारे में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- इन से सम्बन्धित गीत ' पाबूजी के पवाड़े' माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेबारी जाति के द्वारा गाये जाते है ।
- पाबूजी केसर कालमी घोडी एवं बाईं और झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है ।
- पाबूजी का बोध चिन्ह भाला लिये अश्वारोही है ।
- इनका कोलूमण्ड में प्रमुख मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है ।
- मुस्लिम सुल्तान दूदा सूमरा को पाबूजी ने युद्ध में परास्त किया , क्योंकि यह एक हिन्दू द्रोही व हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाली प्रवृति का शासक था ।
- पाबूजी अल्प आयु में ही छुआछूत का विरोध करते थे ।
- पाबूजी को ' प्लेग रक्षक/हाड-फाड वाले देवता/गायों के मुक्तिदाता' के रूप में भी पूजा जाता है ।
- विवाह के साढे तीन फेरे लेने के बाद ही गायों को बचाने पहुँचे ।
- बहनोई जायल (नागौर के शासक) जींदराव खींची से युद्ध लड़ते हुए 1276 ईं. में देंचूँ गांव (जोधपुर) में 24 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए ।
- इसीलिए पाबूजी के अनुयायी आज भी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फैरे ही लेते है ।
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2 Comments
Good notes in my life
ReplyDeleteNice information thanku
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